“” आज कल भारत में चारों ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद की जा रही है, नेता, बाबा सभी भ्रष्टाचार की आलोचना में जुटे हैं, पर एक ख़ास बात ये है क़ि, हर कोई दूसरे की आलोचना या उंगली उठाने में लगा है, किसी को भी अपने घर में नाम मात्र की भी खराबी या कमी, या यूँ कहें क़ि भ्रष्टाचार ना तो नज़र आ रहा है, ना ही भ्रष्टाचार की गंध का आभास हो रहा है.”"
आश्चर्य की बात तो ये है क़ि नेताओं को तो आम तौर पर ये मान कर चला जाता है क़ि उनका काम बिना भ्रष्टाचार के चलता ही नहीं है, और इस जमात से ईमानदारी कीं उम्मीद करना आज के वक़्त में बेमानी हो चुका है. सब जानते हैं क़ि आज चुनाव में कितना पैसा खर्च होता है और कितना कागजों पर दिखाया जाता है, आखिर कहाँ से आता है ये पैसा, कौन देता है और किस लिए देता है ?
चूँकि फिलहाल यह टिप्पणी, दिल्ली में हुई बाबा रामदेव की सभा के बारे में की कर रहा हू, इस लिए ज्यादा विस्तार से बात करना विस्यानातर हो जायेगा, मैं भारत के सभी लोगों का ध्यान इस देश के बाबाओं और संतों ( सब नहीं बल्कि उन तथाकथित लोगों की ओर ), दिला रहा हू जो आज सेक्स, क़त्ल और विभिन्न गंभीर आरोपों में या तो जेल के अंदर हैं या फिर जमानत पर हैं, कुछ तो जेल के अंदर ही, मर गयें हैं.
जब तक ये तथाकथित बाबा पकडे नहीं गए, इन सभी को भगवान् की तरह पूजा जाता रहा, और जब पकडे गए तो वही भक्त जो उनकी पूजा करते नही अघाते थे, उन पर थूकने लगे .
यही हाल उन नेतोँ का भी हुआ, जो जेलों में बंद किये गए और ज़मानत में है., मगर नेताओं और बाबाओं के एक बड़ा फर्क यह है की, किसी बाबा के खिलाफ आवाज़ उठाना या उसके बुरे कर्मों का पर्दाफास करना भगवान् ( तथाकथित ) का अपमान या हिन्दू धर्म का निरादर घोषित कर, पर्दाफास करने वालों कर जीना दूभर कर दिया जाता है. इस देश में कितने ही मामले ऐसे हैं जहाँ, मठों, मंदिरों में अधिकार करने के लिए एक ने दूसरे की हत्या करवा दी.
बाबा लोगों या धर्म के नाम पर कुछ ( किसी तरह का व्यापार ) करने वालों वालों से ये उम्मीद की जाती है क़ि वो आम लोगों का भला करने के लिए काम करेंगे, ना क़ि धर्म के नाम पर भरी भरकम फीस वसूल करेंगे, जैसा की आज कल किया जा रहा है. अच्छा है क़ि भ्रष्टाचार को मिटाया जाए, क्यूंकि भ्रष्टाचार देश को खोखला करता जा रहा है, पर इसके लिए बहुत ज़रुरी है क़ि ये काम सभी लोग पहले अपने अपने घरों से शुरू करें, अब चाहें वो नेता हो या बाबा.
“”" मीठा मीठा गप्प और कड़वा कड़वा थू, करने से किसी देश में क्रांति नहीं होती, सिर्फ अराजकता होती है. शायद इन तथा कथित बाबाओं का उद्देश्य भी है. “ताकि आम जनता का ध्यान इधर उधर उलझा कर अपना हित साधन जारी रख सकें.”"”
” क्या किसी बाबा ने देश की जनता को ये बताने की तनिक भी कोशिश की है क़ि आज अकूत पैसे के मालिक कैसे बन गए क़ि विदेशों में एक नहीं दर्जनों आश्रम बनवाने के लिए जमीनें खरीदने के लिए अकूत धन कंहा से आ गया.. ये पैसा किस देश का हैं और इस पैसे का असली मालिक कौन है ?
** देश हित में सब से पहल काम तो ये होना चाहिए क़ि सारे भारत में ट्रस्टों के नाम पर धरम, जनसेवा, जनकल्याण का सब्जबाग दिखा कर देश की भोली भली जनता को अंधेरे में रख कर, हजारो अरबों का गोलमाल करने वाले उन सभी लोगो पर सरकार / कानून को कहर बन कर टूट पड़ना होगा चाहे, वो कोई बाबा हो, नेता हो या फिर पूंजीपति, तभी देश का कुछ भाल होने की उम्मीद क़ि जा सकती है, वरना हम्माम के अंदर सभी नगें हैं. ***
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