डॉ हुमा ख़्वाजा ने लखनऊ में फिरंगी महली के दारुल इफ़्ता में सवाल किया कि क्या इस्लाम में लड़कियों की शिक्षा की अनिवार्यता नहीं हैं? क्या मुसलमान को अपनी बच्चियों को नहीं पढ़ाना चाहिए? तो जवाब में फिरंगी महली ने जो फ़तवा इश्श्यु किया वह हमारी पश्चिमीकृत भारतीय मीडिया के गाल पर झन्नाटे-दार और क़रारा तमाचा समान है, जो लगातार और बार-बार यह प्रॉपगेंडा फ़ैलाते रहते है कि इस्लाम में नारी को शिक्षा से वंचित रखा जाता है. वैसे भी यह फ़तवा तो मात्र डॉ हुमा ख़्वाजा के सवाल का जवाब भर था. हक़ीक़त में अगर आप देखेंगे कि इस्लाम में नारी के क्या-क्या अधिकार हैं तो आपको पता चल जाएगा कि विश्व की किसी भी अन्य संस्कृति में नारी का स्थान, सम्मान और दशा क्या है और इस्लाम में क्या है!
लड़कियों की शिक्षा के मुताल्लिक पूछे गए सवाल पर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली, लखनऊ का साफ़-साफ़ जवाब और फ़तवा था कि लड़कियों की शिक्षा इस्लाम में अनिवार्य है और हर एक मुसलमान को चाहिए कि वह लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दे.
मौलाना ने जवाब लिखित में दिया है. उन्होंने एक हदीस का भी हवाला दिया और लड़कियों की शिक्षा की अनिवार्यता को स्पष्ट किया कि "एक व्यक्ति को यह अति-अनिवार्य है कि वह अपने घर की लड़कियों की शिक्षा की यथा-उचित और समुचित व्यवस्था करे, वर्तमान में भारत में मुसलमानों की गरीबी की मूल वजह उनके द्वारा लड़कियों को शिक्षा न देने से भी है, हम सब जानते हैं कि घर में बच्चे ज़्यादातर समय अपनी माँ के साथ ही व्यतीत करते हैं और यदि वह (माँ) पढ़ी-लिखी होगी तो अपनी औलाद को (गरीब होने के बावजूद) उचित पालन दे सकेगी यही नहीं वह उसे पढ़ा भी सकती है." फ़तवा में यह भी इंगित है कि "पैगम्बर मोहम्मद (सल्ल०) ने बच्चो की तालीम को बहुत ज़्यादा तवज्जोह देने की हिदायत दी है; ख़ास कर लड़कियों की"
मौलाना ने जवाब लिखित में दिया है. उन्होंने एक हदीस का भी हवाला दिया और लड़कियों की शिक्षा की अनिवार्यता को स्पष्ट किया कि "एक व्यक्ति को यह अति-अनिवार्य है कि वह अपने घर की लड़कियों की शिक्षा की यथा-उचित और समुचित व्यवस्था करे, वर्तमान में भारत में मुसलमानों की गरीबी की मूल वजह उनके द्वारा लड़कियों को शिक्षा न देने से भी है, हम सब जानते हैं कि घर में बच्चे ज़्यादातर समय अपनी माँ के साथ ही व्यतीत करते हैं और यदि वह (माँ) पढ़ी-लिखी होगी तो अपनी औलाद को (गरीब होने के बावजूद) उचित पालन दे सकेगी यही नहीं वह उसे पढ़ा भी सकती है." फ़तवा में यह भी इंगित है कि "पैगम्बर मोहम्मद (सल्ल०) ने बच्चो की तालीम को बहुत ज़्यादा तवज्जोह देने की हिदायत दी है; ख़ास कर लड़कियों की"
एक मर्द ने पढ़ा तो समझो एक फ़र्द (व्यक्ति) पढ़ा और अगर एक औरत पढ़ी तो समझो एक परिवार, एक ख़ानदान पढ़ा."
इस्लाम ज्ञानोदय में विश्वाश रखता है और यह तभी संभव है जब शिक्षा होगी. शिक्षा ही समाज के मूलभूत प्रगति और उन्नति करने का एक मात्र माध्यम है बल्कि मील का पत्थर है. इसलिए मुसलमानों को किसी भी तरह के भ्रम में रहने की आवश्यकता नहीं है और बच्चो की शिक्षा के लिए वे जिहाद (मेहनत, strive ) करें; ख़ास कर लड़कियों की शिक्षा के लिए !!!
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