Tuesday, January 18, 2011

ये हैं देश के बड़े पांच घोटाले जिनसे मचा सियासी तूफान

देश में पिछले दिनों सामने आए कई बड़े घोटालों ने देश की छवि पर बदनुमा दाग लगा दिया है। बहुत संभव है कि इन घोटालों में शामिल लोगों की रकम काला धन के तौर पर विदेशी बैंकों में जमा होती है। अब ऐसे काले धन का राज खुलने की तैयारी है। आइए एक नजर डालते हैं देश के पांच सबसे बड़े घोटालों पर जिसने सियासी तूफान खड़ा कर दिया था...

बोफोर्स घोटाला: 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकाई थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स कांड के नाम से जाना जाता है। सीबीआई ने विन चड्ढा, ओट्टावियो क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एसके भटनागर और बोफोर्स के पूर्व प्रमुख मार्टिन अर्बदो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

हवाला कांड: 18 लाख अमेरिकी डॉलर की रिश्‍वत से जुड़े इस मामले में देश के प्रमुख राजनेताओं के नाम आने से सियासी गलियारे में हड़कंप मच गया था। इसमें राजनेताओं पर हवाला ब्रोकर जैन बंधुओं के जरिये यह राशि लिए जाने का आरोप था। इस घोटला के आरोपियों में भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी, कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्‍ल, शरद यादव, बलराम जाखड और मदन लाल खुराना सहित कई राजनेताओं और मशहूर हस्तियों का नाम था। इनमें अधिकतर आरोपी सबूतों के अभाव में करीब 12-13 साल पहले ही बरी हो चुके हैं।

स्‍टॉम्‍प घोटाला: अब्‍दुल करीम तेलगी 43 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी स्‍टॉम्‍प घोटाले का मुख्‍य अभियुक्‍त है। तेलगी को इस मामले में दस साल की कैद हुई है। सितम्‍बर 2006 में नारको टेस्‍ट के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार और छगन भुजबल का भी नाम लिया था। स्टॉम्प घोटाला में भुजबल का नाम उछलने के बाद पार्टी ने उन्हें महाराष्‍ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से हटाया जिसके बाद छगन भुजबल करीब 3 सालों तक राजनीतिक अज्ञातवास में रहे थे। कई पुलिस अधिकारियों पर आरोप है कि उन्‍होंने जेल के भीतर से ही तेलगी को फर्जी स्‍टाम्‍प का गोरखधंधा चलाने में मदद की। फर्जी स्टाम्प घोटाले के मुख्य आरोपी तेलगी को न्यायालय ने सात साल की सजा सुनाई है।

2जी घोटाला: संसद में पेश सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक यह पूरा घोटाला 1.76 करोड़ रुपये का बताया गया है। आरोप है कि दूरसंचार मंत्रालय ने 2जी स्‍पेक्‍ट्रम की नीलामी के दौरान नियमों को ताक पर रखकर प्रमुख निजी टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस दिया। ये लाइसेंस 2008 में आवंटित किए गए थे, जिसमें नियमों का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया था। इस मामले में तत्‍कालीन दूरसंचार मंत्री और डीएमके नेता ए राजा को पद भी छोड़ना पड़ा है। मामले की जांच सीबीआई के जिम्‍मे है। विपक्षी दलों ने इस मामले की जांच जेपीसी को सौंपे जाने के मुद्दे पर संसद का शीत सत्र नहीं चलने दिया।

राष्‍ट्रमंडल खेल घोटाला: नई दिल्‍ली में गत अक्‍टूबर में हुए राष्‍ट्रमंडल खेलों के आयोजन में बड़े पैमाने की आर्थिक अनियमितता की बात सामने आने के बाद सियासी माहौल गरमा गया। इन गड़बडियों की जांच में जुटी सीबीआई ने कांग्रेस नेता और इन खेलों की आयोजन समिति के अध्‍यक्ष सुरेश कलमाड़ी से लंदन में 2009 में हुई क्वींस बेटन रिले के भुगतान और कई कंपनियों को दिए गए करोड़ों रुपये के ठेकों के बारे में पूछताछ की है। इस मामले में कलमाड़ी के कई करीबी अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई है। एक अनुमान के मुताबिक राष्‍ट्रमंडल खेलों और इसके आयोजन से जुड़े अन्‍य कार्यों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए जिसमें अधिकतर धनराशि आयोजन समिति के अधिकारियों के जेब में जाने के आरोप हैं। इन खेलों के दौरान करीब 70-80 हजार करोड़ रुपये के वारे न्‍यारे होने का अनुमान है।

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