उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद में हुए दंगे और इसमें बेमौत मारे गये लोगों की हत्या के लिये सूबे में सत्तासीन अखिलेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए विभिन्न सामाजिक संगठनों ने जबर्दस्त विरोध किया है. विरोध में उत्तर प्रदेश के विभिन्न संगठनों ने एक धरना भी आयोजित किया.
धरने में बोलते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने कहा है कि पिछली 27 तारीख से ही मुजफ्फरनगर में जिस तरह से सांप्रदायिक ताकतें सपा के प्रशासनिक संरक्षण में सांप्रदायिक व सामंती तत्वों को बढ़ावा दिया, उसके नतीजे में 31 से अधिक बेगुनाहों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित षडयंत्र का परिणाम है और यह षडयंत्र लुक छिप के नहीं, बल्कि पंचायतें लगाकर खुलेआम एक समुदाय विशेष के खिलाफ आगे गोलबंदी की गई और उसके बाद संगठित हमला। ऐसे में मुजफ्फरनगर जिले के प्रशासनिक अमले से लेकर यूपी के एडीजी लॉ एण्ड ऑर्डर अरुण कुमार तक की इन दंगों में खुली भूमिका के चलते तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करते हुए दंगे की सीबीआई जांच करानी चाहिए। मोहम्मद शुएब ने कहा कि जिस तरीके से सैकड़ों दंगे कराने वाली सपा सरकार इंसान की कीमत मुआवजों से लगा रही है, वो उससे बाज आए क्योंकि जिसका बेटा, जिसका पति मरा होगा, जिसके बच्चे अनाथ हुए हैं उनके आंसुओं को पैसों से नहीं तोला जा सकता।
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) ने भी इस घटना की भर्त्सना करते हुए कहा कि मुजफ्फरनगर में हुआ दंगा सपा की सोची-समझी रणनीति का परिणाम है. आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजीएसआर दारापुरी ने इस घटना पर गहरा दुःख प्रकट करते हुए मांग की है कि इस दंगे की न्यायिक जांच करायी जानी चाहिए और जो अधिकारी इसके लिए दोषी है उन्हें दण्डि़त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा यह जानते हुए भी कि मुजफ्फरनगर में पहले से ही साम्प्रदायिक तनाव चल रहा था और इसके पूर्व भी लोगों की हत्याएं तक हो चुकी थी, वहां कड़ाई से माहौल को सामान्य बनाने की जगह सपा सरकार ने महापंचायत करने की अनुमति प्रदान की और सोची समझी रणनीति के तहत दंगा कराया.
इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि मुलायम सिंह का सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत करने का खेल बहुत पुराना है और पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए अखिलेश यादव भी यही कर रहे हैं। आज जिस तरह पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही अखिलेश यादव ने प्रदेश को दंगों की आग में झोक दिया, ठीक इसी तरह मुलायम ने भी सन् 1990-91 में यूपी को दंगाइयों के हवाले कर दिया था। आज भी उस मंजर याद करके दिल दहल जाता है कि एक साथ प्रदेश के 45 जिलों में कर्फ्यू लगा था।
ठीक आज जिस तरह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मोदी और उसके गुर्गे अमित शाह के लिए प्रदेश में 100 से ज्यादा सांप्रदायिक दंगे करवा कर जमीन तैयार कर रहे हैं, यही काम उनके पिता मुलायम ने भी 1990-91 में लालकृष्ण आडवाणी के लिए किया था. पर मुलायम को यह समझ लेना चाहिए कि जिस सांप्रदायिक राजनीति ने आडवाणी को जीवन पर्यन्त वेटिंग में रख दिया, उस राजनीति से वो दिल्ली का रास्ता नहीं तय कर सकते। दंगे झेलते-झेलते जनता परिपक्व हो गई और और वो देख रही है कि किस तरीके से सांप्रदायिकता के नाम पर 2014 के चुनावों की तैयारी हो रही है।
उन्होंने आगे कहा कि आज उत्तर प्रदेश की कानू व्यवस्था ही उस सांप्रदायिक अरुण कुमार के हाथों में है, जिसकी करतूतें मालेगांव मामले में बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों का जीवन को बर्बाद करने के मामले में जगजाहिर है. 2001 में कानपुर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर रहते हुए अरुण कुमार के निर्देश पर 13 अल्पसंख्यक पुलिस की गोली से मारे गए तथा मारे गए लोगों के मां-बाप से इस बात का शपथ पत्र भी ले लिया था कि अब वे यह कहीं नहीं कहेंगे कि उनका पुलिसिया उत्पीड़न हुआ है. इसी शर्त पर उन्हें 2 लाख की सरकारी मदद दी गयी थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कानून और व्यवस्था लागू करने वाले अफसरों पर कोई नियंत्रण नही है। दंगों के शिकार परिवारों के प्रति मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आंसू केवल घडि़याली हैं। अगर अखिलेश यादव इस दंगे पर संजीदा हैं, तो एडीजी कानून व्यवस्था अरुण कुमार को तत्काल बर्खास्त करें।
रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और हरे राम मिश्र ने कहा कि मुजफ्फरनगर में बहू बेटी बचाओ अभियान के नाम पर सामंती सांप्रदायिक ताकतें ध्रुवीकरण का गंदा खूनी खेल खेल रही थीं. सरकार को सबकुछ मालूम होते हुए भी जिस तरह से इनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया, उससे यह बात साफ है कि सरकार इन दंगों में ही अपना फायदा देख रही थी। जिस प्रायोजित तरीके से अफवाहें फैलाई गयी और पुलिस द्वारा दंगाइयों को माहौल को विषाक्त करने का पूरा मौका दिया गया, उससे यह साफ है कि दंगे सरकार की मंशा के मुताबिक ही हुए हैं।
उन्होंने कहा कि आज जिस तरह से फैजाबाद से लेकर मुजफ्फरनगर तक दलितों व पिछडों को अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है, वह अखिलेश सरकार की सांप्रदायिकता का नया प्रयोग है। सुल्तानपुर का सांप्रदायिक तनाव इस बात की पुष्टि करता है कि सपा सरकार प्रदेश में अपने जातिगत चुनावी समीकरण को तेजी से मजबूत करने में जुटी हुई है।
सामाजिक कार्यकता गुफरान सिद्द्की और पत्रकार शिवदास ने कहा कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह के सांप्रदायिक करतूतों की फोटोकापी करते नजर आ रहे हैं। जिस तरीके से बहू-बेटी बचाओ अभियान के नाम पर सांप्रदायिक तत्वों को मुजफ्फर नगर में बढ़ावा दिया गया, ठीक इसी तरह पिछली मुलायम सरकार ने गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को हिंदू चेतना रैलियों के नाम पर सांप्रदायिकता फैलाने की खुली छूट दे रखी थी। जिसका खामियाजा मऊ,पडरौना, कुशीनगर, गोरखपुर समेत पूर्वांचल के कइ्र्र शहरों में भीषण सांप्रदायिक दंगों के रूप में जनता को भुगतना पड़ा।
मऊ में तो कहीं जिंदा काटकर जलाया गया, तो कहीं मां-बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। जिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश देते हुए टिप्पणी की थी कि यह घटना गुजरात की जाहिरा शेख से मिलती जुलती है। आज मुजफ्फरनगर में भी यही किस्सा दोहराया गया और 31 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
पिछड़ा समाज महासभा के एहसानुल हक मलिक और भागीदारी आंदोलन के पीसी कुरील और भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोइद अहमद ने कहा कि सपा सरकार के डेढ़ वर्षों के शासनकाल में जिस तरह से दंगे दर दंगे उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे हैं और सरकार जिस तरह से इन दंगों को रोक पाने में लगातार विफल साबित हो रही है, इस बात की ओर इशारा है कि सपा सरकार प्रदेश की सांप्रदायिक ताकतों के आगे न केवल नतमस्तक हो चुकी है, बल्कि इन दंगों की आड़ में हो रहे धार्मिक और जातीय धु्रवीकरण को अपने चुनावी लाभ के बतौर देख रही है। इन दंगों ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश की कानून और व्यवस्था चलाने वाले पुलिस अफसरों पर से सरकार का नियंत्रण एकदम खत्म हो गया है और कानून व्यवस्था के मामले में सरकार पूरी तरह से सांप्रदायिक जेहेनियत के पुलिस अधिकारियों के रहमो करम पर आश्रित हो चुकी है। मुजफ्फरनगर में जो भी हो रहा है उसकी पृष्ठभूमि अचानक नहीं बनी, लिहाजा इतने बड़े पैमाने पर हुए इस जन संघार को प्रायोजित करने में किन किन की भूमिका है इसकी सीबीआई जांच कराई जाए।
यूपी की कचहरियों में 2007 में हुए धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवाई रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की मांग को लेकर रिहाई मंच का धरना रविवार को 110 वें दिन भी लखनऊ विधानसभा धरना स्थल पर जारी रहा।
धरने में इंडियन नेशलन लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान, अब्दुल हलीम सिद्दीकी, रेशमा, कानपुर से हफीज अहमद, शबनम बानो, भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोईद अहमद, हरे राम मिश्र, गुफरान सिद्दीकी, पीसी कुरील, शिवदास, एहसानुल हक मलिक, राजीव यादव सहित कई अन्य लोग शामिल थे.
~जनज्वार.कॉम
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