Saturday, January 22, 2011

हमीं काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं


हमीं  काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं

jugnu Shardey
जुगनू शारदेय लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. फिलहाल सलाहकार संपादक ( हिंदी ) - दानिश बुक्स
जुगनू शारदेय
बहुत बहस हो रही है काला धन पर । अजी धन धन होता है । न काला होता है , न सफेद । कहा भी गया है कि बाप बड़ा न भइया , सबसे बड़ा रुपइया । लोग एक दम से भूल गए पुराने जमाने के एक्टर महमुद का गाना , हमीं  काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं । यहां लोग चिल्ला रहे हैं कि देश का काला धन विदेश में जमा है । और कहां रखते । देश में रखने की जगह होती , तब न रखते । हर आदमी अपने बुरे दिन का ख्याल रखता है । यही सोच कर लोगों ने अपना काला धन विदेश में रखा । उसका फायदा भी नजर आ रहा है ।
फायदा काला धन विदेश में रखने वालों का और नुकसान अपने धनमन का । कोई गुनाह नहीं उनका । फिर भी फटकारता है हमारा सुप्रीम कोर्ट उन्हें कि नाम बताओ । वह कहते हैं कि विदेश की शर्त है कि नाम न किसी को बताओ । यह भी न बताओ कि माल कहां से आया । जाहिर है भारत का माल इंडिया में आया । इंडिया से विदेश के बैंक में चला गया । और कहां जाता ।
हमें तो गौरवान्वित होना चाहिए कि हमारे देश में इतना माल है कि अपने देश में रखने की जगह ही नहीं है । हमारे पास इससे बचने का सुझाव भी है । मुश्किल यह है कि हमारे देश में सुझाव देने पर भी सेवा कर देना पड़ता है । चलो इसी लिए नहीं देता सुझाव । पर मन देश प्रेम से उमड़ा हुआ है कि देश
के लिए इतना सुझाव भी नहीं दे सकते ।

ऐसा कैसे हो सकता है । देश भले ही मुझे सुझाव रत्न से सम्मानित न करे । मगर काला धन विदेश न जाए, इसे रोकने पर सुझाव दे कर ही रहूंगा । यह भी कोई तरीका है कि सुप्रीम कोर्ट का व्यस्त समय इस फालतू चीज काला धन पर बरबाद किया जाए । इसलिए यह सुझाव बहुत जरूरी है । क्या पता इसी सुझाव से मेरे पास भी सरकार की नजर में कुछ काला धन आ जाए ।
सुझाव नंबर एक यह है कि धन को सिर्फ धन माना जाए । यह एक गलत परंपरा बनी है कि यह चोरी का माल है , यह घूस का माल है , यह ठेकेदारी का माल है आदि आदि । कोई साबित कर दे कि जो ईमानदारी का धन है उससे आलू – प्याज सस्ती मिल जाती है । आलू – प्याज का एक ही भाव होता है । देश तरक्की कर रहा है , इसलिए भाव की भी तरक्की भी हो रही है ।
बस यही समझिए कि देश में ज्यादा धन होगा तो विदेश में जाएगा ही क्योंकि उनकी गारंटी होती गोपनीयता की । हमारे देश के सरकारी कागजों की तरह नहीं कि अखबार में छपने वाले विज्ञापन के ऑर्डर पर गोपनीय लिखा होता है । हमें सचमुच मे गोपनीय होना होगा । आज की तरह नहीं कि सबको पता होता है कि आदेश किसी का और अमल किसी का होता है ।

बड़े बुजुर्गों ने साफ साफ कहा है कि धन को छिपा कर रखना चाहिए । अपनी मेहनत की कमाई को छिपाने के लिए अपना धन लोग विदेश में रखते हैं । इसलिए सुझाव है कि अपने देश में भी ऐसे बैंक खोले जाएं जो बैंक में जमा धन की जानकारी किसी को भी न दें । जैसे बिहार में जो बैंक हैं , वह बैंक में जमा बिहार का धन बिहार के लोगों को कर्ज के तौर पर नहीं देते ।बस इसे आजमा कर देखिए और काला सफेद पर मनभेद बंद कीजिए । हमेशा याद रखिए कि धन धन होता है । यह सब कुछ हो सकता है काला नहीं हो सकता । और अगर काला है तो याद कीजिए महमुद का गाना हमीं  काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं ।
 साभार: http://hastakshep.com/?p=1956

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