दिल्ली बम धमाकों की बरसी के अवसर पर इंटिलिजेंस ब्यूरो के सूत्रों से इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया कह रहा है कि बम्बई हवाई अड्डे पर हमला हो सकता है, अहमदाबाद में हमला हो सकता है। सी.बी.आई मुख्यालय पर हमला हो सकता है। या यूँ कहिये देश का कोई महत्वपूर्ण जगह सुरक्षित नहीं रह गयी है। इस तरह का प्रचार अभियान लगातार चला कर इंटिलिजेंस ब्यूरो देश के अन्दर दहशत का माहौल कायम करना चाहती। देश के नागरिको के टैक्स से अरबो रुपये इन एजेंसियों के ऊपर खर्च किये जाते हैं और इनके द्वारा जारी सूचनाएं भेड़िया आया- भेड़िया आया जैसी साबित होती हैं। जब भेड़िया आता है तो इन एजेंसियों का कहीं अता पता नहीं होता है। फिर खेल शुरू होता ईमेल आने का और इन ईमेल के माध्यम से फर्जी मुस्लिम आतंकी संगठनो और कुछ असली आतंकी संगठनो का नाम लगाकर दहशत के माहौल को पुख्ता सबूत देते हुए साम्प्रदायिकता का घिनौना खेल आरंभ होता है। बाद में इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया में बहुत छोटी सी खबर होती है कि ईमेल करने वाला गिरफ्तार और उसका कथित मुस्लिम आतंकी संगठनो से कोई सम्बन्ध नहीं है। लेकिन तब तक देश के अन्दर कितना जहर लोगों को दिया जा चुका होता है कि हवा चलने पर मारपीट (दंगा) शुरू हो जाती है।
अब यह खुफिया एजेंसियां ऐसे कानून बनवाने के चक्कर में हैं कि जिसको भी पकड़ कर बंद कर दें, उसको अदालतें न एजेंसियों के बयानों के आधार पर लम्बी-लम्बी सजाएं कर दीं। भारतीय विधि का मूल सिद्धांत है कि पुलिस के समक्ष दिए गए किसी भी बयान कि कोई उपयोगिता न्यायिक विचरण में नहीं है। क्योंकि पुलिस संगठन की विश्वसनीयता न कभी रही है न हो सकती है। हमारे आपके आम जीवन में पुलिस आये दिन जो करती है अगर उस पुलिस को यह अधिकार मिल जाए कि उसके समक्ष दिए गए बयान को न्यायालय मानने लगे तो इनके द्वारा गिरफ्तार किये गए प्रत्येक व्यक्ति की आत्म स्वीकृतियों के आधार पर हर निर्दोष को भी सजा करा देंगे। कई बार देखने में आया है कि लाश किसी की और किसी के नाम पर लोगों को आजीवन कारावास की सजा हो गयी और जिस व्यक्ति की हत्या के आरोप में लोगों को आजीवन कारावास हुआ वह मृतक व्यक्ति बाद में जिन्दा निकला।
very well researched and thought provoking.
ReplyDeleteसच कहा है।
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