Friday, May 27, 2011

हम सब चोर हैं



जिसकी जितनी चादर, उतना पैर फैलाता है आदमी - सुना होगा. 
हम सब चोरी करते हैं अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक - यथाशक्ति. चपरासी साहब से मुलाकात हो जाने पर चाय-पानी के पैसे बक्शीश में ले लेता है या फाइल एक कमरे से दूसरे कमरे तक पहुँचाने के ईनाम स्वरुप कुछ ले लेता है. बाबू फाइल ढेरों के नीचे से निकाल कर एक दस्तखत घसीट कर 'आउट' ट्रे में डालने का मेहनताना  ले लेता है. बड़ा बाबू उस पर सही नोट लिखने के लिए भेंट स्वरूप कुछ लेलेता है. ट्रेजरार बिल का भुगतान करने के लिए, अडवांस लोन के लिए, पेंशन के लिए, - यानि जहाँ आपको पैसा लेना हो, वहीं अपना  वाजिबी कमीशन ले लेता है, कभी ज्यादा कभी कम - ज्यादा जब की उसमें सबका हिस्सा होता है. बड़े अफसर सुना है बड़ा कमीशन लेते हैं और मिनिस्टर बहुत बड़ा अडवांस ले लेते हैं contract या license दिलवाने का, ट्रान्सफर करवाने का, नौकरी दिलवाने का...वगैरह वगैरह.

यूँ ही नहीं खड़ी हो जाती बड़ी बड़ी कोठियां - खाने वालों  की और खिलने वालों की!
और हम जैसे लेक्चरार बेचारे किसी काम के नहीं, तो ट्यूशन पढ़ा कर ही काम चला लेते थे. सुना है अब  होशियार हो गए मास्टर लोग भी - क्लास में  पढ़ना बंद कर घर में क्लास लेना शुरू कर दिया - तो धन की बौछार होने लगी! पहले स्कूटर, फिर कार, फिर बड़ा बंगला. पहले मास्टरों को कोई बची खुची योग्य वधु मिला करती थी, अब सुना है उतना बुरा हाल नहीं है! और दोनों मास्टर हों  तो कमाई ही कमाई, और छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ!
तो भाई, जिसकी जितनी हिम्मत, जितनी ताकत उतनी ही तो चोरी करेगा न! यथाशक्ति ! और जहाँ उसकी बिलकुल गुंजाइश नहीं वहां कामचोरी तो कर ही सकता है आदमी, और सकती है औरत:

- देखते नहीं हम बिजी हैं - फोन पर!
- अभी देखते  हैं - ज़रा बाथरूम जा कर आते हैं.
- अब चाय तो पी लेने दीजिये!
- अरे ये बुनाई  का फंदा डाल लेने दीजिये वरना गड़बड़ हो जायगी, बस एक मिनिट!
- हाँ तो क्या काम था?
- वो फॉर्म? वो तो वहां वो वर्माजी देंगे - वो जो सिगरेट पीने उठ रहे हैं! उन्हें एक पेकेट  Goldflake  खरीद दीजिये और एक किमाम का पान, फ़ौरन फॉर्म मिल जाएगा - बिना दान-दक्षिणा कुछ होता नहीं भाई आजकल!
- क्यूँ गुस्सा हो रहे हैं - क्या घर से लड़ कर आये हैं?
यानी कामचोरी और ऊपर से सीनाजोरी!

और  तरक्की भी हुई है. सुना है अंग्रेजों के ज़माने में और आज़ादी के शुरू में पैसा देकर काम हो जाता था, और अब? पैसा सब से ले लेते हैं - किसी एक का तो काम हो ही जाता है! फिर क्या आप पैसा वापस लेने जायेंगे? कमज़ोर आदमी मजबूरी में या जल्दी में रिश्वत - नहीं, नजराना - दे तो देता है पर हिम्मत नहीं कि जाकर वापस ले ले! अजी साहब दम चाहिए  पैसा लेने  और पैसा देने के लिए!

आप कभी कोई ऐसा काम नहीं करते? ज़रूर कमज़ोर हैं! कमज़ोर हैं, तो मजबूर हैं! सुना होगा न 'मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी!' बने रहिये अच्छे - आपकी अपनी मज़बूरी है!

अब आप तो सब जानते हैं, समझदार हैं. क्यूँ इस सामाजिक पृथा के पीछे पड़े हैं? बेकार भृष्टाचार का नाम देकर परेशान कर रहे हैं लोगो को - और खुद भी दुखी हो रहे हैं? न बदली है दुनियां न बदलेगी - सब कुछ यू हीं रहेगा!

आसमान पर खुदा है, और सब ठीक ठाक है! वो अब अवतार लेने का कष्ट नहीं करने वाला आपकी मदद  के लिए! कोई कल्कि-वल्कि नहीं आने वाला! बल्कि, घोर कलियुग है.

एक ओसामा से उम्मीद थी कि ये ज़ालिम  दुनियां बर्बाद करने में कामयाब होगा, वो भी नहीं रहा! शायद फिर से दुनिया बनती तो कुछ अच्छी  बनती!  मगर अमरीका वाले हर जगह गड़बड़ कर देते हैं -  कुछ भी सही नहीं कर सकते ये लोग!

सुना है कुछ लोग लगे हुए हैं लोकपाल या महा लोकपाल बनवाने के लिए. क्या हो जाएगा? जो भी आएगा तो होगा तो हम सब चोरों में से ही कोई एक उस कुर्सी पर,  और अगर वो गलती से ईमानदार निकल गया तो उसके साथी, और उसके मातहत, सब मिल कर उसे उल्लू बनाते रहेंगे!
जब तक हम सब चोर हैं तो चोर ही राज करेंगे न! और हम साहूकार हैं, पर कमज़ोर, तो भी वही होगा - चोर राज करेंगे, चोर धंधा करेंगे, चोर शासन चलाएँगे - अपने अपने फायदे के लिए. सबका फायदा तो देश का फायदा!

तो आप चोर नहीं? तो शक्ति बढ़ाइए - यथाशक्ति काम होता है! वो यथाशक्ति  चोरी करते हैं तो आप यथाशक्ति रोकिये.
शक्ति आएगी कहाँ से? मोहनदास गाँधी कि कहाँ से आई थी? और फिर लाखों करोड़ों हिन्दुस्तानियों  में कहाँ से आई थी?
आत्मा से, सत्य से, सत्याग्रह से. बन्दूक बम से नहीं मिटती बुराई. साहसी सत्यवान आत्मा से मिटती है. तो सोच लो भाई - है हिम्मत? याद रहे, यथाशक्ति - अच्छाई  या बुराई?

वैसे मुझसे पूछो तो आराम से रहो - सब चलता है अपने देश में! मिलजुल कर भाईचारे से रहो! खाओ और खाने दो!
भूखे मरते हैं कुछ लोग तो मरने दो न! वो महान वैज्ञानिक कह गया है, क्या नाम था उसका? हाँ डार्विन! कहा था न उसने, जो शक्तिमान है वो बचेगा बाकी सब मिट जायेंगे. जो कमज़ोर हैं, वो मिटेगे ही. आप क्यूं परेशान होते हैं!

आप मस्त रहिये!
शुभचोरी और शुभमस्ती की शुभकामना कर आपसे आज्ञा लेता हूँ.
__________
फकीर अजमेरी
(प्रेम माथुर)
Prem S Mathur
8 Lachlan Rd, Willetton
WA 6155
Australia
Phone: 618 9354 9316

1 comment:

  1. विदेश में रहकर देश का ज्ञान , आप तो खोजी पत्रकार नजर आ रहें व्यंग्य का सहारा लेकर सच्चाई वयां करती हुई रचना , बधाई ....

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