नजमा परवीन नहीं रही। 21 साल की इस लड़की जला जिस्म भले ही छित्तनपुरा के फखरूद्दीन बाबा क्रबिस्तान में मिट्टी के ढेर के नीचे बेजान दबा पड़ा हो लेकिन उसकी रूह तो इंसाफ चाह रही होगी। यकीन मानिए बीते शुक्रवार तक नजमा हमारी ही दुनियां का हिस्सा बनी हुई थी अपने तमाम सपनों और हसरतों के साथ। लेकिन शनिवार की सुबह तक वो इस दुनियां को अलविदा कह चुकी थी। वो घर जिसमें से उसे डोली में विदा होना था उसकी अर्थी निकली। घर जैसी महफूज जगह नजमा के लिए जन्न्त नहीं जहन्नम साबित हुई उसे मौत देने वाले कोई गैर नहीं थे उसके घरवाले ही थे। सूत्रों का कहना है कि उसके घरवालों ने उसे जलाकर मार डाला।
जिस इलाके में एक घर की छत दूसरे घर से इस कदर जुड़ी हो कि आने वाली हवा का झोंका किसी एक घर में पकने वाली पकवानों की खुश्बू हर एक घर में ले जाती हो, ऐसी घनी आबादी वाले इलाके सलेमपुरा कोयलाबाजार थाना आदमपुरा में अस्सी फीसदी जली नजमा की चीखें तक पड़ोसियों को तो छोड़े खुद घर के नीचले हिस्से में रहने वाले घर के दूसरे लोगो तक को नहीं सुनाई देना हैरत में डालने वाली बात है। सूत्रों के अनुसार नजमा का किसी को चाहना उसके लिए सबसे बड़ा गुनाह बन गया। बाप मजीद ''टेन्ट वाले'' भाई शेरू, गुड्डू और उसे पैदा करने वाली मां को भी बिटिया की चाहत रास नहीं आई सो उसे मार डाला गया।
जरा खुद सोचिए कि क्या ये संभव है कि अस्सी फीसदी तक जलने वाला चीखा-चिल्लाया न हो। तो फिर क्या वजह है कि उसकी चीख किसी को सुनाई नहीं दी। कहीं ऐसा तो नहीं कि जलाने से पहले ही उसकी हत्या कर दी गई हो और उसके बाद हत्या को हादसे में बदलने के लिए उसके जिस्म को आग के हवाले किया गया हो। लेकिन इसका पता तो तब चलता जब लाश का पोस्टमार्टम हुआ होता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पूरी
खामोशी के साथ मौत के कारणों को दरकिनार करते हुए उसके जले जिस्म को सुपुर्दे खाक कर दिया गया। घरवालों का कहना है कि नजमा चाय बनाते रसोई में जल गई और ऐसी जली की उसकी सांसे उखड़ गई। लेकिन रात के ढाई बजे चाय बनाने की बात भी किसी के गले से उतरने लायक नहीं है।
जिस जगह नजमा जली वहां किसी भी तरह का कोई निशान तक नहीं पाया गया। जलने के बाद नजमा को पास करीब कबीरचौरा स्थित मण्डलीय अस्पताल न ले जाकर उसे रात में ही बुनकर अस्पताल ले जाया गया। इस बारे में जब बुनकर अस्पताल में जाकर पूछताछ की गई तो पहले तो अस्पताल वालों ने इस तरह के किसी जली लड़की के अस्पताल में ले आने की बात से ही इनकार कर दिया, लेकिन जब दबाब बना तो बताया गया कि रात को कोई डा. नसीम अख्तर मौजूद थे, जब नजमा को जली हालत में अस्पताल लाया गया। वही डा. नसीम अख्तर का कहना है कि मैंने तो लड़की की हालत को देखते हुए उसे फौरन मण्डलीय अस्पताल ले जाने को कहा था, लेकिन घरवाले तीन घंटे तक न जाने किस का इंजतार करते रहे। अंत में सुबह नजमा की लाश लेकर घरवाले घर लौटे।
गौर करने लायक बात ये है कि अस्पताल में नजमा को लाये जाने या उसके इलाज से संबधित कोई भी रिकार्ड कागज पर मौजूद नहीं है। नजमा के घरवालों से ये पूछे जाने पर पुलिस को इस हादसे की सूचना क्यों नहीं दी उनकी बोलती बंद हो गई। शनिवार की शाम जब इस बारे में जब 100 नम्बर पर फोन कर पुलिस कंट्रोल रूम को इस बात की सूचना दी गई तो उनका जवाब हैरत में डालने वाला था। कहा गया कि संबधित थाने में सम्पर्क कीजिए। इसके बाद थाना आदमपुरा से लगायत एसपी सिटी तक को नजमा की मौत के बारे में फोन पर जानकारी देते हुए मामले में हस्तक्षेप करने को कहा गया, लेकिन पुलिस ने मौके पर जाना तक जरूरी नहीं समझा। और असमय संदिग्ध हालत में हुई नजमा की मौत का राज उसके साथ क्रब में ही दफन हो गया। लेकिन नजमा की मौत की हकीकत सवाल बनकर हमारी सामाजिक व्यवस्था से लेकर कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर गई कि आखिर वो कौन सी जगह है, जहां हमारी बेटियां हिफाजत के साथ अपनी जिदंगी बसर कर सकती हैं? नजमा के लिए जीते जी उसके घरवाले अपने नहीं हुए और न तो उसके मौत के कारणों का पता लगाने में कानून ने कोई दिलचस्पी ली। इस समय भले ही नजमा का जिस्म क्रबिस्तान में खामोश खुद के साथ हुए हैवानियत और नाइंसाफी की कहानी नहीं कह सकता लेकिन उस रूह का क्या जो इंसाफ के लिए तड़प रही होगी? कह रही होगी
दफना दिया गया मेरी ख्वाइश को क्रब में
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का गरीब था।
आखिर कब तक कुंठित और हैवानियत भरी सोच का शिकार नजमाएं बनती रहेंगी?
लेखक भास्कर गुहा नियोगी वाराणसी के निवासी हैं तथा हिन्दी दैनिक युनाइटेड भारत से जुड़े हुए हैं.
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