Monday, August 06, 2012

जन अदालत में उजागर हुई आईबी की साम्प्रदायिक जेहनियत


खुफिया एजेंसियों की साम्प्रदायिकता और आतंकवाद विषय पर आयोजित जन अदालत में लोगों ने अपना पक्ष रखा। इसमें आतंकवाद के नाम पर पीड़ित किये जा रहे लोगों ने अपनी व्यथा सुनाई कि किस तरह से महिलाएं और बच्चे मानसिक प्रताड़ना का शिकार बन रहे हैं। इसके अलावा मानवाधिकारों से जुड़े संगठनो के प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं ने समस्या पर विस्तार से चर्चा की।

प्रतापगढ़ से आये शौकत अली ने अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने बताया कि किस तरह 15 अगस्त 2008 से लगातार एटीएस व अन्य खूफिया एजेंसियों उन्हें फंसाने का प्रयास कर रही है। खूफिया एजेंसिया उनके खिलाफ सबूत पैदा कर रही हैं। उन्होने बताया कि उन्हें लश्कर तोएबा के नाम से पहले चिट्ठियां भेजी गईं जिसमें उन्हें लश्कर तोएबा का एरिया कमांडर बनाने की बात लिखी गई थी। मैने इस फर्जी पत्र की सूचना एसपी और डीएम को दी और जांच कराने की मांग की लेकिन अब तक इस मामले में कोई जांच नहीं हुई है। बजाए इसके एटीएस के लोगों ने उन्हें धमकी दी कि तुम प्रशासन के पास क्यों गए। उन्होने बताया कि उन्हें पूरा शक है कि खूफिया और एटीएस आने वाले दिनो में उन्हें आंतकी होने के झूठे आरोप में फंसा सकती है।

आजमगढ़ से आये मो. शादाब उर्फ मिस्टर भाई, जिनका एक बेटा डा.शाहनवाज गायब है और दूसरा साजिद गिरफ्तार है, ने कहा कि मेरे बच्चों को एटीएस और खूफिया विभाग ने मिलकर फंसाया है। उनके बच्चों के बारे में खूफिया और एटीएस ने दावा किया कि वे विदेश से आंतक की ट्रेनिंग लेकर आए हैं जबकि वे कभी बाहर नहीं गए हैं। उन्होने कहा कि हम लंबे समय से मांग करते आए हैं कि इस मामले में एटीएस और खूफिया विभाग की भूमिका की जांच हो, लेकिन सरकार नहीं करवा रही है। खूफिया एजेंसियां हमें बहुत परेशान करती है। पूरे आजमगढ़ को आतंकवाद के गढ़ का नाम दे दिया गया।

वहीं पिछले दिनो बांगर मऊ से इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी बताकर उठाए गए बशीर की पत्नी जैनब अपनी व्यथा कहते-कहते फफक पड़ी। उनका कहना था कि जांच एजेंसियों ने बशीर को जिस विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया वो उस समय उनके साथ अस्पताल में थे। जैनब उस समय गर्भवती थीं और जांच एंजेंसियों के द्वारा टार्चर किए जाने के कारण उनका गर्भपात हो गया। आखिर इतना बड़ा झूठ वो कैसे मान लें कि जिस समय उनके पति उनके साथ अस्पताल में थे उसी समय उनपर विस्फोट का आरोप लगाया गया। वहीं बशीर के साले इशहाक ने बताया कि ऐसे ही फर्जी आरोप में उनको भाई शकील को भी पुलिस उठा ले गई है और खुद लंबे समय खुफिया विभाग और एटीएस जांच के नाम पर उनका भी मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न कर रही है।

वहीं कथित सीआरपीएफ आतंकी कांड में पकड़े गए कुंडा प्रतापगढ के रहने वाले कौसर के भाई अनवर ने बताया कि किस तरह एसटीएफ ने उनके भाई को 9 फरवरी 2008 को पकड़ा और लखनऊ में कैद रखा। छोड़ने के एवज में उनसे एक लाख रूपये की मांग की गई। ना दे पाने पर उनके भाई को जेल भेज दिया गया। लखनऊ की रहने वाले फरहान, जिनको आतंकवाद के आरोप में कमजोर तथ्यों के आधार पर उम्रकैद की सजा हुई है, की बहन सायमा ने बताया कि उनके भाई के उपर आरोप लगाया गया कि वो आतंकवाद की ट्रेनिंग लेने के लिए पाकिस्तान जाने वाला था। उन्होने बताया एक दिन अचानक उनके भाई को एसटीएफ ने सादी वर्दी में उठा लिया। हमें कुछ पता नहीं चला। बाद में एलआईयू हमारे घर आए और तब हमें पता कि मेरे भाई को उठा लिया गया है। उन्होने कहा कि उनका परिवार एक अनजान जुर्म की लड़ाई लड़ रहा हे।

सम्मेलन में इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए वक्ताओं ने कहा कि इण्डियन मुजाहिद्दीन खुफिया विभाग द्वारा बनाया गया कागजी संगठन है जिसके नाम पर निर्दोष मुसलमानो को आंतकवाद के नाम पर पकड़ा जा रहा है। वक्ताओं ने सरकार से इंडियन मुजाहिदीन पर सरकार से श्वेत पत्र जारी करने की मांग करते हुए कहा कि सरकार कभी बताती है कि आईएम सिमी का संगठन है और कभी उसे लश्कर और आईएसआई का संगठन बताती है। पूर्व पुलिस महानिरीक्षक और पीयूसीएल के प्रदेश उपाध्यक्ष एस आर दारापुरी ने खुफिया विभाग को कटघरे में खरा करते हुए कहा कि उसकी गतिविधियों से ऐसा लगता है कि जैसे वह सरकार के बजाए बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के प्रति जिम्मेदार हो। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा ने कहा कि खुफिया विभाग लंबे समय से मुसलमानों की गलत छवि बनाता रहा है।जिसको मीडिया अपने जरिए और विस्तार देता है। अधिवक्ता मोहम्मद शुएब ने एटीएस द्वारा जेलों में बंद आतंकवाद के आरोपियों के उत्पीड़न का सवाल उठाया। वहीं एपवा की नेता ताहिरा हसन ने खूफिया विभाग और एटीएस के सांप्रदायिक जेहनियत के खिलाफ प्रदेशव्यापी आंदोलन छेड़ने की बात कही। श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष सिद्धार्थ कलहंस ने मीडिया की सांप्रदायिकता का सवाल उठाते हुए कहा कि मीडिया बिना तथ्यों की जांच किए सिर्फ पुलिसिया वर्जन के आधार पर खबरों को छाप देता है जिसके चलते मीडिया की अपनी साख भी तेजी से गिर रही है। कार्यक्रम का संचालन पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव राजीव यादव ने किया। सम्मेलन में सलीम बेग, तराई पत्रिका के संपादक ऋषि कुमार सिंह, जन मीडिया और मास मीडिया के संपादक मंडल के अवनीश, केके वत्स, अरुण खोटे, पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव शाहनवाज आलम, जीशान, शारिक, श्वेता, मंजू गुप्ता, जैद फारूकी, नीरज सिंह ने हिस्सा लिया।

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