नमस्कार अन्ना
उम्मीद है आप स्वस्थ होंगे। उस दिन 9अप्रैल को बारह बजे के लगभग जब आप दिल्ली के जंतर-मंतर पर मंच से नीचे उतर गये तो हम आपसे बात करने को लपके थे, मगर वहां से पता नहीं आप कहां ओझल हो गये। अनशन स्थल के पीछे स्वामी अग्निवेश के बंधुआ मुक्ति मोर्चा के दफ्तर में भी गया कि आप शायद वहां हों, लेकिन वहां भी नहीं मिले। अलबत्ता स्वामी अग्निवेश जिस कमरे में आमतौर पर पत्रकारों से रू-ब-रू होते हैं, उसमें एक चैनल ने चलता-फिरता स्टूडियो जरूर बना लिया था।
उस दिन के बाद अब मैं आपको सीधे टीवी में देख रहा हूं। अन्ना मुझे दुख है कि आपकी और आपके सहयोगियों की ईमानदारी और शुचिता पर शक किया जा रहा है। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस से लेकर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में आपके साथ रहे लोग भी अब उसमें शामिल हो गये हैं। कमोबेश इसका एनएपीएम (नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट) जैसा हस्र होता दिख रहा है। आपको तो याद होगा कि दर्जनों सामाजिक संगठनों और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ताओं की और से कुछ वर्ष पहले जब एनएपीएम का गठन हुआ तो लोगों में व्यवस्था बदलने की उम्मीद बंधी थी. एनएपीएम के आह्वान पर जनता दो कदम बढाती उससे पहले ही आन्दोलन में शामिल बुद्धिजीवियों की महत्वाकांक्षाएं आसमान चढ़ गयीं और कल तक जो लोग भ्रष्ट व्यवस्था को कोस रहे थे, उससे ज्यादा एक-दूसरे में मीन -मेख निकालने लगे और आखिरकार एकता बिखर गयी.
आपके अभियान को कठघरे में खड़ा करने वाले कह रहे हैं कि नागरिक समाज की ओर से जो पांच लोगों की टीम आपने चुनी है,उसमें झोल है। चुने गये लोग भी दागदार और भ्रष्टाचारी हैं। राजनीति में बालीवुड के प्रतिनिधि और समाजवादी पार्टी से निष्कासित नेता अमर सिंह सीडी लेकर कूद रहे हैं और कहते फिर रहे हैं कि चोरों से बचाने का जिम्मा डकैतों को काहे देते हो जी। ऊपर से सरकारी फारेंसिक लैब ने शांतिभूषण, मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की बातचीत वाली सीडी को असल बताने के बाद आपकी फजीहत और बढ़ा दी है। यानी कुल मिलाकर भ्रष्टाचार को बनाये रखने वालों ने आपको चौतरफा घेर लिया है और लोकपाल बिल पर मसौदा तैयार होने से पहले आपलोगों का चरित्र प्रमाण पत्र जारी कर दिया है.
अमर सिंह की निगाह में शांतिभूषण डकैत हैं और अपने जैसे नेताओं को वह चोर मानते हैं। इसलिए वह राय देते हैं कि अब अरुणा राय या हर्षमंदर में से भी किसी को मसौदा समिति में शामिल करो और शांतिभूषण को निकाल बाहर करो। यही मांग कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भी कर रहे हैं।
बहरहाल, आपने जंतर-मंतर पर 8 अप्रैल को ईमानदारी की खोज प्रतियोगिता के ऑडिशन में नागरिक समाज की ओर से शामिल हो रहे लोगों में सबसे उपयुक्त प्रतिनिधि शांतिभूषण हैं को माना था। उसके बाद आपके विशेष सहयोगी अरविंद केजरिवाल ने उनके नाम की घोषणा की थी। ईमानदारी के इसी बारीक परीक्षण में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जेएस वर्मा की छंटनी हो गयी थी। छंटनी इसलिए हो गयी थी, क्योंकि वह कुख्यात बहुराष्ट्रीय कंपनी कोका कोला के फाउंडेशन सदस्यों में से एक हैं और उनको समिति में शामिल करने से आपके धवल छवि पर भ्रष्टाचार की छाप पड़ती।
मगर अब उस धवल छवि पर छापों की बढती संख्या ने तो बड़ा घालमेल का माहौल बना दिया है। देश की लाखों जनता जो टीवी पर आपके आमरण अनशन का समाचार सुनकर उद्वेलित हुई थी, वह अब कन्फ्यूज हो रही है। अपने नेता और उनके सहयोगियों की भद्द पिटते देख वह खून का घूंट पी रही है।
जिस अन्ना और उसकी टीम को वह सप्ताह भर पहले दुनिया का सबसे ईमानदार और मोह-माया से मुक्त मानकर भ्रष्टाचार के मुखालफत की कमान थमा के आयी थी, वह सप्ताह भर में ऐसा हो गया या भ्रष्टाचारी दैत्य मिलकर उसके राह में रोड़ा अटका रहे हैं, जनता फिलहाल इस गहरे द्वंद में है। आपके नाम पत्र लिखे जाने तक कुछ जगहों पर लोग द्वंद से निराशा में जा रहे हैं और दोहराने लगे हैं कि सब साले चोर हैं, भ्रष्टाचार का कुछ नहीं हो सकता।
मगर देश की बड़ी आबादी अभी मान रही है कि आपका आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत शिकस्त देगा। लेकिन इस अहसास को वह जाहिर कहां करे? टीवी वाले इस बात पर अब जनता की बाइट नहीं ले रहे और न ही मोमबत्ती बांट रहे हैं। कैमरा, लाइट और एक्शन का फ्यूजन अब उस ओर चला गया है जो पांच से नौ अप्रैल तक आपकी ओर था। इसलिए इतनी जल्दी रंग बदलकर दूसरे पाले में कूद चुके मीडिया वालों का आप नंबर सार्वजनिक करिये, बाकि जनता खुद ही निपट लेगी।
ज्यादा संभव है कि अबकी बार कैमरा, एक्शन और लाइट का खर्चा भी जनता खुद ही उठा ले। कारण कि इसके आगे भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे लड़ा जाये, इसकी शिक्षा तो आपके जंतर-मंतर आंदोलन से जनता को नहीं मिल पायी। समझने के लिए कहें जो जैसे कई बार चाय की टेबल पर क्रांति की जाती है, वैसे अबकी टीवी पर जनता उठ खड़ी हुई और अपनी नफरत जाहिर करने लगी। ऐसे में जनता के बीच जाना आपकी शीघ्र आवश्यकता बन गयी है अन्ना। अन्यथा आपके समर्थन में खड़ी होने को बेताब जनता फिर एक बार गहरी निराशा में जायेगी।
अन्ना भरोसा करिए, जनता बड़े दिल की होती है और अपने नेता और पार्टी की गलतियों को अगले संघर्षों में भूल जाती है और नये जोश के साथ, नये नारों को लेकर चल पड़ती है। इसलिए बगैर किसी भय और देरी के अन्ना अपनी टीम को लेकर संघर्ष में उतरिये। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई चैनलों के झुंड और टीआरपी की लड़ाई तो नहीं है न। इसे तो आप भी समझते हैं, तो किसका इंतजार कर रहे हैं।
यहां अभी जो आप मसौदा समिति के लोगों पर हमला देख रहे हैं, वह तो लोकपाल बिल आपको झुकाने का श्रीगणेश है। असल खेल तो संसद में होगा, जहां न आप होंगे और न आपका शुद्धतावाद। उसके बाद भ्रष्टाचारियों के दलाल हो चुके जनप्रतिनिधि लोकपाल को रीढ़विहीन करने की कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इसलिए अन्ना आपके हिस्से का अंतिम और असल विकल्प सिर्फ जनता के बीच लौटना ही है। जाहिरा तौर पर वह जनता टीवी पर कम, काम पर ज्यादा दिखती है।
थोड़ा कहना बहुत समझना. ऊंच-नीच, गलती - सही माफ़ कीजियेगा.
आपका अनुज
अजय प्रकाश
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