Saturday, April 30, 2011

पश्चिम बंगाल के आम चुनावों में अमेरिकी दखलंदाजी पर भारतीय मीडिया चुप क्यों?



विकिलीक्स के जरिये 'द-हिन्दू ' को हासिल हुएअमेरिकी दूतावास से भेजे गए गोपनीय 'केवल्स' अब सिर्फ चिंतनीय मात्र नहीं रह गए.गोपनीय कूटनीतिक तार संदेशों के छप कर सार्वजनिक हो जाने का देश और दुनिया पर दूरगामी  असर अवश्य होगा.इन संदेशों ने एक ही झटके में यह उजागर कर दिया  की यूपीए सरकार के सम्पूर्ण कार्यकाल और एनडीए के कार्यकाल में भी अमेरिका और भारत के बीच जो उत्तर आधुनिक रिश्ता कायम हुआ उसकी परिणिति और प्रकृति क्या है?
       बहरहाल विकिलीक्स के खुलासों का विश्लेषण अभी किसी ठोस मुकाम तक भले ही न पहुंचा हो किन्तु यह सुनिश्चित है कि अब तक जो भी सन्देश ओपन हुए हैं उनमें भारत को चिंतनीय दुरावस्था कि स्थिति में खड़ा कर दिया है.चाहे वो अटॉमिक रिएक्टरों कि खरीद -फरोख्त हो , -१-२-३-एटमी करार होकार्पोरेट लाबी के मार्फ़त अमेरिकी आर्थिक मंदी के संकट का भार भारतीय आम-जनता के कन्धों पर लादने का सवाल हो,या आर्थिक सुधारों के नाम पर वैश्वीकरण कि नकारात्मक उपलब्धियों का सार हो-विकेलीक्स के खुलासों से यह साफ़ जाहिर होता जा रहा है कि भारत के प्रतेक क्षेत्र में आज अमरीका की सीधी पहुँच हो चुकी है. न केवल आर्थिक मामले बल्कि नीतिगत-रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों में 'अमेरिका की भूमिकाभयावह हो चुकी है. एक ताज़ा खुलासा विकीलीक्स ने जो किया है उस पर देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने मौन क्यों साध रखा है? अमेरिका ने पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा  सरकार को उखाड़ फेंकने  केलिए जुलाई  2008 में जो जो योजना बनाई थी  उस  सम्बन्ध  में भारत स्थित तत्कालीन  अमेरिकी दूतावास से श्वेत भवन और सेक्रेटरी आफ स्टेट को भेजे गए केवल्स में स्पष्ट सन्देश है कि- ममता बनर्जी  को पूरा सहयोग और समर्थन जुटाने के लिए भारत के वुद्ध्जीवियों और एन जी    को काम पर लगाओ"   वैसे तो   भारतीय  राजनीत   का  पूंजीवादी  खेमा  आजादी के  बाद से ही अमेरिकन  साम्राज्यवाद  के प्रभाव  में  गया था, किन्तु सोवियत पराभव को अंतिम सत्य मानने की एतिहासिक  विडंबना  से जो  कल्याणकारी राज्य कि अवधारणा थी  वह  90 के दशक  में वैश्विक पूंजीवादी आंधी में धराशायी  हो गई थी. दुनिया में मुसलमानों के लिए जो स्थान मक्का -मदीना का है,ईसाइयों के लिए वेटिकन का है,सिखों के लिए स्वर्ण मंदिर का है और हिन्दुओं के लिए संगम{प्रयाग}का है,वही स्थान - अहिंसा के रास्ते -लोकतान्त्रिक -संसदीय प्रजातंत्र के रास्ते देश और दुनिया में समाजवाद स्थापित करने के लिए बचन बद्ध-प्रतिबद्द वामपंथियों का -केरल-बंगाल और त्रिपुरा का है.यह सच है की ३५ साल तक सत्ता में रहने से एक पूरी पीढी ही एंटी इनकम्बेंसी फेक्टर से ग्रस्त हो चुकी है.उसकी नजर में वामपंथ के बलिदान का कोई महत्व नहीं.उसकी समझ में धर्मनिरपेक्षता का कोई महत्व नहीं ,क्योंकि इन वाम शाशित तीनो राज्यों में विगत ३० साल में शायद ही कोई गोधरा जैसा या गुजरात - मुंबई पर हुए आतंकी हमलों जैसा कोई बाकया हुआ हो! खुशहाल इसान की भी  फितरत होती है कि सब कुछ ठीक है तो क्या हुआ ?कुछ नया आजमाने में क्या हर्ज है? किन्तु वामपंथ को अपने केड्रों कि प्रतिबद्दता और अतीत कि नेकी के अलावा अपनी शानदार वैज्ञानिक -एतिहासिक -द्वंदात्मक-सर्वहारा परस्त विचारधारा पर इस घोर पूंजीवादी दौर में भी पूरा विश्वाश है कि इस बार भी  जनादेश उन्हें ही मिलेगा!
       बंगाल के विधान सभा चुनावों  में वहाँ की सत्ता  के सञ्चालन हेतु अमेरिका को ममता  की फ़िक्र क्यों है? मओवादिओं और आतंकवादिओं  के गठजोड़ से    माननीय प्रधानमंत्री और कांग्रेस ने कोनसा भरोसा पाल रखा है वे ही जाने! अमेरिका की कोशिश है कि  विकिलीक्स के रहस्य-उद्घाटनों को हवा में उड़ा दिया दिया जाये. विकिलीक्स द्वारा उजागर किये गए सन्देश नितान्त  भारत विरोधी और राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला हैं. इस सन्दर्भ में  देश के स्वयम्भू राष्ट्रवादी, अध्यात्मवादी, बाबा, गांधीवादी और लोकतंत्र  का चौथा खम्बा कहे जाने वाला दृश्य-श्रव्य-छप्य मीडिया  मौन क्यों है?
      
जो व्यक्ति और संगठन लगातार वाम मोर्चे पर जहर उगल  रहे हैं, जो अखवार या चेनल्स वाम मोर्चा सरकार कि ३५ साल कि शानदार उपलब्धियों पर गुड गोबर कर रहे हैं, जो सूचना एवं संचार माध्यम किसी एक ऐयाश बाबा या क्रिकेट खिलाडी के नकली आंसुओं पर आठों पहर निगरानी रखता होविजन के रूप में घोर मिथ्या उत्पाद  बेचने कि बाजारू बीमारी से ग्रस्त होयदि वो बंगाल में एक बेहतर -ईमानदार और सर्वहारा परस्त सरकार को अपदस्थ करवाने में अमेरिकी  हस्तक्षेप को नजर-अंदाज़ करे तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए!

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