Wednesday, November 16, 2011

मुसलमान विकास से दूर क्यों?



Rafiq Chauhan
मुसलमान विकास से दूर क्यों ? आज यह प्रश्न केवल मुस्लिम बुद्धिजीवियों में ही नहीं अपितु गैर मुस्लिम बुद्धिजीवियों में भी कौतुहल का विषय बना हुआ है। इसके कारण आम मुस्लिम देश की मुख्यधारा से कटता और ठगा सा महसूस कर रहा है। जिसके प्रमाण देश और समाज के लिए आने वाले समय में घातक सिद्ध हो सकते है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि देश के विभाजन के बादमुसलमानों का राजनीतिक और आर्थिक सोबा छिनभिन हो जाने के बाद उनको सम्भलने वाला कोई नहीं रहा। देश की मौजुदा राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों को मात्र वोट बैंक के रुप में प्रयोग कर के बाद इस तरह बेसहारा छोड़ती रही। जिस प्रकार आदमी आम चुसकर बाद में गुठली को फैंक देता है। ऐसे में जहां भी उनको कुछ सहारा और आसरा मिला उसी को उसने अपना आशियाना समझ लिया। लेकिन वो भी बाद में बे-वफा साबित हुआ।
रही सही कसर कुछ ऐसे मुस्लिम राजनेताओं ने पुरी कर दी। जो आज तक मुसलमानों के नाम पर मलाई तो खाने में लगे हुए। जबकि वास्तविकता से वो और उनकी पार्टियां भली भांति परिचत हैं। ऐसे में उन्होंने कभी भी मौजुदा और तत्कालिन सरकारों से मुसलमानों की बेहतरी के लिए योजना बनाने पर जोर नहीं दिया। वो केवल ना चाहकर आजतक उर्दू को देश में उसका वास्तविक स्थान दिलाने की लड़ाई तो दिखावे तौर पर संसद और विधानसभाओं में लड़ते रहे। ताकि मुसलमानों को बेवकूफ बनाया रखा जाए। इस उद्देश्य वे कितने सफल हुए वो और खुद मुस्लिम अच्छी तरह से जानते हैं। आखिर दिल को बहलाना, गालिब ख्याल अच्छा है
दूसरी ओर हमारे दीनी रहनुमाओं ने अवश्य उर्दू को बचाए रखने के लिए अपनी जद्दोजहद जारी रखी। लेकिन उन्होंने राजनीतिक को जिन्दगी का एक अनावश्यक सोबा समझ कर आम मुस्लिम को उससे दूर कर दिया। जिसके कारण देश का मुस्लिम समुदाय देश की मुख्यधारा से दिन पर दिन दूर होता चला गया। वह केवल मस्जिद और मदरसों में उलझकर रह गया। दीनी रहनुमाओं की इन कौशिशओं ने मुस्लिम समाज को केवल समाजिक जीवन और कुरआन--पाक तक की शिक्षा तक ही सीमित कर दिया। परिणाम स्वरुप आम मुस्लिम दीनी तालीम तो कुछ हद तक हासिल करने में कामयाब हो गया । लेकिन जिन्दगी के अन्य सोबों में पिछड़ गया और देश के विकास की मुख्यधारा से कट गया और यही कारण है कि आज मुस्लिम युवक रोजगार की तलाश करते-करते ऐसे दलदल में फंसता जा रहा है। जिसका आखरी मुकाम देश की जेलें बनती जा रही हैं। लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है यदि मुस्लिम समुदाय आज भी शिक्षा, संगठन और संघर्ष के सुत्र को अपना ले, तो दिन दूर नहीं होगा, जब वह अपनी साख, इज्जत और रुतबा फिर से हासिल करने में कायाब न हो। 
मो. रफीक चौहान

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