नई दिल्ली. 'हिंदू आतंकवाद' या 'भगवा आतंकवाद' का करीब पांच साल पुराना जुमला एक बार फिर चर्चा में है। स्वामी असीमानंद की गिरफ्तारी और हाल में समझौता ब्लास्ट में हिंदू नेताओं का हाथ होने संबंधी उनका कथित कुबूलनामा जगजाहिर होने के बाद इस पर राजनीति भी गरम है। पर चिंता की बात यह है कि इस राजनीति के बीच 'हिंदू आतंकवाद' दुनिया भर में छा गया है।
पाकिस्तान तो इस जुमले को उछालता ही रहा है। अब ब्रिटेन और बाकी देशों की मीडिया में भी ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर भारत की आलोचना शुरू हो गई है। ब्रिटिश अखबार 'द गार्जियन' ने तो १९ जनवरी को प्रकाशित एक लेख में यहां तक कहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर इतना ज्यादा भेदभाव है कि सरकार बहुसंख्यक हिंदू कट्टरपंथी तत्वों द्वारा पैदा किए जा रहे खतरे को भांप नहीं पा रही है। यही नहीं, अखबार ने यह कहते हुए भारत सरकार की नीति और साख पर भी सवाल खड़ा किया है कि सरकार ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को तो बैन कर दिया है, पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को काम करने की खुली छूट दे रखी है।
पाकिस्तानी मीडिया पिछले कई सालों से हिंदू आतंकवाद के नाम पर भारत के खिलाफ प्रोपैगंडा चला रहा है। ऐसे में बदनामी के अलावा यह आशंका भी बढ़ रही है कि पाकिस्तान ‘हिंदू आतंकवाद’ का इस्तेमाल अपने यहां के आतंकवादियों की करतूतों पर पर्दा डालने के लिए कर सकता है। यही नहीं, वह अपने देश में हो रही आतंकवादी घटनाओं का ठीकरा हिंदू आतंकवाद के सिर पर भी फोड़ सकता है।
विदेशी समाचार एजेंसी रायटर ने ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर कांग्रेस और भाजपा की खींचतान का जिक्र करते हुए कहा है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भारत में हिंदू आतंकवाद के नाम पर बहुत कुछ दांव पर लग चुका है।
अरब न्यूज डॉट कॉम ने अपने संपादकीय में भारत में ‘हिंदू आतंकवाद’ की मौजूदगी बताते हुए आरोप लगाया है कि भारत सरकार में यह सच स्वीकार करने की हिम्मत नहीं है। इस मुद्दे पर साजिशन चुप्पी रखी जा रही है।
इस तरह, दुनिया भर में ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर भारत की फजीहत हो रही है। पर आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव इसे अपने संगठन को बदनाम करने की भारत सरकार की साजिश बताते हैं। जबकि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का सवाल है, 'अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद और मालेगांव से लेकर समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में पकड़े गए सभी लोग संघ से जुड़े हैं। भाजपा को यह साफ करना चाहिए कि इन हमलों में पकड़े गए सभी लोग संघ से ही जुड़े क्यों हैं।'
मीडिया ने गढ़ा जुमला
'हिंदू आतंकवाद' या 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले मीडिया, खास कर अंग्रेजी मीडिया ने २९ सितंबर, २००६ को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास हुए धमाके में करीब ३७ लोगों के मारे जाने के बाद किया। इस घटना के सिलसिले में पुलिस ने दस लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें ज़्यादातर हिंदू थे। इसी के बाद से मीडिया ने आतंकवाद को हिंदू धर्म से जोड़ते हुए पहली बार यह शब्द गढ़ा।
चिदंबरम ने लगाई आधिकारिक मुहर
अगस्त, २०१० के पहले मीडिया के अलावा आधिकारिक तौर पर किसी बड़े नेता या अफसर ने इस जुमले का इस्तेमाल नहीं किया था। लेकिन पुलिस अफसरों की बैठक में 25 अगस्त, २०१० को देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने 'भगवा आतंकवाद' को नया खतरा बताते हुए अफसरों को चुनौती के लिए तैयार रहने को कहा। चिदंबरम के बयान के बाद यह बहस छिड़ गई कि क्या किसी धर्म या रंग को आतंकवाद से जोड़ा जा सकता है? भाजपा ने इसकी खूब आलोचना की। चिदंबरम की पार्टी कांग्रेस ने भी उनके बयान से किनारा कर लिया था। पार्टी प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने साफ कहा था, 'आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता है। बयान देते समय शब्दों के इस्तेमाल पर ध्यान दिया जाना चाहिए।' लेकिन चिदंबरम अड़े रहे।
हिंदू कट्टरपंथ का पुराना इतिहास
देश में हिंदू या हिंदू संगठनों के द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़ी वारदात अंजाम देने की बात नई नहीं है। १९९९ में उड़ीसा में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले ग्राहम स्टेंस को उनके दो बच्चों के साथ जिंदा जला देने वाले दारा सिंह का संबंध विश्व हिंदू परिषद से था। १९९२ में अयोध्या का विवादित ढांचा ढहाए जाने और २००२ में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों में बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक मारे गए थे। लेकिन इन घटनाओं को कभी भी आतंकवादी घटना नहीं माना गया और न ही इसके लिए कोई खास शब्द गढ़ा गया। जिस मालेगांव धमाके के सिलसिले में हिंदू नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ‘हिंदू आतंकवाद’ का जुमला गढ़ा गया, उसमें अभी कानूनी तौर पर यह साबित होना बाकी है कि गिरफ्तार लोग दोषी हैं और वे किसी आतंकवादी संगठन का हिस्सा हैं। ऐसे में अभी पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि हिंदू कट्टरपंथ, हिंदू आतंकवाद का रूप ले चुका है। भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद कहते हैं, 'भगवा या हिंदू आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं है। अब हमें हिंदू आतंकवाद और मुस्लिम या इस्लामिक आतंकवाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।' पार्टी के पूर्व नेता और विचारक गोविंदाचार्य की राय में, 'भगवा और आतंकवाद शब्द एक साथ इस्तेमाल नहीं किए जा सकते हैं। यह वैसे ही जैसे आप कहें कि दूध का रंग काला होता है। यह शब्द उन लोगों ने गढ़ा है जो भारत को यूरोप के नजरिए से देखते हैं।'
पाकिस्तान तो इस जुमले को उछालता ही रहा है। अब ब्रिटेन और बाकी देशों की मीडिया में भी ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर भारत की आलोचना शुरू हो गई है। ब्रिटिश अखबार 'द गार्जियन' ने तो १९ जनवरी को प्रकाशित एक लेख में यहां तक कहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर इतना ज्यादा भेदभाव है कि सरकार बहुसंख्यक हिंदू कट्टरपंथी तत्वों द्वारा पैदा किए जा रहे खतरे को भांप नहीं पा रही है। यही नहीं, अखबार ने यह कहते हुए भारत सरकार की नीति और साख पर भी सवाल खड़ा किया है कि सरकार ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को तो बैन कर दिया है, पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को काम करने की खुली छूट दे रखी है।
पाकिस्तानी मीडिया पिछले कई सालों से हिंदू आतंकवाद के नाम पर भारत के खिलाफ प्रोपैगंडा चला रहा है। ऐसे में बदनामी के अलावा यह आशंका भी बढ़ रही है कि पाकिस्तान ‘हिंदू आतंकवाद’ का इस्तेमाल अपने यहां के आतंकवादियों की करतूतों पर पर्दा डालने के लिए कर सकता है। यही नहीं, वह अपने देश में हो रही आतंकवादी घटनाओं का ठीकरा हिंदू आतंकवाद के सिर पर भी फोड़ सकता है।
विदेशी समाचार एजेंसी रायटर ने ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर कांग्रेस और भाजपा की खींचतान का जिक्र करते हुए कहा है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भारत में हिंदू आतंकवाद के नाम पर बहुत कुछ दांव पर लग चुका है।
अरब न्यूज डॉट कॉम ने अपने संपादकीय में भारत में ‘हिंदू आतंकवाद’ की मौजूदगी बताते हुए आरोप लगाया है कि भारत सरकार में यह सच स्वीकार करने की हिम्मत नहीं है। इस मुद्दे पर साजिशन चुप्पी रखी जा रही है।
इस तरह, दुनिया भर में ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर भारत की फजीहत हो रही है। पर आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव इसे अपने संगठन को बदनाम करने की भारत सरकार की साजिश बताते हैं। जबकि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का सवाल है, 'अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद और मालेगांव से लेकर समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में पकड़े गए सभी लोग संघ से जुड़े हैं। भाजपा को यह साफ करना चाहिए कि इन हमलों में पकड़े गए सभी लोग संघ से ही जुड़े क्यों हैं।'
मीडिया ने गढ़ा जुमला
'हिंदू आतंकवाद' या 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले मीडिया, खास कर अंग्रेजी मीडिया ने २९ सितंबर, २००६ को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास हुए धमाके में करीब ३७ लोगों के मारे जाने के बाद किया। इस घटना के सिलसिले में पुलिस ने दस लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें ज़्यादातर हिंदू थे। इसी के बाद से मीडिया ने आतंकवाद को हिंदू धर्म से जोड़ते हुए पहली बार यह शब्द गढ़ा।
चिदंबरम ने लगाई आधिकारिक मुहर
अगस्त, २०१० के पहले मीडिया के अलावा आधिकारिक तौर पर किसी बड़े नेता या अफसर ने इस जुमले का इस्तेमाल नहीं किया था। लेकिन पुलिस अफसरों की बैठक में 25 अगस्त, २०१० को देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने 'भगवा आतंकवाद' को नया खतरा बताते हुए अफसरों को चुनौती के लिए तैयार रहने को कहा। चिदंबरम के बयान के बाद यह बहस छिड़ गई कि क्या किसी धर्म या रंग को आतंकवाद से जोड़ा जा सकता है? भाजपा ने इसकी खूब आलोचना की। चिदंबरम की पार्टी कांग्रेस ने भी उनके बयान से किनारा कर लिया था। पार्टी प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने साफ कहा था, 'आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता है। बयान देते समय शब्दों के इस्तेमाल पर ध्यान दिया जाना चाहिए।' लेकिन चिदंबरम अड़े रहे।
हिंदू कट्टरपंथ का पुराना इतिहास
देश में हिंदू या हिंदू संगठनों के द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़ी वारदात अंजाम देने की बात नई नहीं है। १९९९ में उड़ीसा में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले ग्राहम स्टेंस को उनके दो बच्चों के साथ जिंदा जला देने वाले दारा सिंह का संबंध विश्व हिंदू परिषद से था। १९९२ में अयोध्या का विवादित ढांचा ढहाए जाने और २००२ में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों में बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक मारे गए थे। लेकिन इन घटनाओं को कभी भी आतंकवादी घटना नहीं माना गया और न ही इसके लिए कोई खास शब्द गढ़ा गया। जिस मालेगांव धमाके के सिलसिले में हिंदू नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ‘हिंदू आतंकवाद’ का जुमला गढ़ा गया, उसमें अभी कानूनी तौर पर यह साबित होना बाकी है कि गिरफ्तार लोग दोषी हैं और वे किसी आतंकवादी संगठन का हिस्सा हैं। ऐसे में अभी पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि हिंदू कट्टरपंथ, हिंदू आतंकवाद का रूप ले चुका है। भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद कहते हैं, 'भगवा या हिंदू आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं है। अब हमें हिंदू आतंकवाद और मुस्लिम या इस्लामिक आतंकवाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।' पार्टी के पूर्व नेता और विचारक गोविंदाचार्य की राय में, 'भगवा और आतंकवाद शब्द एक साथ इस्तेमाल नहीं किए जा सकते हैं। यह वैसे ही जैसे आप कहें कि दूध का रंग काला होता है। यह शब्द उन लोगों ने गढ़ा है जो भारत को यूरोप के नजरिए से देखते हैं।'
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