पूरी दुनिया में '125 करोड़ भाईयों बहनों' के मुखिया होने का जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डंका पीटते हैं तो मेरा सीना भी 56 इंच का हो जाता है. पीएम मोदी जब संसद में खुद को बार-बार '125 करोड़ का सेवक' कहते हैं तो दिल भर आता है. मुझे उनका विरोध करने वालों पर गुस्सा आता है.
लोकसभा चुनाव के दौरान जब मोदी भाषण देते थे तो जनता की आंखों में सपने पले, चुनावी समर में आपने सुहावने सपने दिखाए.. हमारी उम्मीदों को सहारा दिया, भरोसा जगाया. और बदले में हमने आपको दी शानदार सफलता, ऐतिहासिक जनादेश, आपकी गुल्लक को वोटों से हमने भर दिया.
प्रधानमंत्री की 'मन की बातें' सुनकर अचानक मन भाव विह्वल हो उठता है. उम्मीद जगती है, सियासत में 'शऊर' की आमद का एलान लगता है. लेकिन अचानक मन सशंकित हो उठता है. सोचता हूं कि सियासत और धर्म के 'अवैध' रिश्ते की बानगी तो लोकसभा चुनाव से लेकर यूपी में 'घरवापसी' और लव जेहाद का लिटमस टेस्ट तो इनके रहते ही हो रहा था. अभी एक जानवर के लिए इंसान को मारा गया. पूरी दुनिया को खबर हो गई. चंद किलोमीटर दूर बैठे साहब को कैसे खबर ना हुई? मैं इनके शब्दों की `कट-पेस्ट` और विचारों की ऐसी `असेंबलिंग` देखकर सन्न हो जाता हूं. अब बिहार के चुनाव में फिर इनकी पोल खुल गई. 125 करोड़ का भाषण अब उनका ढोंग लग रहा है.
बिहार चुनाव में तीसरे चरण से ठीक दो दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने आरक्षण के मुद्दे पर एक नया कार्ड खेल दिया है. मोदी ने आरक्षण को लेकर दलितों और पिछड़ों डराते हुए कहा,"लालू-नीतीश-सोनिया ने पाप की योजना बना रहे हैं. दलित, ओबीसी के हिस्से का 5 फीसदी आरक्षण छीनने की साजिश हो रही है." मोदी ने इशारों-इशारों में साफ कहा कि लालू-नीतीश-सोनिया गांधी दलित, ओबीसी के हिस्से का 5 फीसदी आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देनी की साजिश कर रहे हैं. लेकिन मोदी ने ये भी एलान कर दिया कि दलित, ओबीसी के हिस्से के आरक्षण को बचाने के लिए वह अपनी जान की बाज़ी लगा देंगे. बिहार चुनाव में पहले बीफ... फिर विरोधी आरक्षण के जरिये हमला किये तो अब ये नया पैंतरा. स्थानीय नेताओं से ओछे बयान... तो समझ आता है लेकिन प्रधानमंत्री से ऐसी अपेक्षा शायद ही कभी किसी ने की हो. उम्मीद तो टूटा है साहेब भरोसा कीजिए... क्या ऐसे बयान 125 करोड़ का नेता देगा? ये बयान तो सिर्फ 'गुजरात' का नेता ही दे सकता है. फिर 125 करोड़ के नेता बनने का ढोंग क्यों? प्रधानमंत्री केवल पिछड़े दलितों के लिए जान की बाजी लगा रहे हैं तो दूसरों का ये देश नहीं है. अन्य धर्म के लोगों समेत सवर्णों की जिम्मेदारी क्या प्रधानमंत्री जी आपकी नहीं है?
राजनीति की यही 'गंदी बातें' हैं जो लोकतंत्र को लंबे समय से गंदला रही हैं. चुनावी मौसम में लोकतंत्र इसी जुबानी 'जहर' से बीमार होता जा रहा है. अब यह महसूस होता है कि सत्ता पाने की लालसा या सत्ता शक्ति के प्रदर्शन का अहंकार कहीं न कहीं राजनीति का स्तर गिराता जा रहा है. जम्हूरियत की मुजरिम सियासत से मलहम की मुझे उम्मीद नहीं है.
मुझे पता है साहेब, राम मंदिर से लेकर गाय और गंगा तक मुफ्त में वोट बटोरने का जरिया है. ये बातें भी हुक्मरान खूब जानते हैं. गलती इनकी नहीं है. इन्हें तो सिर्फ मलाई चाहिए. धर्मांधता में कटना हमारी फितरत में शुमार हो चुका है तो ये सियासत में शऊर क्यों लाएं? मेरे गांव में अक्सर लोग कहते हैं कि भूखे पेट भजन नहीं होता... फिर मुझे समझ नहीं आता कि भूख पर भजन भारी कैसे हो जाता है? केवल पढ़िए मत सोचिए.. कि आखिर नेताओं के धर्म और जाति के शॉपिंग कॉमप्लेक्स कैसे खुलते गए? इनके खरीददार कौन हैं. आप यूं ही खरीददारी करते रहे.. तो आपका बच्चा भूख से बिलबिलाता रहेगा. आपकी रोटी ये नोंचते रहेंगे. आपको घास भी नसीब नहीं होगी और ये च्वयनप्राश खाएंगे.. सोचिएगा जरूर...
प्रकाश नारायण सिंह
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