Sunday, March 20, 2011

उजागर हुआ आडवाणी का दोहरा चरित्र


उजागर हुआ आडवाणी का दोहरा चरित्र
भारत अमेरिका परमाणु समझौते का विरोध करनेवाली भाजपा का असली चरित्र सामने आ गया है. चरित्र यह कि हम जो बोलते हैं वह करते नहीं. विकीलीक्स के ताजा खुलासे में साफ होता है कि भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी तो अमेरिकी एजंट की तरह व्यवहार कर रहे थे और एक ओर सार्वजनिक रूप से जहां वे परमाणु संधि का विरोध कर रहे थे और इसे देश के लिए घातक बता रहे थे वहीं अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात में वे उन्हें भरोसा दिला रहे थे सत्ता में आने के बाद वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे इस संधि को क्षति पहुंचे.
13 मई 2009 को अमेरिकी प्रशासन को भारत स्थित अमेरिकी दूतावास के अति गोपनीय कूट संदेश में बताया जा रहा है कि "चार्ज से मुलाकात के दौरान आडवाणी काफी रिलैक्स दिख रहे थे. आडवाणी ने विश्वास दिलाया कि केन्द्र में भाजपा की अगुवाई में सरकार बनती है तो भारत अमेरिकी रिश्तों में कोई बदलाव नहीं आयेगा. उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा की प्रशंसा की और कहा कि भारत में उनकी बहुत इज्जत की जाती है. आडवाणी ने ऐसी किसी भी संभावना से इंकार किया कि सत्ता में आने के बाद वे भारत अमेरिकी नागरिक परमाणु संधि को दोबारा खोलेंगे." आडवाणी उस चार्ज को यह भरोसा भी दिला रहे हैं सत्ता आई तो भारत अमेरिका संबंध और अधिक मजबूत और प्रगाढ़ होगे. अमेरिकी अधिकारी अपने डिस्पैच में साफ लिख रहा है कि "Advani was clear that there would be no imminent BJP move to reopen the deal. In his view ""government is a continuity,"" particularly in matters of foreign policy and international agreements ""cannot be taken lightly." अब अगर भाजपा इसको गलत सिद्ध करने की कोशिश करे तो उसके दोहरे चरित्र पर दोहरे होकर हंसना चाहिए.
13 मई को आडवाणी अमेरिका के चार्ज पीटर बर्लिंघ से मुलाकात की थी. मुलाकात के बाद 14 मई को पार्टी के नेता वैंकेया नायडू ने प्रेस को बताया था कि एक अमेरिकी दूतावास के वरिष्ठ अधिकारी ने आडवाणी जी से मुलाकात की है और मुलाकात के दौरान आडवाणी जी नागरिक परमाणु संधि पर अपनी "चिंताओं" से उन्हें अवगत कराया है. उस वक्त भी वैंकेया ने कहा था कि भाजपा सत्ता में आने के बाद डील को रद्द तो नहीं करेगी लेकिन उसके कुछ प्रावधानों में फेरबदल करेगी. अब आडवाणी का दोहरा चरित्र यह है कि एक ओर उनके सिपहसालार मीडिया को यह बता रहे हैं कि वे सत्ता में आने के बाद संधि के कुछ प्रावधानों में बदलाव करेंगे जबकि अमेरिकी चार्ज अपनी सरकार को जो डिस्पैच भेज रहा है उसमें बता रहा है कि आडवाणी जी इस संधि को "रिओपेन" न करने का भरोसा दिला रहे हैं.

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