अस्पताल कर्मियों, डाक्टरों या स्वास्थ्य विभाग स्वास्थ्य विभाग से जुड़े जि़ मेदार लोगों की लापरवाही व अनदेखी के परिणामस्वरूप मरीज़ों के मृत्य लोक पहुंच जाने की खबरें हमारे देश के लिए कोई नई बात नहीं हैं। प्राय: देश के किसी न किसी कोने से ऐसी खबरें सुनने को मिलती रहती हैं कि किसी डॉक्टर की लापरवाही से या समय पर इलाज न मिल पाने से किसी मरीज़ की मौत हो गई हो। मरीज़ों के परिजनों द्वारा ऐसी दु:खद घटनाओं की प्रतिक्रिया स्वरूप रोष व्यक्त किए जाने यहां तक कि निजी नर्सिंग होम या सरकारी अस्पताल में तोडफ़ोड़ किए जाने की खबरें भी आती ही रहती हैं। नक़ली व प्रयोग करने की तिथि पूरी कर चुकी दवाईयों के प्रयोग से मरीज़ों की मृत्यु हो जाने या उनकी तबीयत और अधिक बिगड़ जाने की भी खबरें आती रहती हैं। ज़ाहिर है ऐसी अफसोसनाक खबरों की जड़ में भी भ्रष्टाचार ही सबसे प्रमुख कारण होता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस राष्ट्र के लोग शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं वही राष्ट्र वैचारिक रूप से भी जागरुक,स्वस्थ तथा चेतन होता है। बेशक एक स्वस्थ राष्ट्र ही तेज़ी से विकास की मंजि़लें तय कर सकता है। परंतु लगता है कि हमारे देश में अन्य सरकारी विभागों की ही तरह स्वास्थय विभाग से जुड़े नेटवर्क को शायद इस बात का ज्ञान ही नहीं है या फिर भ्रष्टाचार,लापरवाही,स्वार्थ व रिश्वत$खोरी जैसी बुराईयों ने इन लोगों को इस कद्र जकड़ रखा है कि इन्हें न तो किसी दूसरे व्यक्ति के स्वास्थय की चिंता होती है न ही उसके अर्थिक हालात या पारिवारिक परिस्थितयों के बारे में कुछ सोचने का समय। ऐसे में इस प्रकार के गैर जि़ मेदार व भ्रष्ट तंत्र से इस बात की उ मीद रखना कि यह वर्ग राष्ट्र के विकास या स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के विषय में कुछ सोचेगा,शायद हमारा ऐसा सोचना ही बेमानी प्रतीत होने लगा है।
स्वास्थय विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों की ऐसी ही एक ज़बरदस्त लापरवाही का प्रमाण गत दिनों राजस्थान के जोधपुर जि़ले के सरकारी अस्पताल में देखने को मिला। यहां 13 प्रसूताओं की एक ही समय में तब मौत हो गई जबकि उन्हें कथित रूप से संक्रमित ग्लूकोज़ चढ़ा दिए गए। स्वास्थय अधिकारियों की लापरवाही से इतनी अधिक प्रसूताओं की एक साथ मौत होने की यह अब तक की सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है। यह भी खबर है कि अभी और भी कई मरीज़ ऐसे हैं जिन्हें इसी बैच का संक्रमित ग्लूकोज़ चढ़ाया गया था उनमें से कई मरीज़ों की हालत गंभीर बनी हुई है। राजस्थान सरकार ने मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रूपये का मुआवज़ा देने की घोषणा कर अपने फजऱ् की इतिश्री कर ली है। जनाक्र ोश को नियंत्रित रखने के मद्देनज़र स्वास्थ्य विभाग के दो अधिकारी जिनमें एक ड्रग इंस्पेक्टर तथा एक स्टोर कीपर शामिल है, को निलंबित कर दिया गया है।
यहां यह ग़ौरतलब है कि निलंबित अधिकारीगण भी देश के अन्य निलंबित कर्मचारियों की ही तरह यथाशीघ्र बहाल हो जाएंगे तथा 5 लाख रूपये की धनराशि भी एक तो हासिल होने में ही पीडि़त परिवारों को दिन में तारे दिखा देंगे और यदि उनके भाग्य ने साथ दिया और कुछ समय में यह धनराशि मिल भी गई तो महंगाई के इस दौर में यह पांच लाख रूपये कब तक उनका साथ देंगे इसका भी कुछ पता नहीं। परंतु परिवार के एक जि़ मेदार सदस्य वह भी एक प्रसूता मां का मरना एक परिवार के लिए कितनी बड़ी कमी छोड़ जाएगा,उस नुकसान की भरपाई न ही दौलत से की जा सकेगी न ही किसी के निलंबन या बहाली से। राजस्थान सरकार ने इस संबंध में एक और सकारात्मक कदम यह भी उठाया है कि राज्य सरकार के स्वास्थय विभाग को ग्लूकोज़ की आपूर्ति करने वाली उस कंपनी को काली सूची में डाल दिया गया है तथा संक्रमण का संदेह होने वाले बैच के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई गई है। इन सभी उपायों के बावजूद उन तेरह परिवारों में एक ही समय में पसरे मातम व शोकाकुल वातावरण को खुशियों के माहौल में कतई नहीं बदला जा सकता। यहां एक बात यह भी काबिले ग़ौर है कि सभी मृतक प्रसूता या तो गरीब परिवार की थीं या मध्यम गरीब परिवार की। गोया एक बार फिर भ्रष्टाचार तथा लापरवाही की भेंट देश का आम आदमी ही चढ़ा। स्वास्थय संबंधी मामलों को लेकर जहां तक भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाली साख का प्रश्र है तो इसमें भी भारत का रिकॉर्ड अत्यंत अफसोसनाक है। आंकड़ों के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक नवजात शिशुओं की मौत भारतवर्ष में ही होती है। विज्ञान जगत की प्रतिष्ठित पत्रिका द् लॉनसेट के अनुसार 2005 में भारत में बीस लाख पैंतीस हज़ार बच्चे मौत के मुंह में समा गए। इनमें जहां मां की खराब सेहत, गरीबी, समय पर इलाज न मिल पाना,कुपोषण जैसी विसंगतियां शामिल थीं वहीं स्वास्थय विभाग की लापरवाही,गलत दवाओं का प्रयोग तथा संक्रमित दवाईयों का इस्तेमाल भी इनकी मौत के कारणों में एक प्रमुख कारण था। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के परिणामस्वरूप गत् वर्ष उत्तर प्रदेश में 475 बच्चों की मौत हो गई जबकि इससे कहीं अधिक सं या में बच्चे मानसिक व शारीरिक रूप से विकलांग हो गए। परंतु सरकार है कि इन ज़मीनी हकीकतों से शायद बेखबर रहकर अपनी तथाकथित हवाई उपलब्धियों के पोस्टर,बैनर तथा होर्डिंग्स आदि लगवाकर आम जनता,आला अधिकारियों,नेताओं तथा विश्व स्वास्थय संगठन को यह दिखलाना चाहती है कि पूरे देश में सब कुछ ठीकठाक है। और जब इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण सामूहिक मौतों की खबर सुनाई देती है तब जहां मुआवज़े व निलंबन की राजनीति शुरु होती है वहीं अधिकारियों द्वारा एक दूसरे पर दोषारोपण करने का अभियान भी छिड़ जाता है।
स्वास्थय विभाग की लापरवाही व इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार का नेटवर्क इतना अधिक फैल चुका है तथा इसकी जड़ें इतनी गहरी हो गई हैं कि आज देश में जगह-जगह मेडिकल स्टोर्स पर नकली दवाईयां,प्रयोग तिथि पूरी कर चुकी अर्थात् एक्सपायर तिथि की दवाईयां आदि धड़ल्ले से बेची जाती हैं। तमाम प्रतिबंधित ड्रग्स भी यहां उपलब्ध हो जाते हैं। निश्चित रूप से देश का आम आदमी इन हालात का जल्दी शिकार हो जाता है तथा उसे इसकी कीमत कभी गंभीर बीमारी से तो कभी अपनी जान गंवाकर भी चुकानी पड़ती है। लापरवाही तथा भ्रष्टाचार के परिणामस्वरूप होने वाले नु$कसान से अब देश का मध्यम या उच्चवर्ग भी बचने वाला नहीं लगता। याद कीजिए 2 वर्ष पूर्व दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की वह घटना जबकि एक समारोह के दौरान मंच पर विराजमान वरिष्ठ डॉक्टरों ने संक्रमित जल ग्रहण कर लिया था। देश की नामी कंपनी का प्लास्टिक के गिलास में सील मिनरल वॉटर डॉक्टर्स के समक्ष रखा गया था। यह जल न केवल संक्रमित था बल्किइस की तह में फफंूद भी लगा हुआ सा$फ नज़र आ रहा था। विशिष्ट डॉक्टरगण एक के बाद एक कर इस संक्रमित पानी को शायद इसी विश्वास के साथ पी गए कि यह ताज़ा व स्वच्छ होगा। परंतु स्वास्थय विभाग की आदत सी बन चुकी लापरवाही ने उन्हें भी नहीं ब ़शा। इस पानी को पीने वाले कई डॉक्टरों की जान पर बन आई। इनमें से कई डॉक्टर केवल अस्वस्थ ही नहीं बल्कि गंभीर अवस्था में भी पहुंच गए थे। परंतु वे सभी ए स के डॉक्टर थे शायद इसलिए उन्हें बचा लिया गया अन्यथा यदि यही ‘आम आदमी होते तो संभवत:अपनी जान से भी हाथ धो बैठते।
अभी कुछ समय पूर्व देश में एक ऐसे भ्रष्टाचारी नेटवर्क का उस समय भंडाफोड़ हुआ था जबकि वह कैंसर की बीमारी में प्रयुक्त होने वाले बेशकीमती इंजेक्शन को निकाल कर उसकी जगह पानी भरकर मरीज़ों को दे दिया करता था। नतीजा आप खुद समझ सकते हैं। सवाल यह है कि अन्य विभागों व क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार की ही तरह क्या स्वास्थय विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी इस बात की छूट दी जा सकती है कि वे अपनी सरकारी सेवा के दौरान केवल अपने आर्थिक लाभ के चलते दूसरों की जान से खिलवाड़ करें? और यदि नहीं तो ऐसे अपराधी केवल निलंबन या सेवा समाप्त करने तक के ही अधिकारी नहीं बल्कि इनके अपराध को जानबूझ कर किया जाने वाला योजनाबद्ध अपराध समझा जाना चाहिए। और न्याय की दृष्टि से इन्हें वही सज़ा दी जानी चाहिए जोकि एक सुनियोजित षड्यंत्र के साथ किए गए अपराध के लिए किसी अपराधी को दी जाती है। राजस्थान के जोधपुर में तेरह लोगों की एक साथ मौत और वह भी स्वास्थय विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के परिणामस्वरूप होना,निश्चित रूप से यह जानबूझ कर सामूहिक हत्याकंाड किए जाने का घिनौना अपराध है। इसमें कोई शक नहीं कि इसमें दोषी पाए जाने वाले सभी लोग फांसी जैसी सज़ा पाने के हकदार हैं। वैसे भी देश में जब तक इस प्रकार के अपराधियों व ऐसी घटनाओं के जि़ मेदार लोगों को फांसी जैसी कठोरतम सज़ा नहीं मिलती तब तक भविष्य में भी ऐसी घटनाओं को होने से शायद ही रोका जा सके।
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