Sunday, October 30, 2011

आतंक का वास्ता राजनीति से है, और धर्म का मानवता से-2



भारत में अंग्रेज शासकों की ‘फूट डालो और राज करो‘ की नीति व इतिहास को साम्प्रदायिकता के चश्मे से देखने के कारण हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहले से ही आपसी शंका व घृणा का भाव था, इस्लाम के बारे में पश्चिमी दुष्प्रचार ने भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को और गहरा किया। सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने हिन्दू धर्म के नाम पर जो तर्क दिए हैं वे अत्यंत बेहूदा और आधारहीन हैं। भारत में किए गए अधिकतर आतंकी हमले किसी एक समुदाय को निशाना बनाकर नहीं किए गए थे। इसके कुछ अपवाद हैं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और असीमानंद द्वारा मस्जिदों या ऐसे स्थानों पर किए गए बम विस्फोट, जहाँ मुसलमान बड़ी संख्या में इकट्ठा थे। दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला 11.9.2001 को न्यूयार्क में हुआ था और इसमें सभी धर्मों और देशों के नागरिक मारे गए थे। पाकिस्तान में अल्कायदा द्वारा मारे गए लोगों की संख्या हजारों नहीं तो कम से कम सैकड़ों में जरूर होगी। यह मान्यता मूखर्तापूर्ण है कि मुस्लिम शासकों ने भारत में इस्लाम का प्रचार करने के लिए देश पर कब्जा किया था। भारत में सम्राट अशोक को छोड़कर किसी राजा ने धर्मप्रचार नहीं किया। केवल अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया और वह भी शांतिपूर्ण तरीकों से। भारत में इस्लाम को फैलाया सूफी संतों ने और हिन्दू धर्म की निष्ठुर जाति प्रथा के चंगुल से निकलने के लिए दलितों ने बड़ी संख्या में इस्लाम को गले लगाया। इस तर्क में कोई दम नहीं है कि हिन्दुओं को मारकर और ढेर सारे बच्चे पैदा कर मुसलमान, भारत को दारुल इस्लाम बनाना चाहते हैं। पिछले साठ सालों में भारत की कुल आबादी में मुसलमानों के प्रतिशत में मात्र 0.8 की वृद्धि हुई है जबकि इसी अवधि में आदिवासियों का प्रतिशत 7.5 से बढ़कर 8.5 हो गया है। इन दोनों समुदायों की आबादी की अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि दर के पीछे गरीबी और अशिक्षा है न कि अपने समुदाय की आबादी बढ़ाने का कोई सोचा-समझा षड्यंत्र।
“सभ्यताओं के टकराव“ के सिद्धांत से ही जन्मी है यह मान्यता कि सभी आतंकी मुसलमान होते हैं। यह मानने में किसी को कोई गुरेज नहीं हो सकता कि अमरीका द्वारा स्थापित किए गए मदरसों में मुस्लिम युवकों को निर्दयता से निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मारने के लिए प्रायोजित किया गया था परंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत में हुए आतंकी हमलों के बाद पकड़े गए अधिकांश मुस्लिम युवक, अंततः निर्दोष साबित हुए।
यह सोचना भी गलत है कि भारत में आतंकी हमलों में केवल हिन्दू मारे जाते हैं। 26.11.2008 के आतंकी हमले में मारे गए मुसलमानों का प्रतिशत, आबादी में उनके प्रतिशत से कहीं अधिक था। हालिया (13.07.2011) हमले में भी दोनों समुदायों के लोग मारे गए। यह कहना कि आतंकवाद की समस्या का हल हिन्दुओं में एकता स्थापित करना और हिन्दू पार्टी को समर्थन देना है, राजनैतिक प्रचार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। भारत ने अपनी इच्छा से धर्मनिरपेक्ष राज्य बने रहना स्वीकार किया था। हमारे संविधान निर्माताओं ने बहुत सोच-समझकर इस्लामिक या हिन्दू राष्ट्र के सिद्धांत को खारिज किया था।
हम यह नहीं भूल सकते कि हेमन्त करकरे की सूक्ष्म जाँच के फलस्वरूप प्रज्ञा सिंह ठाकुर से लेकर असीमानंद तक तथा आर.एस.एस. के एक प्रमुख नेता इन्द्रेश कुमार के आतंकवादी हमलों में शामिल होने के अकाट्य सुबूत सामने आए हैं। इस्लाम के नाम पर लोगों के दिमागों में ज़हर भरने का काम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महाशक्ति कर रही है, जिसका लक्ष्य अपने राजनैतिक उदेश्यों की पूर्ति है। हमारे देश में हिन्दुत्व की विचारधारा की पोषक वे शक्तियाँ हैं जो हमारे देश के बहुवादी एवं प्रजातांत्रिक चरित्र का गला घोंटना चाहती हैं। बहुवाद व प्रजातंत्र हमारे स्वतंत्रता संग्राम की थाती हैं। आतंकवादी हमलों का बदला लेने या पाकिस्तान पर हमला करने की बातें शुद्ध पागलपन हैं और ऐसा कोई भी कदम, भारतीय उपमहाद्वीप को बर्बादी के रास्ते पर ले जाएगा।
किसी एक समुदाय पर आतंकवाद का पोषक होने का आरोप लगाना गलत है। कुछ असीमानंदों या दयानंदों के कारण पूरा हिन्दू समुदाय आतंकवादी नहीं हो जाता।

-राम पुनियानी
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मोबाइल: 09322254043 

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