छत्तीसगढ़ के रायपुर जेल में बंद सोनी सोरी ने
केस की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जज और अपने दिल्ली के वकील कोलीन
गोंजाल्विस के नाम जेल से पत्र लिखा है। स्कूल शिक्षिका सोनी सोरी पर छत्तीसगढ़
पुलिस ने आरोप लगाया है कि वह एस्सार कंपनी से माओवादियों के लिए धन उगाही करती
थीं। छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार सोनी सोरी लंबे समय से फरार चल रही थीं, जबकि शिक्षिका सोनी सोरी ने
अदालत में रोज स्कूल जाने का प्रमाण लगाया है और अपने निर्दोष होने के कई दूसरे
प्रमाणों का भी पत्र में हवाला दिया है। गौरतलब है कि सोनी सोरी के गुप्तांगों में
दंतेवाड़ा एसपी अंकित गर्ग के इशारे पर स्थानीय पुलिस द्वारा पत्थर डाले जाने की
खबर को जनज्वार ने प्रमुखता से उठाया। जनज्वार में खबर प्रकाशित होने के बाद
राष्ट्रीय स्तर पर यह बहस तेज हो गयी है कि आखिर अदालत दोषी पुलिसकर्मियों पर
कार्यवाही के लिए और किन प्रमाणों और तथ्यों का इंतजार कर रही है। खासकर तब जबकि
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मेडिकल जांच के लिए कोलकाता भेजी गयीं सोनी सोरी के
गुप्तांगों से पत्थर निकालकर कोलकाता के एनआरएस अस्पताल के डाक्टरों ने
सुपरिटेंडेंट के नेतृत्व में पत्थरों को सिलबंद कर सुप्रीम कोर्ट के हवाले कर दिया
है। इन पत्थरों को सोनी सोरी के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता कोलीन गोंजाल्विस
को भी अदालत में सीलबंद ही दिखाया गया। सोनी सोरी के गुप्तांगों में ये पत्थर करीब
20 दिन तक रहे। छत्तीसगढ़ मेडिकल जांच में वहां के डाक्टरों ने राज्य सरकार के
दबाव में रिपोर्ट दी थी कि सोनी सोरी ठीक हैं। ऐसे में सोनी सोरी का यह पत्र बेहद
मौजू है, जिसे यहाँ हम पठनीयता की दृष्टि से मामूली
परिवर्तनों के साथ हु-ब-हु प्रकाशित कर रहे हैं. आदिवासी शिक्षिका होने के नाते
उनकी हिंदी बेहतर नहीं है, उम्मीद है पाठक इसका ख्याल
करेंगे... जनज्वार सम्पादक
सोनी सोरी सोढ़ी का पत्र
1. डेढ़ साल से पुलिस क्या कर रही थी। डेढ़ साल
से गिरफ्तारी वारंट बनाकर रखी तो हमें आरेस्ट क्यों नहीं किया। अब पुलिस कह रही है
कि हम हमेशा फरार रहते थे। यदि ऐसी बात थी तो फिर पुलिस वालों ने न्यायालय को मेरे
फरार होने की जानकारी क्यों नहीं दी, जिससे न्यायालय मेरे शिक्षा विभाग को नोटिस जारी करती। आखिर
मुझे शिक्षा विभाग किस आधार पर वेतन की पात्रता दिया।
2. पुलिस हमें मारना क्यों चाहती है? नोट कांड केस में भी दिनांक
11.9.2011 को भी हमपर फायरिंग की गयी थी और हम अपने आप को कैसे बचा पाये, यह हम ही जानते हैं। उसके बाद हमें पुलिस वालों ने फरार करार देकर झूठा
केस में फंसाने की कोशिश की। इन बातो को मैंने न्यायालय में भी बताया था। पिछला
जख्म को भी दिखाया कि हम पर पुलिस ने आत्याचार किया है। हम दिल्ली से वापस नहीं
जायेंगे, हम अपनी लड़ाई दिल्ली न्यायालय से लड़ेगे, फिर भी न्यायालय मेरी बातों पर विश्वास ना करते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस को
सौंप दिया और आज मेरी इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है। न्यायालय, पुलिस प्रशासन, सरकार
या मैं।
सुप्रिमकोर्ट न्यायालय से जानना चाहती हूँ ।
हमें रिमांड में रखकर दन्तेवाड़ा थाने में एस.पी. अंकित गर्ग इतना भयानक रूप से
करंट देकर मानसिक शारीरिक से प्रताड़ना क्यों किया। जो जख्म अनदोरूनी में मुझे
दिये उसे चाहकर भी मैं भूल नहीं सकती। यदि मैं गुनाहगार थी तो पूछताछ करके
न्यायालय में पेश करना था न्यायालय हमें फैसला करती की सजा देना या ना देना। जज
साहब ये कैसा कानून, कैसा
इन्साफ, बेगुनाह होते हुए भी सजा काट रही हूं। मेरी गलती
क्या है?
3. जब नक्सलबादी हम पर आत्याचार करते या मारते
तो सरकार से हम शिकायत करते और सरकार हमें मदद करती, ऐसा मेरा मानना है। पर सरकार के आदमियों द्वारा अत्याचार करने
पर हम शिकायत कहां जाकर करें। सरकार का ही व्यक्ति ये बोले की तुम कहीं पर भी
शिकायत नहीं कर सकती सरकार न्यायालय ये सब हमारे अन्डर में है। तो आप ही बताईये जज
साहब हम जैसे लोग पुलिस वाले के आत्याचार से लाचार कहां जायें।
4. मैंने अपने देश के राष्ट्र ध्वज तिरंगा
झण्डा के लिए नक्सल से बहस की। अपनी आश्रम शाला जबेली में झंडा फहराया, जबकि कुछ स्कूल में 15 अगस्त
को काला झण्डा फहराया गया। इस पर भी एस.पी. अंकित गर्ग मुझे बहुत ही गंदी शब्दों
की गाली दिया और कहा तुम एक मामूली आदिवासी महिला झण्डा के बारे में ऊंची-ऊंची
बातें करती हो, तुम्हारी औकात क्या है।
क्या मैंने अपनी मिली शिक्षा के आधार पर बहस
करके जो झण्डा फहराया था, मेरी
गलती थी जज साहब। नक्सलवाद की समस्या को केवल बंदूक की नोक से खत्म नहीं किया जा
सकता, इससे जीवन ही खत्म हो जायेगा। पर शिक्षा की ताकत बंदूक
की ताकत से ज्यादा ताकतवर है। मैं इतने वर्ष से नक्सलवाद क्षेत्र में एक अच्छी
शिक्षा का विकास करने की कोशिश कर रही हूं। इस शिक्षा की ताकत से कामयाब भी रही,
जिससे उस क्षेत्र में शांति बनी रही पर पुलिस प्रशासन शांत वातावरण
नहीं चाहता। हमें किसी ना किसी बहाना से बेगुनाह होने के बाद भी जेल में डाल रखा
और मेरी मान सम्मान इज्जत को भी छीन लिये। मेरे तीन बच्चे अनाथ की तरह जीवन जीने
के लिए मजबूर कर दिये। आज मेरे बच्चे हर सुख, खान-पान,
माता-पिता से वंचित है। मैं अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पा रही
हूँ । जज साहब ये कैसा न्याय है।
5. पुलिस को खबर मिलने पर मेरे आश्रम शाला
जबेली में आकर वह जानकारी क्यों नहीं लिया कि मैडम (सोनी सोरी) उस घटना वाले दिन
आश्रम में थी या नहीं। जज साहब मैं 100-150 बच्चों -विद्यार्थी के बीच रात, दिन अपनी आश्रम शाला जबेली में
सेवा देती हूं। बच्चों को हमने हमेशा सच्चाई की शिक्षा दी है। मेरे विद्यार्थी झूठ
कभी नहीं बोलेंगे फिर पुलिस कभी इन विद्यार्थियों से पूछताछ क्यों नहीं किया। आज
पुलिस फर्जी केस बनाकर न्यायालय को पेश कर रही है। कानून की सीख देने वाले व्यक्ति
लोग झूठी नींव बनाकर चल रहे हों तो अनेक हम जैसे बेगुनाह अपराधी बनकर रह जायेंगे।
6. यदि मैं नक्सलवाद की समर्थक थी तो अपने पिता
की घर-संपती नक्सलवादियों द्वारा लूट लिये
जाने पर क्यों नहीं बचा सकी। मैंने क्यों नहीं बचाया जब मेरे पिता को नक्सलवादी
पैर में गोली मार दिये। आज की स्थिति में वह चलने योग्य नहीं हैं। इस सच्चाई को
पुलिस-अदालत अच्छी तरह से जानती है। फिर भी अपने आंखो में पट्टी बांधकर रह रहे
हैं। मेरे पिता ने तो कोर्ट में घुसकर बयान दिया, फिर भी न्यायालय अनसूनी कर दी जज साहब। ऐसी स्थिति में हम
कहां जाय। अब हमारी आखिरी उम्मीद विश्वास सुप्रीम कोर्ट न्यायालय पर है।
जज साहब मैं अपनी तरफ से सच्चाई के साथ सच को
पेश करने की कोशिश किया 1. नोट कांड में भी सबूत पेश किया जिसमें मानकर नाम का पुलिस
वाला शामिल है। 2. बाकी केस में भी सबूत
पेश करने की कोशिश किया। जैसे कि आश्रम शाला के विद्यार्थी से पूछताछ, शिक्षा विभाग अधिकारी, वेतन पर्ची दैनिक उपस्थिति पंजी रजिस्टर। इससे ज्यादा सच्चाई और कहां से
पेश करूं, सच तो इतना ही है। जज साहब मेरी सच्चाई की कथन पर
गौर किजिएगा, आपसे मेरा निवेदन है।
प्रार्थी
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