जिस व्यक्ति को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने व 59 लोगों की हत्या करने के आरोप में आठ वर्ष जेल में बिताने पड़े, आज उसे बेगुनाह घोषित कर दिया गया है और वह आजाद है। लेकिन सईद उमरजी स्पष्ट बोलने वाले आदमी हैं और उनका कहना है कि उन्होंने साबरमती एक्सप्रेस कभी देखी ही नहीं।
मौलाना हुसैन इब्राहिम उमरजी को लोग उमरजी के नाम से जानते हैं। उमरजी का कहना है कि प्रशासन ने सिर्फ उन्हें इसलिए दंडित किया, क्योंकि उन्होंने बेगुनाह मुसलमानों के पक्ष में खुलकर बोला था। उमरजी (65) ने कहा कि मैं साबरमती एक्सप्रेस कभी नहीं देख पाया हूं, क्योंकि वह गोधरा से रात को ही गुजरती है। उमरजी ने कहा कि वह सामाजिक कार्यकर्ता हैं और 1993 में महाराष्ट्र के लातूर में तथा 2001 में गुजरात के कच्छ में जब विनाशकारी भूकम्प आया था तो वह राहत एवं बचाव कार्य में अग्रिम मोर्चे पर थे।
उमरजी ने कहा कि मैंने 2002 के गुजरात दंगों के बाद कई राहत शिविर चलाए थे। उन शिविरों में कुल 3,500 लोगों ने शरण ली थी। हमने उन लोगों की भी देखभाल की थी, जिन्हें गोधरा मामले में गिरफ्तार किया गया था। उमरजी गोधरा कस्बे में कई शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं।
रेलगाड़ी की बोगी जलाए जाने के मामले में गिरफ्तार किए कई लोगों में उमरजी भी शामिल थे। आठ वर्ष जेल में बिताने के बाद पिछले महीने अदालत ने उमरजी व अन्य कई को आरोपों से बरी कर दिया।
दारुल उलूम, देवबंद से स्नातक उमरजी स्पष्ट वक्ता हैं। उन्होंने कहा, "जेल जीवित लोगों के लिए कब्रिस्तान की तरह है। मैंने अपने जीवन के कीमती आठ साल गंवा दिए हैं। इसे अब कोई नहीं लौटा सकता। मुझे और मेरे परिवार का मानसिक उत्पीड़न किया गया। हमारे घरों की महिलाएं आमतौर पर बाहर नहीं निकलतीं। लेकिन मेरी गिरफ्तारी के बाद मेरी पत्नी कई दिनों तक घर में नहीं रह सकी थी। मेरे बेटे भयभीत थे।"
उमरजी जब जेल में थे, और इस बात का कोई संकेत नहीं था कि वह कब जेल से रिहा होंगे, तो उसी दौरान उनके चार बेटों और दो बेटियों की शादी हो गई।
अहमदाबाद की साबरमती जेल में रहने से उमरजी को एक असाधारण अनपेक्षित लाभ भी हुआ। उमरजी ने कहा, "मेरी गिरफ्तारी से पहले मैं पास की मस्जिद तक भी नहीं चल सकता था। लेकिन जेल में मैंने खूब व्यायाम किया, और अब मैं हर रोज लगभग 10 किलोमीटर चलता हूं।"
उमरजी ने कहा कि उन्हें इसलिए झूठे मामले में फंसाया गया, क्योंकि उन्होंने 2002 के दंगों के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार को दोषी ठहराने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा, "मेरा सबसे बड़ा गुनाह यह था कि मैंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक ज्ञापन दिया था और दंगों के दौरान सरकारी मशीनरी की भूमिका की विस्तृत व्याख्या की थी। प्रधानमंत्री गोधरा दौरे पर आए थे।"
उमरजी ने कहा, "मैंने उन समस्याओं का जिक्र किया, जिनका सामना हम मुसलमानों को गोधरा की घटना के बाद करना पड़ा था। लेकिन अधिकारी चाहते थे कि हम अपनी जुबान बंद किए रहें और शिकायत न करें।"
बाद में उमरजी से कहा गया कि वह गांधीनगर में वाजपेयी से मिलें। "मैंने इंकार कर दिया। मैं इसलिए उनसे नहीं मिलना चाहता था, क्योंकि इसका कोई मतलब नहीं था।"
उमरजी ने उन स्थितियों को याद किया कि किस तरह से पुलिस ने हिरासत के दौरान उनके साथ बरताव किया था। एक प्रश्न उनसे बार-बार पूछा जाता था कि उन्होंने मानवाधिकार के हालात पर गुजरात पुलिस के खिलाफ बयान क्यों दिया।
उमरजी अपने भाग्य पर कोसने के साथ ही उन लोगों के प्रति भी सहानुभूति रखते हैं, जो साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए थे। उन्होंने कहा कि मैं इस घटना की निंदा करता हूं और पीड़ितों व उनके परिवारों के प्रति अपनी सहानुभूति जाहिर करता हूं।
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