मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल अब विनायक सेन की तरह ही माओवादी साहित्य रखने के साथ राजद्रोह के आरोप में इलाहाबाद जेल में बंद पत्रकार सीमा आजाद का सवाल उठाने जा रहा है। पीयूसीएल इस मामले में उत्तर प्रदेश में जन दबाव बनाने के लिए विनायक सेन को आमंत्रित करने जा रहा है ।
पत्रकार सीमा आजाद |
पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने जनसत्ता को आज यह जानकारी दी। पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता सीमा आजाद को करीब साल भर पहले माओवादी साहित्य रखने के साथ माओवादियों से संबंध और राजद्रोह जैसी धाराओं में गिरफ्तार किया गया था। सीमा आजाद की गिरफ्तारी उस समय हुई जब वे दिल्ली के प्रगति मैदान में पुस्तक मेला देखने के बाद कुछ पुस्तके लकर लौट रही थी । इलाहाबाद की पुलिस को इन पुस्तकों में माओवाद भी नजर आया जिसके बाद कई माओवादी कमांडरों से संपर्क आदि तलाश कर पुलिस ने वे सभी धाराएं लगा दी जिससे जमानत न मिलने पाए।
पुलिस अपनी इस प्रतिभा का इस्तेमाल आमतौर पर राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर पहले से करती रही है। जिसके चलते सीमा आजाद अभी भी जेल में है । पीयूसीएल ने दो महीने पहले सीमा आजाद की गिरफ्तारी और राजद्रोह की धारा 124 ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसकी कल सुनवाई है । इसके अलावा पीयूसीएल इस मामले में जन दबाव भी तैयार करने जा रहा है ।
चितरंजन सिंह ने कहा - पीयूसीएल मई के अंतिम सप्ताह में लखनऊ में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी करने जा रहा है जिसमे राजद्रोह की धारा 124 ए पर चर्चा होगी । विनायक सेन से लेकर सीमा आजाद तक इसी धारा के तहत देशद्रोही बताए गए । इस संगोष्ठी में विनायक सेन को भी आमंत्रित किया जा रहा है । इससे पहले दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान म सात और आठ मई को राजद्रोह की इस धारा पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई है जिसमे जस्टिस जेएस वर्मा समेत कई मानवाधिकार कार्यकर्त्ता देश भर से आएंगे।
इसका मकसद राजद्रोह की इस धारा के खिलाफ माहौल बनाना है जिसका इस्तेमाल पुलिस अकसर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फंसाने के लिए करती है । इस बीच विनायक सेन ने राजद्रोह की इस धारा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा -यह मुद्दा अब हमारे एजंडा में है और संभवतः केंद्र सरकार भी कुछ पहल करे । सेन ने फोन पर बात करते हुए आगे कहा - सीमा के सवाल और राजद्रोह की इस धारा पर लखनऊ के कार्यक्रम मै जरुर शामिल होऊंगा ।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों जिसमे छत्तीसगढ़ भी शामिल है ,इन राज्यों में पुलिस आमतौर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादियों का मुखौटा मानती है जो उनके उत्पीडन का सवाल उठाते है। छत्तीसगढ़ में पुलिस ने करीब आधा दर्जन पत्रकारों को भी माओवादियों का समर्थक मान उनकी सूची बना रखी है । इसी तरह दिल्ली और उत्तर प्रदेश में भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ चुनिंदा पत्रकारों पर पुलिस की नजर है और उनके फोन सर्विलांस पर रखे गए है।
विनायक सेन की रिहाई के बाद सीमा आजाद का मुद्दा उठाकर मानवाधिकार संगठन राजद्रोह की धारा पर राष्ट्रीय बहस भी लगे हाथों शुरू करना चाहते है। मानवाधिकार संगठन इस मुद्दे पर कई कार्यक्रम की योजना बना रहे है । विनायक सेन की रिहाई को लेकर उत्तर प्रदेश के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुआ था जिससे मंवाधीकारों का सवाल उठाने वालों के हौंसले बुलंद है ।
(जनसत्ता से साभार)
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