आख़िर क्यों भारत सरकार एन्काउन्टर बटला हाउस की हक़ीक़त क्या है इसकी सच्चाई को
सामने नहीं लाना चाहती। क्यों उसे लगता है कि इसकी सीबीआई जांच से हमारी पुलिस
फोर्स का मनोबल टूटेगा। क्या पुलिस और सेना में इन्सान नहीं हैं? क्या उनसे जाने अनजाने कोई भूल नहीं हो सकती? और क्या किसी एक की भूल को पूरे विभाग के काम-काज पर प्रश्न चिन्ह माना जा
सकता है? बिल्कुल नहीं। अब जबकि बटला
हाउस एन्कान्टर में मारे गए आतिफ़ और साजिद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आ गई है
और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिगविजय सिंह विशेष न्यायालय गठित करने की मांग पर
विचार करने की बात कह रहे हैं, उन्होंने बटला हाऊस एन्काउन्टर के बाद दो भगोड़े अभियुक्तों के परिवार के
सदस्यों के साथ गृहमंत्री पी॰ चिदम्बरम से भेंट भी की है, तो अंदाज़ा किया जा सकता है कि यह मामला एक
बार फिर उठ गया है और इस बार पूरी सच्चाई सामने आएगी ही। अतिसम्भव है कि अब मानव
अधिकार आयोग भी विचार करने पर मजबूर हो कि उसने जो रिपोर्ट दी थी, क्या उसे यह रिपोर्ट देनी चाहिए थी, या फिर मानव अधिकार आयोग के चेयरमैन अब उस पर
पनुर्विचार की आवश्यकता महसूस करते हैं। आतिफ़ और साजिद के वह
चित्र, जिसमें उनके ज़ख़्मों के निशान चींख़-चींख़ कर पुलिस ज़्यादती को बेनक़ाब कर रहे थे। बटला हाऊस
एन्काउन्टर में आतिफ़ और साजिद पुलिस ज़्यादतियों के शिकार हुए; पोस्टमार्टम रिपोर्ट बटला हाऊस एन्काउन्टर में
कथित आतंकवादी आतिफ़ अमीन और मुहम्मद साजिद पुलिस की ज़्यादतियों का शिकार हुए थे।
यह स्पष्ट किया है इन दोनों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने। रिपोर्ट से यह बात सिद्ध
हुई है कि आतिफ़ और साज़िद के शरीर पर गोलियों के ज़ख़्मों के अलावा मारपीट के भी
चिन्ह थे। यह दावा आतिफ़ और साजिद के उन रिशतेदारों ने भी किया था जिन्होंने दोनों
के दफ़्न किए जाने से पहले नहलाया था। यहां पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि पुलिस
के अनुसार जब यह असल मुडभेड़ थी तो फिर आतिफ और साजिद के साथ मारपीट करने की ज़रूरत
क्या थी? आतिफ़ और साजिद आतंकवादी कार्रवाइयों में
लिप्त थे कि नहीं, यह फैसला तो अदालत करेगी। लेकिन सितम्बर 2008 बटला हाऊस एन्काउन्टर की असलियत पर पहले ही दिन से विभिन्न दिशाओं से संदेह
प्रकट किया जा रहा है और इस पर चर्चा की जाती रही है। आतिफ़ और साजिद के शरीर पर
गोलियों के अलावा अन्य ज़ख़्मों के चिन्ह और रिशतेदारों तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं की
ओर से प्रस्तुत किए गए प्रमाण और तथ्य इस बात की ओर साफ़ संकेत करते हैं कि यह
मुडभेड़ फ़र्ज़ी थी। एन्काउन्टर के बाद से यह पहला मौक़ा है जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट
आम की गई है जिसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं आरटीआई कर्मी अफ़रोज़ आलम साहिल
जो जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र हैं और उनकी अन्थक कोशिशों का ही परिणाम है
कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त हो सकी। अफ़रोज़ आलम ने इस रिपोर्ट के लिए दिल्ली
पुलिस, एम्स अस्पताल, सेंट्रल इन्फोरमेशन कमीशन और मानव अधिकार
आयोग के दरवाज़े खटखटाए, लेकिन उन्हें हर बार किसी न किसी बहाने से वापस लौटा दिया जाता रहा। लेकिन
आख़िरकार मानव अधिकार आयोग ने उन्हें आरटीआई के तहत पोस्टमार्टम रिपोर्ट उपलब्ध करा
दी। आतिफ़ अमीन की चार पृष्ठों पर आधारित पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण
बताया गया है कि विभिन्न ज़ख़्मों से ख़ून के बहाव और पीड़ा के कारण मृत्यु हुई है, सभी घाव अग्नि शस्त्रों यानी बंदूक़ की गोली
के हैं। जबकि ज़ख़्म नं॰ 7 शरीर के ऊपरी भाग पर है जो किसी वस्तु से मारने या रगड़ने के कारण से है। 24 वर्षीय आतिफ़ अमीन के शरीर पर कुल 21 घावों के निशान हैं जो मृत्यु से पहले के हैं और उन 21 में से 16 घाव बंदूक़ की गोलियों के हैं। घाव नं॰ 7 का विवरण बताते हुए
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है परंतु ‘‘पैर के घुटने पर 1ण्5ग1 सेंटीमीटर की एक खरौंच है जिसका रंग सुर्ख़ और
बादामी है। ’’इसी तरह मुहम्मद साजिद
जिसके सर के ऊपरी भाग पर गोलियों के पांच छेद हैं। चार पृष्ठों पर सम्मिलित उसकी
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सिर में गोली लगने से हुई बताया गया है। ’’साजिद के शरीर पर घावों के 14 चिन्ह हैं। एक से 12 नम्बर तक के घाव बंदूक़ की गोलियों के हैं
जबकि 13 और 14 नम्बर के घाव किसी वस्तु या ज़मीन पर ज़ोर दार टक्कर के कारण हुए हैं। रिपोर्ट
के अनुसार यह सभी घाव मृत्यु से पहले के हैं। घाव नम्बर 13 का विवरण प्रस्तुत करते हुए रिपोर्ट कहती है
कि श्4ग2 सेंटीमीटर की खरौंच, जिसका रंग लाल है और पीठ के बीच में है’ और घाव नम्बर 14 जो 3ण्5ग2 सेंटीमीटर की खरौंच है जो दाहिने पैर के सामने
वाले हिस्से में घुटने के पास है।
दो पृष्ठों की इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की
रिपोर्ट जिनको मुडभेड़ के दौरान गोली लगी थी उनकी मृत्यु का कारण बंदूक़ की गोली से
पेट में लगे घाव के कारण बहुत अधिक ख़ून बहने से बताती है। इंस्पेक्टर शर्मा को मौत
से पहले लगी चोटों के बारे में रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि बायें कंधे पर
और बाएं बाजू के ऊपरी भाग पर भीतरी घाव की जांच तथा सफाई की गई। इसी तरह बाएं हाथ
और बाएं कंधे से 10 सेंटीमीटर नीचे और कुहनी के जोड़ से आठ सेंटीमीटर से ऊपर ऊपरी घाव की सफाई की
गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार इंस्पेक्टर शर्मा 19/09/2008 को जामिया नगर में पुलिस एन्काउन्टर में
जवाबी गोली बारी में घायल हुए हैं। इनको होली फैमली अस्पताल ले जाया गया, जहां उसी दिन शाम को 7 बजे उनकी मृत्यु हो गई।
इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का वह चित्र जिसमें आप्रेशन बटला हाऊस के दौरान गोली लगने के तुरंत बाद उन्हें उनके दो साथी पैदल चलाकर सहारा देते हुए गाड़ी तक ले जा रहे हैं, केवल हिंदुस्तान टाइम्स और हमने प्रकाशित किया। उसके बाद हमने एन्काउन्टर में मारे गए साजिद का वह चित्र प्रकाशित किया जिसमें उसके सिर, कंधे और सीने पर लगी गोलियों के चिन्ह साफ़ दिखाई दे रहे हैं। हमारा अनुमान है कि यह तमाम गोलियां ऊपर से नीचे की ओर शरीर में घुसी हैं, अर्थात जिसने गोली चलाई वह गोली लगने वाले से ऊपर था। अगर हमारा यह अनुमान सही है तो इसे आमने सामने की मुडभेड़ नहीं कहा जा सकता। लेकिन अत्यंत आश्चर्यजनक बात यह है कि हमारा राष्ट्रीय मीडिया विशेष रूप से इलैक्ट्राॅनिक मीडिया इस ओर उतना ध्यान नहीं दे रहा है, जबकि शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का प्रकाशित चित्र और एन्काउन्टर में मारे गए साजिद का चित्र इस केस की दो अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ियां हैं। हमारे जिस इलैक्ट्राॅनिक मीडिया की नज़र इतनी पैनी है कि 13 सितम्बर को बम धमाकों से पहले और बाद के तीन घंटों में गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने कुल कितने सूट बदले, किस अवसर पर कौन से रंग का सूट पहना, उसे ब्रेकिंग न्यू़ज़ बनाकर पेश किया (हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं) दर्शकों के विचार मांगे, परिणाम की घोषणा की, 97 प्रतिशत दर्शक शिवराज पाटिल को गृहमंत्री नहीं देखना चाहते और इस आधार पर उनका त्यागपत्र मांगा, वह इलैक्ट्राॅनिक मीडिया शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की मृत्यु की सच्चाई जानने के लिए बेचैन नज़र क्यों नहीं आया? इसी तरह साजिद के इस चित्र से यह प्रश्न खड़ा होता है कि गोलियां किस एंगल से चलाई गईं और कितनी दूरी से। यह भी चर्चा का विषय नहीं बना। राष्ट्रीय मीडिया कहा जाने वाला इलैक्ट्राॅनिक मीडिया पुलिस द्वारा दी गई सूचनाओं को भी ब्रेकिंग न्यूज़ के तहत सनसनी ख़ैज़ अंदाज़ में पेश करता रहा। क्या इसे दायित्व का निर्वाहन समझा जा सकता है?
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