Wednesday, April 13, 2011

भारतीय मीडिया व तंत्र में मुसलमान होने की सज़ा


धर्मनिरपेक्ष देश में अल्पसंख्यक होना बिल्कुल भी अपराध नहीं! क्यूँ?? अरे भाई जिस देश में अल्पसंख्यक ही प्रधानमन्त्री हो वहाँ अल्पसंख्यक अपना रोना रोयें यह कुछ तार्किक नहीं लगता. लेकिन मैं तस्वीर को पलट कर दुसरी तरफ़ की दशा पेश करता हूँ:::

तंत्र का भुक्तभोगी
क्या ये चेहरा याद है आपको ? नहीं न ! चलिए मैं आपको बताता हूँ कि ये कौन है और इसकी सच्ची कहानी क्या है!! सन 2007 की एक घटना याद होगी आपको जब गोरखपुर में बम धमाका हुआ था जिसमें धरपकड़ शुरू हुई और 27 नवम्बर 2007 को पश्चिम बंगाल सीआईडी ने बड़ानगर, कोलकाता से इस शख्स जिसका नाम आफ़ताब आलम अन्सारी है, को पकड़ कर 12 दिसम्बर 2007 को उत्तर प्रदेश एसटीऍफ़ को सौप दिया. उस के बाद इसके साथ क्या हुआ ये आपको मीडिया में आई खबरों से ज़रूर पता होंगी.... अगर नहीं पता तो मैं बताता चलूँ कि आफ़ताब आलम अंसारी को यूपी एसटीऍफ़ ने इसे मुख्तार/राजू/ बांग्लादेशी नाम का बता कर गिरफ्तार किया और इस क़दर प्रताड़ित किया जिसे सुन कर आपकी रूह काँप उठेगी. उसे शारीरिक रूप से इतना प्रताड़ित किया कि वह आज तक नहीं भूला. उसे मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया कि वह आज भी उस सदमें से उबरा नहीं है. उसे गोरखपुर (योगी आदित्यनाथ का गढ़) बम काण्ड का मुख्य आरोपी बनाया गया. फिर भारतीय मीडिया में बिना एक क्षण गंवाएं उसे आतंकी-आतंकी बता कर ख़ूब टीआरपी बटोरी. टीवी पर लाल अंग का घेरा बना-बना कर, ज़ूम करके ख़ूब बताया कि देखिये इस आतंकी को जो गोरखपुर बम काण्ड का दोषी है, इसी ने बम लगा कर निर्दोषों को जान से मार डाला... वगैरह-वगैरह !

प्रताड़ना का दौर यहीं नहीं थमा पुलिस ने उसे बंगलादेशी आतंकी संगठन हुजी का सरगना बता कर गोरखपुर आतंकी घटना का मुख्य आरोपी बना दिया. हमारे परिपक्व चौथे खम्बे ने इस क़दर घुसाया वह क्या उसकी रूह भी पनाह मांग उठीहमारे मीडिया ने उसे खून सनसनी बना के पेश किया और पुलिस के अफसाने को हकीकत बना के बहुसंख्यक दर्शकों का ख़ूब मनोरंजन किया. बेचारे  आफताब को पूरे देश ने ग़द्दार और आतंकवादी मान लिया.

मीडिया और तंत्र की कहानी से पहले मैं आफ़ताब आलम अंसारी की हकीकत:::
आफ़ताब आलम अंसारी जो कि कोलकाता पॉवर कम्पनी का कर्मचारी है, इस वक़्त आज़ाद है और आतंकी होने का ठप्पा भी उस पर से हट चुका है लेकिन आतंकी ठप्पा हटने कि ख़बर तो बस उसके इलाके के स्थानीय ही जानते हैं, देश भर के लोगों को जो बताया उसे मीडिया ने दोबारा पलट कर नहीं बताया कि आफ़ताब निर्दोष है.


आफ़ताब ने बाद में राज्य के मुख्यमंत्री से मुलाक़ात की और पूरा वृतांत सुनाया, साथ ही अपनी माता आयशा बेगम की मानसिक आघातोपरांत ख़राब होती सेहत की भी जानकारी दी और मदद माँगी. हालाँकि अब ये बीती बात है कि आखिरेकार कैसे आफ़ताब को बंगाल पुलिस ने पकड़कर यूपी एसटीऍफ़ को संपा और कैसे उस निर्दोष देशभक्त मुसलमान को आतंकी बना दिया. और यह भी खुलासा हो चुका है कि कैसे यूपी एसटीऍफ़ ने उसे फर्जी तरीके से मास्टरमाईंड आतंकी क़रार दिया.


ख़ैर ! आफताब अब आज़ाद है और अब अपनी मर्ज़ी की, एक आज़ाद भारतीय की ज़िन्दगी जी सकता है मगर उनकी मान का कहना है कि जो कुछ उनके साथ बीता उसका खामियाज़ा कोई दे सकता है !??? हर कोई जो मिलता है वह अफ़सोस ज़ाहिर करता है और अब तो उनकी ज़िन्दगी एक अफ़सोस बन कर रह गयी है. आफताब अब आज़ाद है और उसका कहना है कि क्या इस तरह की मानसिकता के लोग जो सरकारी महकमें में है इस तरह की हरक़त पर लगाम देंगे या अभी और आफ़ताब जैसों को प्रताड़ित करेंगे!!!???
अगर हम इंडियन पुलिस में बैठे कुछ नकारात्मक प्रवृत्ति के अधिकारीयों के इतिहास पर ग़ौर करेंगे तो पाएंगे कि उसने कई मर्तबा अपने पूर्वाग्रह के चलते निर्दोष मुसलमानों को प्रताड़ित किया और अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया.
जब आफ़ताब रिहा हुआ तभी गोरखपुर ब्लास्ट के आरोप में गिरफ़्तार ख्वाजा युनुस के निर्दोष होने की आवाज़ बुलंद होने लगी और यह सवाल खड़ा हुआ कि कैसे एक खाड़ी देश से वापिस आया हुआ सोफ्टवेयर इंजिनियर को आतंकवाद की धाराओं में 27 दिसंबर 2002 को गिरफ्तार किया गया और कैसे वह जेल में ठूंस दिया गया. मगर बात आगे बढ़ती कि पता चला ख्वाजा युनुस औरंगाबाद में एक्सीडेंट में मृत पाया गया. बाद में खुलासा हुआ कि पुलिस प्रताड़ना में उसकी मृत्यु हुई और उसे साजिशन रोड एक्सीडेंट क़रार दिए जाने की नाकाम कोशिश की गयी. मानवाधिकार के हितैसियों के आगे आने पर उसकी माँ आशिया बेगम ने दोषी पूर्वाग्रही पुलिस वालों के ख़िलाफ़ ऍफ़आईआर लिखी गयी, हालाँकि किसी भी पुलिस अफसर को न तो गिरफ़्तार किया गया और न ही कोई सज़ा दी गयी.    
  
एक बड़ा सवाल
भारत में इस समय तो न तो कोई बम धमाका हो रहें हैं और न ही कोई मुसलमान पकड़ा जा रहा है बल्कि किसी भी गैर मुस्लिम देश में इस समय इस तरह की कोई भी घटना का कोई उल्लेख नहीं मिल रहा है. हाँ ! मुस्लिम देशों पर पश्चिम व अमेरिका की नाजायज़ घुसपैठ की खबरें ज़रूर आ रही है जिसे हमारा मीडिया उन्हीं लफ़्ज़ों के साथ परोस रहा है जैसा कि पश्चिम व अमेरिका चाहता है. एक और साजिश भी चल रही है भारत में, युवायों में खाओ, खुजाओ, मौज उड़ाओ की प्रवृत्ति को खुला समर्थन दिया जा रहा है जिससे वे बौद्धिक चिंतन न कर सकें ! - सलीम ख़ान   
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