समाज सेवा की आड़ में बम का जवाब बम से देने के दर्शन का प्रचार किसी भी शांतिप्रिय समाज के लिए डरावना है। यह खतरनाक स्थिति है और उससे भी खतरनाक है उस पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर व्यापक खामोशी। यह खामोशी वैसी ही है जैसे किसी को अपने एचआईवी पॉजिटिव होने का पता चले और वह उसे स्वीकार करने की बजाय प्रयोगशाला पर पक्षपात और दुष्प्रचार का आरोप लगाए। गैर-जिम्मेदार रवैया उन लोगों का भी है जो कह रहे हैं कि हमने उस बीमार व्यक्ति को घर-परिवार से निकाल दिया है।
यह उस व्यक्ति, अपने संगठन और व्यापक तौर पर समाज व राष्ट्र के प्रति दिखाई जा रही तिहरी गैर-जिम्मेदारी है। अगर राष्ट्र की रक्षा में तत्पर रहने का दावा करने वाले संगठन हैदराबाद की मक्का मस्जिद, महाराष्ट्र के मालेगांव, अजमेर शरीफ दरगाह और पाकिस्तान तक जाने वाली समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट कर सकते हैं, तो स्पष्ट है कि वे एक विचार दर्शन को रुग्णता की हद तक ले जा चुके हैं।
यह सही है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के नेता भाजपा और उसके संगठनों पर हमला करते हुए अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। इससे मामले की गंभीरता बढ़ने की बजाय घटती है। इसके साथ ही अगर इस मामले की अनदेखी करते हुए उसे राष्ट्रवादी भावना से ढंकने की कोशिश हो रही है तो वह और भी गंभीर है। चिंता की बात यह भी है कि हमारे लोकतंत्र की तमाम संस्थाएं इस मामले को अपेक्षित तवज्जो नहीं दे रही हैं। इतने विस्फोटक रहस्योद्घाटन के बाद भी समाज की मुख्यधारा इसे हाशिए का खतरा मानकर यह सफाई देती नजर आ रही है कि इसे कुछ राजनेता निहित स्वार्थो के लिए अपने सुविधा के संगठनों के माध्यम से उजागर करवा रहे हैं। ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि बहुसंख्यक समुदाय में बढ़ती कट्टरता का क्या हश्र होता है।
उसका एक नमूना हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान में देख रहे हैं। कोई भी देश और समाज, जो सभी धर्मो और संप्रदायों के प्रति आदर-सम्मान और समानता का भाव नहीं रखता, वह एक आधुनिक और उन्नत राष्ट्र नहीं हो सकता। अगर हम भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य और एक उदार समाज बनाए रखना चाहते हैं तो कट्टरता के खिलाफ उदारता की लड़ाई में सबको एकजुट होना होगा और इस लड़ाई को हर स्तर पर ताकत देनी होगी।
-http://www.bhaskar.com/article/ABH-no-leniency-will-be-given-the-power-to-bigotry-1745845.html
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