Friday, February 18, 2011

भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति के बहाने

हथौड़ा :भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति के बहाने
एक विनम्र निवेदन – जिनकी निगाह में भ्रष्टाचार बुराई और भ्रष्टाचारी पापी हैं कृपया वे इस लेख को न पढ़ें।


हम बात-बेबात भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर गर्व करने का कोई मौका नहीं चूकते मगर बात जब भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति पर गर्व करने की आती है हममें से कई नाक-भौं-सिकोड़ लेते हैं। वे भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति को बरदाशत ही नहीं कर पाते। भ्रष्टाचार पर अगर कहीं उनसे कुछ बोलने को कह दिया जाए सिवाय बुराई के कभी कुछ नहीं कहते। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी पर जब-तब बिगड़ते रहते हैं। उनसे कभी कोई मधुर रिश्ते बनाने का प्रयास नहीं करते। खुद चाहें कितना भी भ्रष्ट या दुराचारी हों परंतु भ्रष्टाचार को कोसे बिना उन्हें नींद नहीं आती।

आप माने या न माने पर मुझे भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति के अस्तित्व की चिंता हर वक्त सताती रहती है। मैं हर पल यह दुआ करता हूं कि ईश्वर हमारे देश-समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के अस्तित्व पर कभी संकट न आने दें। यह निर्विवाद सत्य है कि सिर्फ हमारे ही देश में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के लिए तमाम संभावनाएं हैं। हममें ही यह हुनर है कि हम कहीं भी कभी भी भ्रष्टाचार की बुनियाद रख सकते हैं। क्षेत्र चाहें राजनीति का हो या सामाजिक हम भ्रष्टाचार के बीज को पनपना ही लेते हैं। खुद भी खाते हैं और सामने वाले को भी खाने-दबाने की पूरा मौका देते हैं। यह भ्रष्टाचार का नियम है कि दूसरे की मुट्ठी गर्म किए बिना अपनी मुट्ठी गर्म नहीं हो सकती।
भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति को नित नए आयाम देने में हमारे जन-हितेषी राजनेताओं-मंत्रियों ने महत्वपूर्ण काम किया है। निरंतर कर रहे हैं। केंद्र या राज्य सरकार के मंत्री भ्रष्टाचार के प्रति बेहद संवेदनशील रहते हैं। देखिए सत्ता पाने का मतलब यह नहीं होता कि आप हमेशा जनता के बारे में ही सोंचे या उनके सुख-दुख का ख्याल रखें। कई मौके ऐसे भी आते हैं जब आपको अपने व अपनों के बारे में भी सोचना पड़ता है। पैसा कहां से आए कैसे आए इस पर गहन मंथन करना पड़ता है। तमाम तरह की योजनाएं बनानी पड़ती हैं। सत्ता में रहकर ऐसा लोगों को लगता हो कि पैसा कमाना बहुत आसान है पर यह बेहद मुश्किल काम है। बैलेंस बनाकर चलना पड़ता है। छवि को साफ-सुथरा रखना पड़ता है। चेहरे के रूप-प्रतिरूप को साधना-संवारना पड़ता है। अगर नेता या मंत्री हैं तो जनता की निगाह में जनसेवक ही बने रहें। पर्दे के पीछे रहकर चाहें जो करें कोई नहीं जान सकता।

इधर श्रीमान मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार में संलिप्त रहने की खबर जबसे पड़ी है मन बेहद आहत है। आहत इस बात से हूं कि जनता और पुलिस यह समझने का प्रयास ही नहीं करती कि श्रीमान कोड़ा कितने महत्वपूर्ण कार्य में संलग्न थे। वे भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी की सभ्यता-संस्कृति को बढ़ाने-संवारे पर मेहतन कर रहे थे। दो या चार हजार करोड़ की संपत्ति पर एकाधिकार पैदा कर लेने किसी लंजु-पंजु के बस की बात नहीं। यह सिर्फ श्रीमान कोड़ा ही कर सकते थे। उन्होंने किया भी। इतना कम समय मुख्यमंत्री रहते हुए इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लेना निश्चित ही बड़ी बात है।
आप कितना ही कुछ कह-कर लें परंतु भ्रष्टाचार की सभ्यता-संस्कृति से अलग नहीं हो सकते। कहीं जाएं कहीं खाएं भ्रष्टाचार के देवता से आपकी भेंट हो ही जाएगी। मैं तो यहां तक कहने को तैयार हूं कि हम भ्रष्टाचार के बिना कहीं भी एक कदम नहीं चल-फिर सकते। अब सरकारें करती रहे जुबानी जमा-खर्च उससे होता ही क्या है। न बड़ी मछली पकड़ में आती है न ही छोटी।
ये जो सादगी पसंद भद्रजन हर वक्त भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के विरूद्ध आंदोलनरत रहते हैं क्या इन्होंने कभी किसी भ्रष्टाचार में हिस्सेदारी नहीं की। अगर ये ईमानदार रहे भी तो कौन-सा बड़ा पदम-पुरस्कार इन्हें मिल गया। बस दो शब्द यही तो सुनने को मिलें फलां बड़े ईमानदार हैं या थे। पर बंधु आज के समय में महज शब्दों से नहीं अर्थ से पेट भरता है। जिसके पास अर्थ नहीं वो बेअर्थ है।


अंशुमाली रस्तोगी व्यंग्यकार हैं. "सौ सुनार की, एक लुहार की", के अंदाज़ में गंभीर बात को भी सहज अंदाज़ में हथौड़ा सा प्रहार करते हैं

ईमानदारी से कहूं मेरी श्रीमान मधु कोड़ा की अद्भुत भ्रष्टाचारी-प्रवृति में गहरा आस्था है। मैं उन्हें और उन जैसे कोड़ाओं को भ्रष्टाचारी सभ्यता-संस्कृति का महान नायक मानता हूं। राजनीति में रहकर जनहित के साथ स्वयं-हित भी सवारें जा सकते हैं यह मैंने उन्हीं से सिखा है। जनता का दर्द जनता निभाए। जनता का काम केवल वोट देना है। नेताओं से हिसाब-किताब की सूचना लेना नहीं।
भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के व्यवहार पर यूं ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं। ये सभ्यता-संस्कृति बनी है और बनी रहेगी। जिन्हें इससे हट-बचकर चलना है कृपया वे अपना आशियाना चांद पर तलाशें। क्योंकि सभ्य और ईमानदारी लोगों की आवश्यकता अब इस धरती पर नहीं है।



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