Friday, February 18, 2011

महंगाई के दोषी


हथौड़ा : महंगाई के दोषीखमांखां ही मैं इस उस मंत्री-नेता को महंगाई के लिए दोषी मानता व ठहराता रहा। यह मेरी नासमझी थी। इस मुद्दे पर मैं अपना ‘विरोध’ वापस लेता हूं। यह बात मेरे भेजे में जरा देर से घुसी कि महंगाई के लिए कोई नेता या मंत्री नहीं सिर्फ मैं ही दोषी हूं। मेरा दोष यह है मैं जनता हूं। अगर जनता न होता तो शायद बढ़ती महंगाई का असर मुझ पर नहीं पड़ता। तब न मैं परेशान होकर प्रदर्शन करता न महंगाई-विरोध में कुछ लिखता-लिखाता।

दूसरा बड़ा कारण यह है कि मैं चलता-फिरता खाता-पीता मनुष्य हूं। अगर मनुष्य न होता याकि जानवर होता तो मेरा काम रोटी-दाल के इतर घास-फूस से चल जाता। मनुष्य होने की कीमत ऐसे चुकानी पड़ती है; अब जाकर एहसास हुआ। मेरा मानना है कि मनुष्य से कहीं ज्यादा सुखी जानवर हैं। बेचारे को कहीं भी बैठा लो, कुछ भी खिला दो वो सब में प्रसन्न रहता है। मगर मनुष्य की हसरतों का क्या करेंगे वो तो हर वक्त इधर-उधर की हरकतों में लगा रहता है। अगर मनुष्य हरकती न होता तो न महंगाई बढ़ती न गरीबी या भूख से कोई मरता।

लेकिन फिर भी मैं इस बात पर दृढ़ रहना चाहता हूं इस सब के लिए दोषी कोई नेता या मंत्री नहीं बल्कि मैं (यानी जनता) हूं। वे बेचारे तो देश और लोकतंत्र को सजाने-संवारने में जी-जीन से जुटे हैं। सत्ता की प्राप्ति के पश्चात कुर्सी का सुख भोग रहे हैं। बेशक वे देश की जनता के लिए चिंतित हैं पर संदर्भ बदल गए हैं। याकि उन संदर्भों को हमने अपने हिसाब से बदल डाला है। यह गहन चिंतन का विषय है।


अंशुमाली रस्तोगी व्यंग्यकार हैं. "सौ सुनार की, एक लुहार की", के अंदाज़ में गंभीर बात को भी सहज अंदाज़ में हथौड़ा सा प्रहार करते हैं

अभी एक मंत्रीजी के इस सच को सुनकर बेहद गर्व महसूस हुआ कि महंगाई के लिए अकेले वे ही नहीं बल्कि ‘वे’ भी दोषी हैं। अब ये ‘वे’ कौन हैं, आप समझ गए न। जरा यह भी तो समझिए कि वे कृषि मंत्री हैं कोई महंगाई नियंत्रक मंत्री नहीं। आप उनसे कृषि और किसान हितों पर बात कीजिए। महंगाई पर वे बेचारे क्या कर और करवा सकते हैं!

महंगाई ध्वस्त करने का केवल एक ही तरीका हो सकता है कि हम-आप अपने-अपने पेटों व खान-पान का दायरा घटा दें। कोशिश दर कोशिश करें रोटी की जगह गेहूं सूंघने और दाल की जगह पानी पाने की। मनुष्य जब खाएगा-पीएगा नहीं बचत दर बचत होती रहेगी। हमारा यह त्याग निश्चित ही महंगाई को काबू में रख सकता है। प्रयास करें।
देखिए, मैं पुनः कह रहा हूं कि इस उस नेता या मंत्री को महंगाई के वास्ते दोषी ठहराने से कुछ नहीं होने-हवाने वाला। महंगाई के लिए दोषी मैं ही हूं। यही सफेद सच है।


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