Wednesday, April 27, 2011

खैरात लेने के बाद अमेरिका को आंखें दिखाने लगा है पाकिस्‍तान



पाकिस्तान की मदद करके अब अमरीका पछता रहा है. अब अमरीकी अधिकारी वे बातें सार्वजनिक रूप से कहने लगे हैं जो आम तौर पर दोनों देशों के बड़े नेता बंद कमरों में कहा करते थे. मसलन अब अमरीकी फौज के मुखिया ऐलानियाँ कह रहे हैं कि पाकिस्तानी सेना और उसकी संस्था आईएसआई आतंकवाद की प्रायोजक है. अभी पिछले हफ्ते पाकिस्तानी वित्त सचिव हफीज शेख ने कह दिया कि यह सच नहीं है कि उनका देश अमरीकी मदद से फायदा उठा रहा है. अमरीकी अधिकारियों ने फ़ौरन फटकार लगाई कि वित्त सचिव महोदय गलत बयानी कर रहे हैं. अमरीकी सरकार की तरफ से बताया गया कि पिछले दस वर्षों में अमरीका पाकिस्तान को बीस अरब डालर की मदद कर चुका है.
और जब से पाकिस्तान बना है अमरीका उसे करीब पचास अरब डालर का दान दे चुका है. यह भी साफ़ कर दिया गया कि यह शुद्ध रूप से खैरात है, इसके अलावा अमरीका समय-समय पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से सस्ते रेट पर क़र्ज़ वगैरह भी दिलवाता रहा है. पाकिस्तान को अमरीका ने बहुत बड़े पैमाने पर विकास के लिए भी सहायता की है. पाकिस्तानी सेना तो लगभग पूरी तरह अमरीकी मदद की वजह से चल पा रही है. अमरीका ने आरोप लगाया कि अमरीका से मिली हुई मदद के अस्तित्व को इनकार करके पाकिस्तान अहसान फरामोशी कर रहा है. इस बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच के संबंधों में बहुत तल्खी आ गयी है. इस तल्खी को दुरुस्त करने के उद्देश्य से पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर गुरुवार को अमरीका पहुंचे. लेकिन बात और बिगड़ गयी.
वहां अमरीकी सेना की संयुक्त कमान के मुखिया एडमिरल माइक मुलेन ने बयान दे दिया कि पाकिस्तानी सेना आतंकवाद की प्रायोजक है और उसी ने हक्कानी गिरोह और लश्कर-ए-तय्यबा को हर तरह की मदद की है. यह दोनों ही गिरोह अफगानिस्तान और भारत में तो आतंक फैला ही रहे हैं, यह आफगानिस्‍तान में अमरीकी और अन्य सहयोगी देशों के लोगों की हत्‍या भी कर रहे हैं. उनके इस बयान के बाद पाकिस्तानी सेना के मुखिया जनरल अशफाक परवेज़ कयानी भड़क उठे और उन्होंने अमरीका अपर गलत बात करने का आरोप लगा डाला. उन्होंने कहा कि अमरीका पाकिस्तान के बारे में नकारात्मक प्रचार कर रहा है और वे उस प्रचार को व्यक्तिगत रूप से खारिज करते हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी फौज आतंकवाद के खात्मे के लिए जो कुछ भी कर रही है, वह पाकिस्तानी राष्ट्र के दृढ़ निश्चय का बहुत बड़ा सबूत है.
अब अमरीकी शासकों को साफ़ नज़र आने लगा है कि पाकिस्तानी फौज की संस्था आईएसआई सही मायनों में आतंकवाद की ठेकेदार है. पिछले 30 वर्षों से भारत आईएसआई प्रायोजित आतंकवाद को झेला है. पंजाब और जम्मू-कश्मीर में आईएसआई के आतंक का सामना किया है. लेकिन जब भी अमरीका से कहा गया कि जो भी मदद पाकिस्तान को अमरीका तरफ से मिलती है उसका बड़ा हिस्सा भारत के खिलाफ इस्तेमाल होता है तो अमरीका ने उसे हंस कर टाल दिया. अब जब अमरीकी हितों पर हमला हो रहा है तो पाकिस्तान में अमरीका को कमी नज़र आने लगी है.
पाकिस्तान में अमरीका विरोध में भारी जनमत है. जो भी पाकिस्तानी नेता या फौजी अमरीका के खिलाफ बयान देता है उसकी अपने देश में इज्ज़त बढ़ जाती है. ज़ाहिर है जनरल कयानी के अमरीका के खिलाफ दिए गए बयान की बहुत तारीफ़ की जा रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि अगर अमरीका पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देना बंद कर दे पाकिस्तान में रोटी-पानी का संकट भी आ सकता है. अब तक पाकिस्तान को सउदी अरब से खासी मदद मिलती रही है, लेकिन अब पश्चिम एशिया में तानाशाही के खिलाफ चल रहे आन्दोलनों के चलते लगभग सभी अरब देश अपनी ही मुसीबतों में घिरे हुए हैं. उनके लिए किसी बाहरी देश की मदद कर पाना अब थोड़ा मुश्किल होगा. पाकिस्तान का मददगार चीन भी है लेकिन वह उसे नक़द कोई मदद नहीं देता. वह पाकिस्तान में बहुत सारी ढांचागत सुविधाओं की स्थापना कर रहा है, जिससे आने वाले वक़्त में पाकिस्तानी राष्ट्र को लाभ मिल सकता है. लेकिन पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि मुहम्मद अली जिन्नाह के बाद पाकिस्तान को कोई ऐसा नेता नसीब नहीं हुआ जो दूर की बात सोचे, पाकिस्तानी अवाम के भविष्य की चिंता करे. वहां पर तो जो भी सत्ता में आता है वह देश के संसाधनों को अपनी जेब में भरने के चक्कर में ही रहता है.
कई पाकिस्तानी तानाशाह तो ऐसे भी गुज़रे हैं जो देश की कीमत पर अपनी संपत्ति को बढाते रहे हैं. पाकिस्तानी फौज का भी यही इतिहास रहा है. उसके बड़े अफसर भी अमरीका से हर तरह का लाभ लेते रहे हैं. शीतयुद्ध के दिनों में दक्षिण एशिया में सोवियत रूस का प्रभाव काबू में करने के लिए पाकिस्तानी फौज  की खूब मदद की गयी. अफगानिस्तान से रूसी सेना को भगाने में पाकिस्तान की फौज और आईएसआई ने अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन सोवियत रूस के तबाह हो जाने के बाद अमरीका ने उस दौर में जिस आतंकवाद को उकसाया था वह उसी के गले पड़ गया. अब उसी आतंकवाद से लड़ने के लिए अमरीका को पाकिस्तानी मदद की ज़रुरत है. जार्ज बुश की मूर्खतापूर्ण कूटनीति के चलते अमरीका पिछले कई वर्षों से अफगानिस्तान में उलझ गया है. कई बार तो ऐसा लगता है कि अमरीका के लिए अफगानिस्तान की लड़ाई वियतनाम से भी महंगी पड़ सकती है. ऐसी हालत में उसे पाकिस्तान को नाराज़ करना बहुत भारी पड़ सकता है. यह बात सारी दुनिया के साथ-साथ पाकिस्तानी जनरल कयानी को भी पता है और वे उसी की कीमत वसूल रहे हैं और अपनी जनता की वाहवाही लेने के लिए अमरीका के खिलाफ उलटे-सीधे बयान भी देते रहते हैं. लेकिन अमरीका के सब्र का बाँध अगर टूट गया तो इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अमरीका पाकिस्तान को भविष्य में आर्थिक सहायता देने से मना कर दे. अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान को तबाह होने से कोई नहीं बचा सकेगा.
लेखक शेष नारायण सिंह देश में हिंदी के जाने-माने स्तंभकार, पत्रकार और टिप्पणीकार हैं.

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