Friday, October 28, 2011

आतंक का वास्ता राजनीति से है, और धर्म का मानवता से





दिनांक 13 जुलाई 2011 को मुंबई में हुए आतंकी बम विस्फोटों के बाद से हमारे देश में घृणा फैलाने व समाज को बाँटने वाली ताकतें एक बार फिर अपना सिर उठा रही हैं। धार्मिक राष्ट्रवाद के पैरोकार अपना पुराना राग एक बार फिर अलापने लगे हैं। वे धर्म, विशेषकर इस्लाम और मुसलमानों, को आतंकवाद से जोड़ रहे हैं और चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए हिन्दुओं को एक होना होगा, हिन्दू पार्टी को समर्थन देना होगा, मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करना होगा और भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना होगा (सुब्रह्मण्यम् स्वामी, डीएनए, 16 जुलाई 2011)

स्वामी का कहना है कि आतंकवाद, दरअसल, हिन्दू धर्म पर इस्लामिक हमला है और इस्लाम, भारत पर काबिज होना चाहता है। अतः यह जरूरी है कि आम हिन्दुओं की मानसिकता हिन्दूवादी बनाई जाए, अयोध्या व वाराणसी में भव्य मंदिरों का निर्माण हो, संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किया जाए और हिन्दुओं द्वारा दूसरे धर्मों को अपनाने पर प्रतिबंध हो परंतु हिन्दू धर्म अपनाने के इच्छुक गैर-हिन्दुओं पर कोई रोक न हो। भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाया जाना जरूरी है और उतना ही जरूरी है मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किया जाना। यह लेख मूलतः आर.एस.एस के एजेन्डे को ही प्रतिबिंबित करता है, इसकी भाषा अत्यंत कटु व आक्रामक है। अपने गठन से लेकर आज तक आर.एस.एस ने देश में केवल और केवल घृणा फैलाई है। लगभग पिछले एक सौ सालों से हिन्दू धर्म, संघ की राजनैतिक विचारधारा का मूलाधार रहा है। आर.एस.एस को अपने इस अभियान में अमरीकी दुष्प्रचार से भी मदद मिल रही है। 9/11 के बाद से अमरीका ने एक नए शब्द “इस्लामिक आतंकवाद“ को गढ़ा और पूरी दुनिया में मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम करने का जबरदस्त अभियान चलाया।
आतंकवाद सैकड़ों साल पुराना है परंतु अल्कायदा के अस्तित्व में आने के बाद से यह वैश्विक स्तर पर चर्चा और बहस का विषय बन गया है। अल्कायदा और तालिबान के लड़ाकों को अमरीका द्वारा स्थापित किए गए मदरसों में प्रशिक्षण मिला। पिछली सदी के आखिरी तीन दशकों में, पश्चिम एशिया के तेल संसाधनों पर कब्जा, अमरीकी सामरिक रणनीति का महत्वपूर्ण अंग रहा है। अमरीकी सरकार ने पश्चिम एशिया के देशों’ पर हमले करने के लिए कई बहाने गढ़े। सच तो यह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमरीका ने इजराइल के निर्माण के बीज बोए ही इसलिए थे ताकि पश्चिम एशिया पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए उसे इस क्षेत्र में एक वफादार पिट्ठू उपलब्ध रहे। पश्चिम एशिया में मुसलमानों का बहुमत है। इन देशों में से कुछ के तानाशाहों और शेखों ने अमरीका से हाथ मिला लिया। कैसी विडंबना है कि दुनिया के “सबसे बड़े प्रजातंत्रों में से एक“ के दोस्त, पश्चिम एशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों पर राज कर रहे निर्दयी तानाशाह हैं।
अमरीका हमेशा से ऐसे मौकों की तलाश में रहा जिनका इस्तेमाल वह दुनिया के विभिन्न देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए कर सके। तेल-उत्पादक क्षेत्र में अपनी पैठ जमाने के लिए ही अमरीका ने ईरान की प्रजातांत्रिक मोसाडिक सरकार का तख्ता पलटा। मोसाडिक सरकार, तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण करना चाह रही थी और इससे अमरीका और इंग्लैंड की तेल कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता। इसके कुछ वर्षों बाद, सोवियत सेनाओं ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। रूस के विरुद्ध युद्ध में झोंकने के लिए जुनूनी मुस्लिम युवकों की जरूरत थी और इसके लिए पाकिस्तान में मदरसे स्थापित किए गए। इन मदरसों में मुस्लिम युवकों के दिमाग में यह भरा गया कि हर गैर-मुस्लिम काफिर है और काफिरों को मारना जेहाद है। जबकि सच यह है कि इस्लाम में काफिर का अर्थ होता है सच को छिपाने वाला और अपनी पूरी ताकत से किसी लक्ष्य को पाने का यत्न, जेहाद कहलाता है।
इसके साथ-साथ सेम्युल हटिंगटन के “सभ्यताओं के टकराव“ के सिद्धांत का जमकर प्रचार किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार, सोवियत संघ के पतन के बाद, हमारी दुनिया में टकराव कम्युनिस्ट गुट व अमरीकी गुट के बीच नहीं वरन् पिछड़ी हुई इस्लामिक सभ्यता और उन्नत पश्चिमी सभ्यता के बीच होगा।
इस सिद्धांत ने इस्लाम की छवि को गहरा आघात पहुँचाया। इस्लाम को एक पिछड़े हुए धर्म के रूप में देखा जाने लगा जिसके अनुयाई दकियानूस और हिंसक हैं। मदरसों से ऐसे नौजवानों की टोलियाँ तैयार होकर निकलने लगीं जो किसी की जान लेने में जरा भी संकोच नहीं करती थीं। अमरीका ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों को आर्थिक मदद दी और उन्हें असलहा भी उपलब्ध करवाया। ईरान में अयातुल्लाह खौमेनी के सत्ता सँभालने के बाद अमरीकी मीडिया ने इस्लाम को दुनिया के लिए नया खतरा बताना शुरू कर दिया। 9/11 के हमले के लिए ओसामा बिन लादेन व अल्कायदा को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद से तो इस्लामिक आतंकवाद शब्द का प्रयोग जम कर होने लगा। कहने की जरूरत नहीं कि न तो इस्लाम और न ही कोई अन्य धर्म निर्दोष, निहत्थे लोगों की हत्या करने की इजाजत देता है। आई.आर.ए, लिट्टे, उल्फा और खालिस्तानियों ने अपने राजनैतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निर्दोषों का खून बहाया परंतु उनकी गतिविधियों को कभी ईसाई, हिन्दू या सिक्ख धर्म से नहीं जोड़ा गया। इस्लाम और मुसलमानों के दानवीकरण की प्रक्रिया का चरम था वह डेनिश कार्टून, जिसमें पैगम्बर मोहम्मद को अपनी पगड़ी में बम छिपाकर ले जाते हुए दर्शाया गया था।

क्रमश:
-राम पुनियानी

1 comment:

  1. Shahid Habib:
    Subramanyam Swami's daughter Suhasini is married to Salman Haider's son.He could not make the mentality of his daughter such so how can he dream about whole India ??

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