करता अपने फर्ज़ से अब तो हर कोई गद्दारी है
आज का शिक्षक, सच पूछो तो शिक्षा का व्यापारी है
सारी सड़केँ लाल पड़ी हैँ ख़ून से देखो जनता के
और संसद मेँ वो ही पुरानी भाषणबाजी जारी है
इक झूठा इल्ज़ाम लगाकर कैद मेँ उसको डाल दिया
दुनियाँ भर की सरकारोँ पर जिसका केबिल भारी है
इस मिट्टी का ज़र्रा ज़र्रा मैँने तुमको दान किया
लेकिन इन सब दरियाओँ पर मेरी दावेदारी है
कुछ दिन से हंगामा करने का तेरा भी मन है और
दबी हुई मेरे अन्दर भी नफ़रत की चिँगारी है
इतना सुनना था के मैँने फिर जल्दी से हाँ कर दी
बाप भी उसका MLA है लड़की भी अधिकारी है
तेरी यादेँ हर पल मेरे दिल पर दस्तक देती हैँ
तेरी यादोँ से क्या मेरी कोई रिश्तेदारी है
पूरा होते होते मेरा हर इक सपना टूट गया
आरक्षण मेरे सपनोँ पर देखो इतना भारी है
तुम रुठो या वो रुठे दुनियाँ परवाह नहीँ
क्योँकि मुझको सच लिखने की बचपन से बीमारी है
रोटी कपड़ा भूख ग़रीबी इन सब पर भी बात करो
ज़ुल्फोँ मेँ ही उलझे रहना भी कोई फ़नकारी है
आज का शिक्षक, सच पूछो तो शिक्षा का व्यापारी है
सारी सड़केँ लाल पड़ी हैँ ख़ून से देखो जनता के
और संसद मेँ वो ही पुरानी भाषणबाजी जारी है
इक झूठा इल्ज़ाम लगाकर कैद मेँ उसको डाल दिया
दुनियाँ भर की सरकारोँ पर जिसका केबिल भारी है
इस मिट्टी का ज़र्रा ज़र्रा मैँने तुमको दान किया
लेकिन इन सब दरियाओँ पर मेरी दावेदारी है
कुछ दिन से हंगामा करने का तेरा भी मन है और
दबी हुई मेरे अन्दर भी नफ़रत की चिँगारी है
इतना सुनना था के मैँने फिर जल्दी से हाँ कर दी
बाप भी उसका MLA है लड़की भी अधिकारी है
तेरी यादेँ हर पल मेरे दिल पर दस्तक देती हैँ
तेरी यादोँ से क्या मेरी कोई रिश्तेदारी है
पूरा होते होते मेरा हर इक सपना टूट गया
आरक्षण मेरे सपनोँ पर देखो इतना भारी है
तुम रुठो या वो रुठे दुनियाँ परवाह नहीँ
क्योँकि मुझको सच लिखने की बचपन से बीमारी है
रोटी कपड़ा भूख ग़रीबी इन सब पर भी बात करो
ज़ुल्फोँ मेँ ही उलझे रहना भी कोई फ़नकारी है
सिराज फैसल खान
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