Thursday, April 14, 2011

यौन शोषण यानी (गुरु आशीर्वाद)

 श्यामा रोज उम्र 30 वर्ष, वेसला टोनेसेन काझिमेर उम्र 27 वर्ष हेज काउण्टी कोर्ट के सामने अपने आंसुओं को रोक नहीं सकीं, जब अदालत ने अपना फैसला सुनाया। अदालत ने 82 वर्षीय प्रकाशानन्द सरस्वती पर लगे बाल यौन अत्याचार के सभी बीसों आरोपों को सही पाया और उसे सज़ा सुना दी। वैसे अयोध्या में जन्मे प्रकाशानन्द सरस्वती, अपने भक्तों के बीच श्री स्वामीजी के नाम से जाने जाते है और अमेरिका के टेक्सास प्रांत के आस्टिन में स्थित दो सौ एकड़ में फैले आश्रम 'बरसाना धाम' के संचालक हैं।
गौरतलब था कि दोनों महिलाओं के परिवार आश्रम में ही रहते थे, और आज भी वहीं रहते हैं। इन दो किशोरियों के साथ यौन अत्याचार का सिलसिला तब शुरू हुआ जब वे 12 साल की थीं। प्रकाशानन्द के भक्त उनके माता पिताओं ने इन किशोरियों की शिकायतों पर गौर करने के बजाय उन्हें यह समझाने की कोशिश की एक तरह उन्हें गुरू का आशीर्वाद मिल रहा है। बहरहाल, अदालत ने सारे प्रमाणों को देखते हुए स्वामीजी के खिलाफ फैसला दिया है। किशोरियों के साथ यौन अत्याचार जैसी जघन्य घटनाओं के लिए सरकारी वकील ने उन्हें हर अपराध के लिए बीस साल अर्थात चार सौ साल सज़ा सुनाने की अपील की थी। ताज़ा समाचारों के मुताबिक प्रकाशानन्द अपनी सहयोगिनी विश्वम्भरी देवी के साथ कहीं फरार हो चुका है और उसकी गिरफ्तारी के लिए अदालत ने वारंट निकाला है।
निश्चित ही अध्यात्म के नाम पर यौन अपराधों तथा अन्य किस्म के दुराचरणों में लिप्त प्रकाशानन्द कोई पहले शख्स नहीं हैं। उल्टे अपने भक्तजनों को इहलोक की चिन्ताओं को छोड़ परलोक की चिन्ता करने का उपदेश देनेवाले आध्यात्मिक गुरू इन दिनों ऐसे ही बेहद गैरआध्यात्मिक कारणों से सूर्खियों में रहते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं बीता जब अख़बार में एक अन्य स्वामी प्रेमानन्द की मृत्यु का समाचार छपा था। यह जनाब 90 के दशक में तब पहली दफा सूर्खियों में आए जब तिरूचिरापल्ली, तमिलनाडु स्थित इनके आश्रम में अपनी 13 शिष्याओं के साथ यौन अत्याचार की ख़बर बनी, और बाद में अपने एक सहयोगी की हत्या का आरोप भी इन पर लगा। इनके खिलाफ इतने पोख्ता सबूत थे कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इन पर दो बार उम्र कैद की सज़ा सुनायी थी।
वैसे चाहे प्रकाशानन्द या प्रेमानन्द को, जो 'गौरव' हासिल नहीं हो सका, वह दक्षिण के एक सूफी सन्त का अपने आप को अवतार बतानेवाले बेहद चर्चित अन्य बाबा को हासिल हुआ। कुछ समय पहले बीबीसी ने इन पर केन्द्रित अपनी एक डाक्युमेंटरी में उन तमाम लोगों को पेश किया जिनके साथ उन्होंने कथित तौर पर यौन अत्याचार किया था। लन्दन के 'डेली टेलिग्राफ' ने भी अपनी एक कवर स्टोरी में उनके कथित अपराधों की सूची जारी की थी जिसके केन्द्र में 20 साला अमेरिकी युवा सैम यंग की दास्तां भी शामिल थी जो बाबा के दो भक्तों का बेटा था जो लम्बे समय से उपरोक्त बाबा के दर्शन के लिये आते थे। 16 साल की उम्र में डरा धमकाकर उसके साथ यौन क्रीडाओं का जो सिलसिला बाबा ने शुरू किया उस पर तभी परदा हट सका जब उसने 20 साल की उम्र में अपने माता पिता को सबकुछ बता दिया। कुछ साल पहले इकानामिक पोलिटिकल वीकली के लेख 'रिलीजन अण्डर ग्लोबलायजेशन' में पी. राधाकृष्णन ने लिखा था कि एक बार जब खुद को भगवान घोषित करनेवाले इस बाबा के करतूतों पर से परदा हटा तब सैकड़ों ऐसे मामले सामने आये। फिर विदेशों में चल रहे इनके तमाम केन्द्र बन्द भी हो गये। अगर आप आस्र्टेलिया की यात्रा पर जाएं तो वहां हवाई अड्डों पर ही इस बाल यौन अत्याचारी सन्त से बचने की सलाह देते पोस्टर मिल जाएंगे।
अपराध एवम अध्यात्म का संगम सिर्फ खास धर्मों तक सीमित नहीं हैं। सूचना के अधिकार के तहत केरल पुलिस ने पिछले दिनों जारी किए आंकड़ें बताते हैं कि सूबे के 63 ईसाई धर्मगुरूओं के खिलाफ फिलवक्त आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। भारत की दण्ड विधान संहिता के अन्तर्गत आनेवाले सभी किस्म के अपराधों में - हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, हमला, अपहरण, चोरी, धोखाधड़ी -पादरी लोगों की संलिप्तता पायी गयी है। विगत सात साल के अपराध के आंकड़ों को देखें तो दो पादरी हत्या के आरोपी हैं जबकि दस पादरियों पर हत्या की कोशिश का इल्जाम लगा है। एक अन्य जनाब हत्या में मदद पहुंचाने के जुर्म में सलाखों के पीछे हैं। पांच लोग बलात्कार के आरोपी हैं जबकि कोल्लम के फादर जोसेफ अनैतिक व्यापार में अभियुक्त हैं, पांच पादरियों पर चोरी और मकानों में सेन्ध लगाने के इल्जाम लगे हैं।
रोमन कैथोलिक चर्च के अन्दर बच्चों के साथ चल रहे यौन अत्याचार की घटनाओं से पिछले कुछ सालों से लगातार परदा उठ रहा है और जिसके लिए चर्च को आधिकारिक तौर पर माफी भी मांगनी पड़ी है। वैसे चर्च के अगुआओं पर इस बात का भी दोषारोपण किया जा रहा है कि उन्होंने यौन अत्याचारी पादरियों के खिलाफ मिली शिकायतों के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और ऐसे अपराधियों को बचाने का ही काम किया। यहां तक कि वर्तमान पोप की लन्दन यात्रा को लेकर भी संशय बना हुआ था कि उन दिनों इस मामले में उनकी भूमिका भी सन्देह के घेरे में थी।
वैसे हिन्दोस्तां के समाज सियासी हालात पर एक सरसरी निगाह डालने से भी अन्दाज़ा लगेगा कि यहां साधुओं के प्रति प्रेम कुछ ज्यादा ही है। अगर ऐसा नहीं होता तो एक अनुमान के मुताबिक ' पूरे मुल्क में 80 लाख से ज्यादा ऐसे छोटे-बड़े साधु ' नहीं दिखाई देते। (Mass Education From Religious Platform, Vol 36, Website, EPW, March 27, 2004) आप पाएंगे कि एक लम्बा चौड़ा दायरा है जिसके एक छोर पर जादू टोना, प्रेतबाधा से मुक्ति की गारंटी देनेवाले या सन्तानप्राप्ति को सुनिश्चित करनेवाले तांत्रिकों-जैसे 'सबआल्टर्न' साधुओं से लेकर ज्यादा से ज्यादा समय विदेशों में रहनेवाले और कभी कभार इस शहर या उस शहर धार्मिक प्रवचनों को सम्बोधित करनेवाले बापुओं, आचार्यो की मेला लगा है। आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उद्योगों को 'आधुनिक भारत के मंदिर' कहा था और आज जब हम गणतंत्रा की इकसठवीं सालगिरह मना चुके हैं तब हम पा रहे हैं आध्यात्मिकता के प्रति आकर्षण गोया आज एक 'नये उद्योग' में रूपांतरित हो गया हैं।
और आध्यात्मिकता की हमारी प्यास की सबसे बड़ी कीमत बच्चे चुका रहे हैं, जो कहीं इस आश्रम में तो किसी अन्य पैरिश/चर्च में यौन अत्याचारों के शिकार बन रहे हैं।
? सुभाष गाताड़े

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