अन्ना के मात्र ११ दिनों के अनशन ने जहाँ पुरे
देश की जनता को प्रभावित किया वहीँ भारतीय संसद भी इसके दबाव में आगई. जबकि मणिपुर की
एक महिला इरोम शर्मिला चाणु का ११ वर्षों का अनशन (भूख हड़ताल) पर है पर भारतीय जनमानस और
यहाँ की संसद तक इसकी आवाज नहीं पहुंची. इरोम ११ सालों से अनशन पर हैं.
अमानवीय, अप्रजातांत्रिक कला कानून आर्म्ड फोर्सेज
स्पेशल पवार एक्ट (AFSPA) 53 साल पूरा कर चूका है, और आज भी अस्तित्व में है. जबकि भारत को एक गणतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और सम्प्रभु राष्ट्र हुए 61
साल हो चुके हैं. 11 Sep. 1958 महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद या कानून अस्तित्व में आया, तब से लेकर अब तक यह कानून शांत जनसंचार समुदाय की उदासीनता झेल रहा है और यही
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सच्चाई है. २०वीं सदी के इतिहास में निश्चय ही यह
एक दुखद दिन था और यह मानवीयता, लोकतंत्र के सिधान्तों और यहाँ की जनता पर एक
आघात था.
तब से लेकर अब तक यह कानून बिना किसी न्यायिक
पुनर्विलोकन के यह कानून उतर-पूर्व के राज्यों में लागु है. हमलोग को इस आफसपा को समझने का वक्त आ गया है, यह कानून 1942
में भारत छोड़ो आन्दोलन को कुचलने के लिए
अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा इस्तेमाल में लाया गया था. यह कानून 1958 में उतर-पूर्व के राज्यों में भारतीय गणतंत्र के नौवें साल में लगाया गया था और
यह दिन स्वाधीन भारत के लिए एक शर्मनाक दिन था. यह पूर्णरूप से राज्य समर्थित
आतंकवाद और नस्लभेदी कानून है. लोकतंत्र और सभ्य समाज में आफसपा की कोई जगह नहीं है. यह कानून निश्चय ही लोकतंत्र के महत्वपूर्ण संस्था
न्यायपालिका पर कुठाराघात है. भारत की सभी लोकतांत्रिक संस्था राष्ट्री सुरक्षा और
अपने शक्ति के अधिकार क्षेत्र के नाम पर इसे न्याययोचित बताती है और इस उत्पीडन की
सहभागी बनी बैठी है. कार्यपालिकीय सुरक्षातंत्र इस कानून की आड़ में हत्या, प्रताडना और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दे रहें हैं और उच्चतम
न्यायलय ने भी इसे उचित ठहराया वहीँ दूसरी तरफ इमेज और लाभ के नाम पर भारतीय
जनसंचार समुदाय (मिडिया) ने आम जनता को इस पूरी घटना से दूर रखा और आज भी आम
भारतीय इस संघर्ष पर चुप्पी साधे हुए हैं और इसकी उपेक्षा कर रहें हैं. इस पूरी
प्रक्रिया में उस प्रांत के लोग अन्याय और दुखद जिंदगी जी रहें हैं.
53 साल से लागु इस आफसपा कानून की अब अति हो चुकी है. आज हम एक
जुट हैं और हमारा पूरा समर्थन इरोम और वहाँ के लोगों के साथ है. अब समय अगया है की
इस कानून को समाप्त होना चाहिए. भारत सरकार को इस कानून को समाप्त करना चाहिए
जिससे इस प्रांत की समस्याएं जिसे सरकार ने ही खड़ी की है इसके समाधान के लिए
रास्ता खुल सके.
Save Democracy, Repeal AFSPA.
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