लोग अपनी एक इंच ज़मीन के लिए मारने मरने पर उतारू हो जाते हैं। लेकिन एक दिल्ली वक्फ बोर्ड है जिसके रखवाल अपने पुर्खों की ज़मीन को अपनी मानने से इंकार कर देते हैं। ऐसा एक बार नहीं अनेकों बार हुआ है। और इसके गवाह हैं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहम्मद साजिद। वक्फ बोर्ड की ज़मीन को बचाने के लिए पेश हुए साजिद साहब से अदालत ने पूछा कि आप किस हैसियत से खड़े हैं। तब वकील साहब का जवाब था कि वो एक मुसलमान हैं और हर मुसलमान का फर्ज़ है वक्फ बोर्ड की ज़मीन की हिफाज़त करना। साजिद साहब कहते हैं अकसर मुकदमों की अहम तारीखों पर भी वक्फ के वकील अदालतों में पेश नहीं होते। यही वजह है वक्फ बोर्ड अकसर मुकदमों में हार जाता है। वक्फ की ज़मीनों के डेढ़ दर्जन से ज्यादा मुकदमे लड़ चुके साजिद साहब ने बताया कि कई मामलों में उन्होंने देखा है कि वक्फ बोर्ड ने अपनी ज़मीन को अदालत में अपनी होने से ही इंकार कर दिया। सवाल ये उठता है वक्फ बोर्ड के वकील यक़ीनन बोर्ड से अपनी फीस लेते होंगे। उसके बावजूद उनकी ये हरकत बिना स्वार्थ तो हो नहीं सकती। इस मामले के एक दो नहीं कई दस्तावेज़ी सबूत मौजूद हैं। साजिद भाई ने मुफ्त में वक्फ बोर्ड की तरफ से 18 मुकदमे लड़े और किसी एक में भी नहीं हारे। जबकि आरटीआई के माध्यम से मिली जानकारी के मुताबिक चोधरी मतीन के कार्यकाल में कुल 1128 मुकदमों में से महज़ 122 मुकदमों का फैसला वक्फ बोर्ड पक्ष में हुआ। 261 विचाराधीन रहे। इसका मतलब 745 ज़मीनों के मुकदमे वक्फ बोर्ड हार गया। सवाल ये उठता है कि जो शख्स वक्फ के मुफ्त में मुकदमे लड़ रहा है वो सौ फीसदी जीत का नतीजा दे रहा है। और जो लोग रकम लेकर मुकदमे लड़ रहे हैं वो वक्फ की ज़मीन को गंवा रहे हैं। साजिद साहब ने वक्फ की तरफ जो मुकदमे लड़े हैं वो बड़े दिलचस्प हैं। जल्द ही हम उनको किश्तें में जारी करेंगे। दानिशवर मुसलमानों का मानना है वक्फ बोर्ड के तमाम फैसलों का निरीक्षण होना चाहिए। और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। उधर आज अली सेना ने वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन चौधरी मतीन की कारगुज़ारी के बारे में छपे पर्चे लोगों के बीच बांटे।
(अनवर चौहान)
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