नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का दायरा दलित ईसाइयों और मुसलमानों तक बढ़ाने के मुद्दे की पड़ताल करने का फैसला किया। यह मामला न्यायालय के समक्ष छह साल पहले आया था। न्यायालय ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यक आयोग से इस मसले पर उनके रुख की जानकारी मांगी। अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर आई याचिकाओं में महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे उठाए गए हैं। प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, न्यायाधीश के.एस. राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार की पीठ ने इस मामले में न्यायालय की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता टी.आर. अधीरुजीना को नियुक्त किया है। हिंदू धर्म से अन्य धर्म अपनाने वाले दलितों को आरक्षण देने के पक्ष और विपक्ष में याचिकाएं दायर की गई हैं। पीठ ने कहा कि 1950 के राष्ट्रपति के आदेश के मद्देनजर कुछ सवालों के पड़ताल की जरूरत है जिसमें आरक्षण नीति के तहत लाई गई जातियों की शिनाख्त की गई है। न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 24 फरवरी की तारीख तय की है। गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लेटिगेशन ने अपनी याचिका में सवाल उठाया था कि जब हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के भीतर दलितों को आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है तो अन्य धर्म अपनाने पर उन्हें आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता?
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