यूपी के सपा राज में महीने दर महीने साम्प्रदायिक दंगों की रोज़
नई घटनाएं सामने आ रही हैं. अभी मथुरा के कोसीकलां और प्रतापगढ़ के अस्थान के दंगों
की आग बुझी भी नहीं थी कि बरेली फिर दंगों की आग में झुलस गया.
दंगे की मुख्य वजह यह थी कि नमाज़ियों का कहना था कि नमाज़ के
वक्त कावरिएं तेज़ आवाज़ में लाउडस्पीकर न बजाएं, पर वे माने नहीं. एक बार फिर पूर्व नियोजित फिरका-परस्त ताक़तों
ने पूरे शहर को दंगे में झोंक दिया.
गौर किया जाए तो इस इलाके में कावरियों को लेकर पिछले कई सालों
से तनाव होते आ रहे हैं. दरअसल, इसके
पीछे हिन्दुत्वादी ताक़तों का हाथ है. जिस तरह से शाहबाद इलाके में नमाज़ के वक्त तेज़
साउंड-सिस्टम को बजाने व बंद करने को लेकर यह तनाव शुरु हुआ, ऐसा प्रयोग हिन्दुत्वादी शक्तियां आजादी के बाद ही नहीं उससे पहले भी करती
रही हैं. तीस-चालीस के दशक में तो एक पूरा अभियान ही चलाया गया था कि जुमे की नमाज़
के वक्त मस्जिदों के सामने जाकर भजन-कीर्तन और नगाड़े बजाने का. उस दौर में इलाहाबाद
के कर्नलगंज इलाके में हुए दंगे के गर्भ में भी यही साजिश थी. जिसमें मुख्य अभियुक्त
के रुप में हिंदुत्ववादी मदन मोहन मालवीय थे.
बरेली में दूसरे दिन यानी 23 जुलाई को भी दंगा अपनी गति में
रहा पर दिन के उजाले में जो मंजर देखने को आया उसने साफ़ कर दिया कि समाजवादी पार्टी
की सरकार दंगे पर काबू नहीं पाना चाहती. जहां एक ओर दंगे में मारे गए इमरान के जनाजे
को रोका गया तो वहीं कावरियों के जत्थे को तेज़ आवाज़ के साउंड-सिस्टम बजाते हुए कर्फ्यू-क्षेत्र
से पुलिस के प्रोत्साहन में निकाला गया.
इस मंज़र पर बरेली कालेज के शिक्षक और पीयूसीएल नेता जावेद साहब
की बातें चुभ जाती हैं कि यह ‘मुस्लिम कर्फ्यू’ है. बंद घरों में लोग अपने आंगन में
आसमान में धुंआ उठता देखते हैं, और जलती
दुकानों-घरों की आंच को महसूस करते हैं और अंदाजा लगाते हैं कि किसका आशियाना जला.
एक लंबे अन्तराल के बाद पुलिस के सायरन की आवाजों के बीच फायर-ब्रिगेड की घंटी की आवाज़
की टन-टनाहट उन्हें पागल कर देती है. यह सब उस सपा सरकार में हो रहा है, जिसके मुखिया मुलायम सिंह कहते हैं कि उन्हें मुसलमानों ने सौ फीसदी वोट देकर सत्ता में लाया है.
23 जुलाई को ही प्रतापगढ़ के अस्थान गांव में भी प्रवीण तोगडि़या
जाते हैं और खुलेआम मुस्लिमों के खिलाफ ज़हर उगलते हैं. पिछले महीने अस्थान में हुए
दंगे में दर्जनों मुस्लिमों के घरों को दंगाइयों ने खाक कर दिया था. इस दंगे में प्रदेश
के कारागार मंत्री रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया के लोगों की भूमिका किसी से छिपी नहीं
है.
सपा के राज में एक बार फिर से हिन्दुत्ववादी ताक़तें प्रायोजित
तरीके से दंगें भड़कानें का काम कर रही हैं. फैजाबाद जो पिछले तीन दशक से सांप्रदायिक
राजनीति की राजधानी बन गया है. वहां भी 23 जुलाई की शाम दंगा भड़काने की कोशिश हुई.
अयोध्या शहर से सटे हुए शहादतगंज के पास के गांव मिर्जापुर में नमाज़ के ऐन वक्त पुलिस
मस्जिद में ताला जड़ देती है. भारी तनाव के बाद ईशा की नमाज़ तो अदा हो गई पर शहर एक
बार फिर सांप्रदायिक हिंसा के अंदेशे से सहम गया.
स्थानीय लोगों के मुताबिक इस मस्जिद की उम्र सौ साल से ज्यादा
है. 22 जुलाई को अयोध्या में गोरखपुर के सांसद और हिंदू युवा वाहिनी के संचालक योगी
आदित्यनाथ शहर में आए थे. शहर में हुए इस तनाव के पीछे भी हिन्दुत्वादी ताकतों का हाथ
सामने आ रहा है.
सपा राज में हो रहे दंगों में प्रशासन की उदासीनता यह बताती
है कि एक बार फिर से आम-आवाम के बीच सांप्रदायिकता का ज़हर घोल करके मूलभूत मुद्दों
से भटकाने की राजनीति शुरु हो गई है.
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