भारत के मानव विकास सूचकांक में पिछले आठ सालों
में 21 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है परन्तु औद्योगिक रूप से विकसित राज्य गुजरात
में कुपोषण की दर सबसे ज़्यादा है. गुजरात के बारे में कहा गया है कि प्रति व्यक्ति
आय ज़्यादा होने के बावजूद भूख और कुपोषण यहां सबसे अधिक है. उसमें भी अनुसूचित जाति
और जनजाति की महिलाएं सबसे ज़्यादा कुपोषण की शिकार हैं.
यह भारतीय योजना आयोग से जुड़े 'इंस्टीट्यूट ऑफ़ अप्लाइड मैनपावर
रिसर्च' की शुक्रवार को दिल्ली में जारी की गई मानव विकास रिपोर्ट
में सामने आई है. इस रिपोर्ट को योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने
जारी किया. इस मौक़े पर भारत के ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश भी मौजूद थे. इस रिपोर्ट
में साल 1999-2000 से 2007-2008 के बीच आए परिवर्तन को शामिल किया गया है.
उपभोग व्यय, शिक्षा और स्वास्थ्य संकेतकों के आधार पर तैयार की गई मानव विकास
रिपोर्ट 2011 में केरल को पहले स्थान पर रखा गया है जबकि दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, गोवा और पंजाब उसके बाद आने वाले राज्य
हैं. इन राज्यों ने स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय के
आधार पर अच्छा प्रदर्शन किया है. छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड,
उत्तर प्रदेश, राजस्थान और असम जैसे उत्तरी और
पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है और ये राज्य मानव विकास के राष्ट्रीय
औसत से भी नीचे हैं. असम को छोड़कर बाक़ी के उत्तर-पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन काफ़ी
अच्छा रहा है.
भारत के इस दूसरे मानव विकास रिपोर्ट को जारी करते
हुए आईएएमआर के डायरेक्टर जनरल संतोष महरोत्रा ने कहा कि एचडीआई में हुई इस बढ़ोतरी
की सबसे बड़ी वजह शिक्षा सूचकांक में हुई 28.5 फ़ीसदी की वृद्धि है. हालांकि स्वास्थ्य
क्षेत्र में अपेक्षित सुधार न हो पाना मानव विकास सूचकांक के मार्ग में एक बड़ी बाधा
रही. बच्चों को मिलने वाले भोजन और पोषण को लेकर रिपोर्ट में गंभीर चिंता व्यक्त की
गई है. बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए सरकार ने एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम चला
रखा है लेकिन इसके नतीजे उतने सकारात्मक नहीं दिखते. रिपोर्ट में आईएसडीएस को नया रूप
देने की सिफारिश की गई है.
मानव विकास रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक विकास
के साथ बढ़ते प्रति व्यक्ति आय की वजह से पिछले दशक में उपभोग व्यय में बढ़ोतरी हुई
है जिसका सीधा असर ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वालों के औसत में कमी के रूप में सामने
आया है. हालांकि संख्या के आधार पर ग़रीबी रेखा के नीचे रहनेवाले लोगों की तादाद बढ़ी
है क्योंकि इस दौरान जनसंख्या में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है. पिछले तीन दशकों में भारत
की आबादी लगभग दोगुनी हो गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि अनुसूचित जाति के लोगों
की औसत ग़रीबी राष्ट्रीय औसत से भी कम हो गई है जबकि अनुसूचित जनजाति की ग़रीबी कम
होने की रफ़्तार धीमी है.
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