आज़ादी के बाद से हिंदुस्तान के सफ़र को देखता हूँ तो पाता हूँ कि जहाँ अल्पसंख्यक आज से 60 बरस पहले खड़े थे, आज भी कमोवेश वहीं पर हैं.
उसी ग़ैर-बराबरी और ग़ैर-अमनी के माहौल में आज के हिंदुस्तान का अल्पसंख्यक युवा भी साँस ले रहा है.
विभाजन के समय से ही हिन्दुस्तानी मुसलमान तरह तरह की परिशानियों में फंसा हुआ है. कुछ लोग यह समझते रहे हैं कि मुल्क को बाँटने में मुसलमानों का बड़ा हाथ रहा है. हमेशा मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जाता रहा है.
हुक़ूमतों की ओर से भी मुसलमानों की उपेक्षा ही होती रही है. ज़बानी बयानों और कोरे सब्ज़-बागों के सहारे अल्पसंख्यकों को वोटों की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा.
आज भी तक़रीबन वही हाल है. हालांकि हर तबके का आम आदमी भी अब इस बात को समझ रहा है कि अल्पसंख्यकों की उपेक्षा हुई है लेकिन किसी न किसी वजह से लोग खुल कर बोलने को तैयार नहीं है.
मुसलमानों को जो राहतें भी थोड़ी बहुत मिली वो भी क़ानूनी पचड़ों में पड़कर कागज़ी ही होकर रह गई हैं.
दरअसल, मुल्क में मुसलमानों की इतनी ख़राब स्थिति पैदा ही न होती अगर इन्हें मुसलमान की हैसियत से देखने के बजाय एक हिंदुस्तानी की हैसियत से देखा गया होता.
सिख और ईसाई अल्पसंख्यक
देश के बँटवारे ने सिख समुदाय के लोगों की सोच और दिलो-दिमाग पर भी गहरा असर डाला था जिसकी वजह से वोह काफी समय तक प्रभावित होते रहे.
आज़ादी के कई दशकों बाद सिखों में अलगाववाद और पंजाब में चरमपंथ की आग का असर यह रहा कि इस समुदाय को पूरे देश में बुरी तरह प्रभावित किया गया. पलटकर देखें तो 1984 के सिख विरोधी दंगों के घाव तो आज तक नहीं भरे हैं. लेकिन मुसलमानों के बरखेलाफ सिख समुदाय अब बिलकुल ही तर्रक्की के ट्रेक पर है.
ईसाइयों की बात करें तो देश की आज़ादी के बाद ईसाई बाक़ी अल्पसंख्यकों की तरह निशाना नहीं बने. इनके साथ कोई बडा संकट कभी नहीं रहा और यह कौम हमेशा से ही आत्मनिर्भर रही है.
देशभर में फैले मिशनरी स्कूलों की बदौलत अच्छी शिक्षा हमेशा से उनकी पहुँच में रही है.
बदलती स्थितियाँ
दूसरी ओर मुसलमानों को भी अब यह बात समझ में आने लगी है के उनकी अशिक्षा और ग़रीबी ही उनके पिछड़ेपण की असल वजह है. इसीलिए मुसलमानों ने भी शिक्षा और तकनीक की ओर अपना ध्यान बढ़ाया है.
अच्छी बात यह है कि आज का मुसलमान युवा पिछली पीढ़ियों से ज़्यादा समझदार है.
यही वजह है कि आज के मुस्लिम युवा मुख्यधारा में शामिल होने के लिए मेहनत कर रहे हैं और बहुत हद तक क़ामयाब भी हो रहे हैं. मुस्लिम युवाओं की मिहनत और लगन को देख कर ऐसा लग रहा है के बहुत जल्द इस कौम की तकदीर का सितारा चमकने वाला है.
अब ज़रूरत इस बात की है कि इसके लिए बाक़ी समाज को सकारात्मक होकर सामने आना होगा.
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