अमेरिका उन लोगों को खत्म करना चाहता है, जिन्होंने अफगानिस्तान से रूस को बाहर
निकालने में उसकी मदद की थी। वह उस ‘इस्लाम’ से परेशान हो गया है, जो उसने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से अफगानिस्तान के
बच्चों को घुट्टी में पिलाया था। जब उसका पढ़ाया इस्लाम उसका ही दुश्मन बन गया है,
तो वह पाकिस्तान से कह रहा है कि वह हक्कानी नेटवर्क खत्म करने में
उसकी मदद करे। पाकिस्तान ने भी अमेरिका को आंखें दिखाते हुए अमेरिका के फरमान को
यह कहकर मानने से इंकार कर दिया है कि हक्कानी नेटवर्क उसका ही पाला-पोसा हुआ है।
बात यहां तक बिगड़नी शुरू हो गई कि यदि अमेरिका स्वयं वजीरिस्तान में सैनिक
कार्रवाई करता है, तो पाकिस्तान उसका जवाब देगा।
अमेरिका ने अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं को खदेड़ने के लिए
जिन लोगों को तैयार किया था, वे आज न
केवल पाकिस्तान और अमेरिका के लिए, बल्कि भारत के लिए भी बड़ा
सिरदर्द बने हुए हैं। जिस तरह से पाकिस्तान में आतंकवादी मसजिदों और जनाजों पर
गोलियां और बम बरसाकर लोगों को हलाक कर हैं, ये हरकत किसी
ऐसे गुट की नहीं हो सकती, जो अपने आप को इस्लाम का अनुयायी
कहता है। ये सरासर गैरइसलामी हरकतें हैं। जो इस्लाम पड़ोसी के भूखा रहने पर खाना
हराम बताता हो, इस्लाम शिक्षा के लिए चीन तक जाने की बात
करता हो, औरतों की इज्जत करने की हिदायत देता है। सबसे बड़ी
बात यह कि इस्लाम एक बेगुनाह के कत्ल को पूरी इंसानियत का कत्ल बताता है, उस इस्लाम के बारे में कुछ लोगों की करतूतों से पूरी दुनिया में यह संदेश
गया है कि यह एक दकियानूसी और खून-खराबे वाला धर्म है। जेहाद के बारे में बता दिया
गया है कि मानव बम बनकर लोगों को मारोगे, तो सीधे ‘जन्नत’
मिलेगी। उन मासूमों को क्या पता कि बेगुनाह लोगों का खून बहाओगे, तो जन्नत नहीं, ‘दोजख’ की आग मिलेगी। अमेरिका ने जो इस्लाम
पढ़ाया, वह अब इतना ताकतवर हो गया है कि पाकिस्तानी फौज तो
पस्त हो ही गई है, अमेरिका और यूरोप भी परेशान हैं।
अफगानिस्तान से फारिग होने के बाद अमेरिका द्वारा तैयार किए आतंकवादियों का रुख
वहां भी हुआ, जो यह समझते थे कि हम सात समंदर पार हैं,
इसलिए महफूज हैं। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अमेरिका का यह
गुरूर भी टूटा।
इधर, जब नब्बे के
दशक की शुरुआत में सोवियत यूनियन का मर्सिया पढ़ा जा रहा था, तो
भारत में बाबरी-मसजिद और राममंदिर आंदोलन के चलते सांप्रदायिकता पूरे उभार पर थी,
जिसकी परिणति बाबरी मसजिद विध्वंस और खूनी सांप्रदायिक दंगों के रूप
में हुई। अमेरिकी पोषित आतंकवादियों का मुंह भारत की ओर हुआ और उन्हें खून खराबे
करने के तर्क के रूप में बाबरी मसजिद विध्वंस और बाद में गुजरात दंगा मिल गया।
मुंबई के आतंकी हमलावरों ने जब ताज होटल में बेकसूरों को
बंधक बनाया था, तो बंधकों में से एक ने
हिम्मत करके पूछा था, ‘तुम लोग ऐसा क्यों कर रहे हो ?’ इस पर एक आतंकी ने कहा था, ‘क्या तुमने बाबरी
मसजिद का नाम नहीं सुना? क्या तुमने गुजरात के बारे में नहीं
सुना?’ दरअसल, आतंकी बाबरी मसजिद और
गुजरात का हवाला देकर अपनी नापाक हरकत को पाक ठहराने का कुतर्क दे रहे थे। इन
आतंकियों को पता होना चाहिए कि जिन बेकसूर को उन्होंने निशाना बनाया था, वे बाबरी मसजिद विध्वंस और गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार नहीं थे?
भारतीय मुसलमानों की हमदर्दी का नाटक करने वाले आतंकी संगठन क्या इस
तरह से फायरिंग करते हैं या बमों को प्लांट करते हैं, जिससे
मुसलमान बच जाएं और दूसरे समुदाय के लोग मारे जाएं? मुंबई
हमलों में ही 40 मुसलमानों ने अपनी जान गंवाई थी और 70 के लगभग घायल हुए थे।
बेगुनाहों को निशाना बनाकर बाबरी मसजिद और गुजरात का कैसा बदला लिया जाता है,
यह समझ से बाहर है। और यह भी कि कौन-सा इस्लाम इस बात की इजाजत देता
है? पाकिस्तान में नमाजियों से भरी मसिजद को बमों से उड़ाकर
कौन सी मसजिद विध्वंस का बदला लिया जाता है? आत्मघाती हमलों
में बेकसूर लोगों की जान लेकर किस गुजरात का बदला लिया जाता है?
अब अमेरिका को समझ में आ रहा है कि जो भस्मासुर उसने सोवियत
यूनियन के लिए तैयार किया था, उसका
रुख अब पूरी दुनिया के ओर हो गया है। इस भस्मासुर को तैयार करने में मदद करने वाला
पाकिस्तान भी अब दोराहे पर खड़ा है। उसके लिए ‘इधर कुआं, उधर
खाई’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। यदि वह हक्कानी गुट के सफाए के लिए आगे आता
है, तो आतंकवादी उसका जीना हराम कर देंगे। नहीं करता है,
तो अमेरिका आगे आने लिए तैयार है। बहुत दिनों से यह बात की जा रही
है कि अमेरिका के निशाने पर अब पाकिस्तान है, लेकिन अमेरिका
फिलहाल इराक और अफगानिस्तान में उलझा हुआ है, इसलिए
पाकिस्तान उसे आंखें दिखा रहा है, लेकिन बकरे मां कब तक खैर
मनाएगी?
No comments:
Post a Comment