शीर्षक पढ़कर चौंकिए नहीं क्योंकि तरह-तरह के अध्ययनों के अनुसार जो
तथ्य सामने आ रहे हैं उनसे दो बातें स्पष्टया साबित होती हैं, एक, धरती पर पुरुष-स्त्री
का लिंगानुपात असामान्य रूप से असंतुलित होता जा रहा है, दूसरा, संचार के तमाम द्रुतगामी साधनों की बेतरह
उपलब्धता के कारण आदमी जल्द ही व्यस्क होता जा रहा है, आदमी जहां पूर्व में इक्कीस-बाईस में, फिर सत्रह-अट्ठारह में, फिर पंद्रह-सोलह में और अब तेरह-चौदह वर्ष की उम्र में ही व्यस्क हो रहा है, जबकि लड़कियों में यह उम्र बारह-तेरह की निम्नतम स्तर को छु गयी है ! !
इसका एक मात्र
कारण आधुनिक युग के संचार के साधन हैं, जहां अब कुछ भी गोपन नहीं है, पहले जहां किसी प्रकार की कामुक सामग्री बहुत कठिनता से प्राप्त हुआ करती थी, वो भी छपी हुए रूप में, जिसे छिपाना अत्यंत असाध्य हुआ करता था, जिससे ऐसी सामग्री को घर में लाने से कोई किशोर डरा करता था, मगर अब किशोरों की तो क्या कहिये, बच्चे-बच्चे के हाथ में मोबाईल के रूप
में चौबीसों घंटे उपलब्ध रहने वाला ऐसा साधन उपलब्ध है, जिसके साथ कोई भी किस चीज़ का आदान-प्रदान कर रहा है, कोई नहीं जान सकता, क्योंकि देख-पढ़
लेने के बाद डीलीट करने के ऑप्शन के कारण आप कुछ भी चिन्हित नहीं कर सकते हो, दूसरी और किशोरों के हाथ में इंटरनेट नामक एक ऐसा हथियार आ चुका है, जिसे वो अपनी क्लास छोड़-छोड़ कर चाहे कितनी ही बार इस्तेमाल करने जा सकते हैं, जाते हैं.मगर अब तो यह
मोबाईल में भी चौबीस घंटे उपलब्ध है ! ! आपने अपने बच्चों के
हाथों में ऐसी चीज़ें उपलब्ध करवा दी हैं, जिसका उपयोग अब वो अस्सी से नब्बे प्रतिशत तक अपना यौवन बढाने के लिए ही करते
हैं, आप भी अब खुश हो जाईये कि अब आप अपने ही बच्चों का कुछ भी नहीं “उखाड़” सकते
! ! ऐसे शब्दों का उपयोग मैं इसी कारण कर रहा हूँ, क्यूंकि मैं देख पा रहा हूँ, कि आगे क्या तस्वीर उभर रही है, जिसे बदल पाना हमारे बस के बाहर है दोस्तों ! !
धरती पर पुरुष-स्त्री के असंतुलित होते जाने
के बरअक्श आप इस तस्वीर को सामने रखिये तो आपको इसकी भयावहता का अंदाजा लगेगा.एक तरफ कामुक होते किशोर तो दूसरी तरफ घटती स्त्री की आबादी, इन दोनों को एक साथ रखकर देखिये तो बात साफ़ हो जाती है.धरती पर पहले ही पुरुष द्वारा
स्त्री पर जबरन किये जाने बलात्कारों की सीमा भयावहतम सीमा को पार कर चुकी है, जो अब रोजाना लाखों की संख्या में है, ऐसे में धरती पर आने वाले
दिनों में स्त्री की अनुपलब्धता किस स्थिति को जन्म देने वाली है, इसकी कल्पना भी नहीं जा सकती ! ! बच्चे जब जल्द युवा होंगे तो उन्हें जल्द ही स्त्री भी
चाहिए होगी, और क़ानून या समाज की उम्र की बंदिशें उन्हें यह
करने से रोकेंगी, तब ऐसे में क्या होगा??
दोस्तों प्रकृति
में जो भी कुछ है, वो एक-दुसरे के जीवन-यापन की ही एक भरपूर
श्रृंखला है.इस श्रृंखला की अनेकानेक इकाईयों को आदमी अपनी
कारस्तानियों के कारण मेट चुका है, मगर अब अपनी ही जाति की
व्याप्त बुराईयों की वजह से स्त्री को माँ के पेट में ही नष्ट कर देता है, यह उसकी इस “ थेथरई” का ही परिचायक है, कि हम अपने भीतर की बुराईयों को नहीं मिटाएंगे, जिसके कारण हम स्त्री को अजन्मा ही मार डालते हैं, बल्कि स्त्री को ही मार डालेंगे! ! सच भी है, ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसूरी...! !
मगर ओ पागल धरतीवासियों मगर
इसी बांसूरी को बजाने के कारण ही तुम्हें सुख भी मिल रहा है, साथ ही धरती भी चल रही है, और तुर्रा यह कि यह सुख तुम्हें शायद चौबीसों
घंटे भी मिले तो तुम अघा ना पाओ, तब तो ओ पागल लोगों इस बात को तुम समझो कि इस
सुख को पाने के लिए, जिसके लिए ना जाने तुम कितने ही तरह के
धत्त्करम करते चलते हो, ना जाने कितने झूठ बोलते हो, धूर्ततायें करते हो, जिस
सुख की खातिर तुम्हारे मनीषी, साधू-पादरी और ना जाने कौन-कौन से महापुरुष अपना सम्मान विगलित कर गए! ! उसके
अनिवार्य माध्यम को मिटा देना तुम्हारी कौन सी समझदारी है, यह तो बताओ ! ! ??
प्रकृति में हर-एक चीज़ के होने का कोई-ना-कोई कारण है, उसकी उपादेयता
है तथा उसके ना होने से व्यापक हानि भी है, स्त्री के सम्मान-वम्माम को तो मारो गोली, वह तो पता नहीं आदमी कब सीख
पायेगा, किन्तु एक जैविक तत्व होने के नाते भर से भी स्त्री
की उपादेयता को आदमी अगर ईमानदारी-पूर्वक समझ भर भी ले तो वह इस अपने लिए इस अनिवार्य जैविक के ना होने से होने
वाले नुक्सान को समझ पाने में भी सक्षम नहीं है क्या यह सभ्य-सु-संस्कृत सु-शिक्षित आधुनिक
इन्सान..??! ! अगर हाँ, तो समस्या का
निदान नहीं ही है, ऐसा ही समझिये...मगर
मैं तो यह जोड़ना चाहूंगा कि ऐसे आदमी को गधा कहना गधे का भी अपमान होगा....आप क्या कहते हैं दोस्तों....??कुछ आप भी कहिये ना..??
sohraab bhai kyaa khub likhaa hai .akhtar khan akela kota rajsthan
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