शोले में गब्बर सिंह का डॉयलाग तो आपको याद ही होगा. अरे ओ सांभा इन तीनों ने हमारा नाम पूरा का पूरा मिट्टी में मिला दिया. कुछ इसी अंदाज में अब लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर बोल पड़े हैं. हालांकि ब्लागबीर आडवाणी ने आज अपने ब्लाग पर यूपीए की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है लेकिन साथ में कुछ ऐसा जिक्र भी कर दिया है जो एक बार फिर उन्हें सेकुलर साबित करने के लिए पर्याप्त होगा.
अपने ब्लाग में आडवाणी लिखते हैं-"मेरे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मेरी विश्वसनीयता है. न सिर्फ मेरी विश्वसनीयता बल्कि मेरे पार्टी की भी विश्वसनीयता." आडवाणी बताते हैं कि यह बात उन्होंने कोई दो दशक पहले बाबरी विध्वंस के बाद टेलीग्राफ के एक पत्रकार से कही थी. उन्होंने 27 दिसंबर 1992 को इंडियन एक्सप्रेस अखबार से यह भी कहा था कि बाबरी विध्वंस का दिन उनके जीवन का सबसे दुखद दिन था. आडवाणी लिखते हैं कि यह बोलने के बाद उनके कई नजदीकी लोग उनके ऊपर सवाल उठाते रहे कि आपको ऐसा नहीं बोलना चाहिए था. यह आपने क्यों बोल दिया? तो आज आडवाणी एक बार फिर उन सबको जवाब देते हुए लिखते हैं कि " मैं कभी अयोध्या आंदोलन को लेकर माफी मांगने के मूड में नहीं रहा हूं बल्कि मुझे तो अयोध्या आंदोलन पर गर्व है. लेकिन 6 दिसंबर को अयोध्या में जो कुछ हुआ उसके कारण पार्टी की विश्वसनीयता को गहरा धक्का लगा."
अब लो, कर लो बात. जिस बाबरी विध्वंस को संघी भाजपाई अपने राजनीतिक इतिहास का सबसे स्वर्णिम दिन मानते हैं और कोई सवाल उठाये तो काट खाने दौड़ते हैं, उसे आडवाणी जी पार्टी की विश्वसनीयता का सबसे बड़ा संकट बता रहे हैं. आडवाणी जी ने अचानक अयोध्या राग क्यों अलापा है इसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. कांग्रेस की सरकार में कार्यरत एक जांच एजंसी सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसे अयोध्या में बाबरी विध्वंस की फाइल को दोबारा खोलने का आदेश करे. सुप्रीम कोर्ट ने विहिप, शिवसेना और भाजपा के कई नेताओं को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब तलब किया है. सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब देने से पहले आडवाणी ने पार्टी और पांसा फेका है कि कल को अगर सुप्रीम कोर्ट में नोटिस के जवाब में आडवाणी इस बात से मुकर जाएं कि अयोध्या में जो कुछ हुआ उसमें उनका कोई रोल नहीं है तो पार्टी वाले उनको शूली पर न टांगे, इसलिए पार्टीवालों को पहले ही लालीपाप दिखा रहे हैं कि देखो तुम्हारी भी छवि धूमिल हुई है.
सेकुलर आडवाणी भले ही चाहे जितनी कोशिश कर लें लेकिन उन्हें भी मालूम है कि भाजपा में या तो सनकी भरे पड़े हैं या फिर शोहदों की भरमार है. उन्हें भाजपा की वैसे भी अब कोई चिंता नहीं है. अगर चुनाव सचमुच चार साल आगे चले गये तो भाजपा रहे या भाड़ में जाए, आडवाणी भाजपा को भी शर करके अपनी छवि चमकाने की कोशिश करेंगे. इसलिए अगर आडवाणी यह बात बोल रहे हैं कि अयोध्या में बाबरी विध्वंस के कारण पार्टी की विश्वसनीयता खत्म हो गयी तो जाते जाते आडवाणी भाजपा की जड़ में बचा खुचा मट्ठा भी डाल देना चाहते हैं. इसलिए आडवाणी भले ही नाम भाजपा का ले रहे हों और बात किसी और से कर रहे हों लेकिन वे बता रहे हैं कि भाजपा अयोध्या आंदोलन को इतना तूल न देती तो वे देश के सबसे बड़े सेकुलर नेता होते. लेकिन भाजपा के अयोध्या आंदोलन को बेवजह तूल देते रहने से देश को एक सच्चा सेकुलर नेता मिलते मिलते रह गया. आह! दर्द की कोई सीमा नहीं है. आडवाणी जो नहीं बोल रहे हैं वह बात समझ में आ रही है न?
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