सवर्ण जातियों के जो लोग इनकम टैक्स नहीं देते उन्हें ओ बी सी जातियों के बराबर
माना जाना चाहिए और उन्हें भी वही सुविधा मिलनी चाहिए जो पिछड़ी जाति के लोगों के लिए
उपलब्ध है आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के
लिए बनाए गए कमीशन ने अपने सुझाव में कहा है कि इन वर्गों को शिक्षा आवासस्वास्थ्य
और सामाजिक क्षेत्रोंमें वही सुविधाएं मिलनी चाहिए जो ओ बी सी को मिलती है हालांकि
इस कमीशन की सिफारिशों में नौकारियों में आरक्षण की बात नहीं कही गयी है लेकिन इसे
सवर्ण आरक्षण के लिए कोशिश कर रही राजनीतिक पार्टियों के हाथ में एक महत्वपूर्ण हथियार
के तौर पर देखा जा रहा है
करीब चार साल पहले केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए
मानदंड तय करने के लिये एक आयोग का गठन किया थाइसे यह भी पता करना था कि इन वर्गों
का कल्याण कैसे किया जाए एजेंडा में यह भी
था कि क्या इन वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षण करना चाहिए कि नहीं इस आयोग की रिपोर्ट तैयार हो गयी है इसमें लिखा है कि करीब ६ करोड़ सवर्ण ऐसे हैं जिनको
ओ बी सी के बराबर माना जाना चाहिए कहा गया
है कि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों में सभी धर्मों के लोग शामिल किये जाने चाहिए सरकारी
नौकरियों में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को शामिल किये जाने की वकालत बहुत सारी पार्टियां
करती रही हैं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री
तो हर मंच पर यह बात कहती रही हैं इस रिपोर्ट के बाद उनका काम आसान हो जाएगा कांग्रेस
और बीजेपी वाले ओ बी सी में अति पिछड़े वर्ग के नाम पर आरक्षण की मांग पहले से ही कर
रहे हैं उनकी कोशिश है कि पिछड़ों के लिए उपलब्ध २७ प्रतिशत के आरक्षण में से मुलायम
सिंह यादव की पार्टी के मुख्य समर्थक यादवों को केवल ५ प्रतिशत ही आरक्षण दिया जाए
आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के आरक्षण के
लिए भी राजनीतिक ज़मीन तैयार हो जाने के बाद बीजेपी वाले समाजवादी पार्टी को कमज़ोर
करने की अपनी कोशिश तेज़ कर देगें अभी कुछ
दिन पहले ही केंद्र सरकार के योजना आयोग ने पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों के नाम पर
कोटा के अंदर कोटा की बहस शुरू की थी अब आर्थिक
रूप से पिछड़े सवर्णों की बात को भी नौकरियों के रिज़र्वेशन की बहस में झोंक कर उत्तर
प्रदेश की सबसे मज़बूत विपक्षी पार्टी पर ज़बरदस्त राजनीतिक हमला हो सकता है
आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के कमीशन की रपोर्ट में यह तो लिखा है कि इन वर्गों
के सवर्णों को सामाजिक रूप से तो वह अपमान नहीं झेलना पड़ता जो दलित जातियों के लोगों
को झेलना पड़ता है इस कमीशन ने देश के २८ राज्यों का दौरा करके अपनी रिपोर्ट तैयार
की है और कहा है कि एक करोड़ परिवार इस श्रेणी में आते हैं अगर प्रति परिवार छः लोगों की संख्या मान ली जाए
तो यह आबादी छः करोड़ के आस पास पंहुच जाती है अगर सरकार इन सिफारिशों को स्वीकार कर
लेती है तो देश के राजनीतिक माहौल में कुछ उसी तरह का परिवर्तन आ जाएगा जैसा मंडल कमीशन
के सुझावों को मान लेने के बाद १९९० में आ गया था.
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