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दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के
धर्म निरपेक्ष होने के दावे उस समय खोखले दिखाई पड़ते हैं जब मुसलमानों की देश
भक्ति को शक की निगाहों से देखा जाता है। देश में जब भी आतंकवादी धमाके होते हैं
तो मुसलमानों को शक की निगाहों से देखा जाता है। इस मामले में मुसलमानों को लपेटने
में मीडिया की अहम भूमिका होती है। क्योंकि मामले को इतना लपेटकर पेश किया जाता है
कि मुस्लिम चेहरों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। आप के सामने लोकतंत्र का
चैथा स्तम्भ माना जाने वाले मीडिया की कुछ तस्वीर पेश करते हैं-
7 सितम्बर 2011 को दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट को
इस तरह से पेश किया किया जैसे कि सिर्फ एक समुदाय विशेष को टारगेट किया जा रहा है।
धमाके के जाँच में जुटी जाँच एजेंसियों को कोई सबूत मिले बगैर ही हमलावरों का
स्कैच जारी कर दिया गया। मुस्लिम नामों वाले संगठनों का हौव्वा खड़ा किया गया।
जाँच के नाम पर मुसलमानों को परेशान किया गया। इस आतंकवादी घटना को अंजाम देने की
जिम्मेदारी वाला ई मेल आतंकवादी संगठन हूजी की तरफ से आया, ऐसा बताया गया। बाद में पता
चला कि यह ई मेल जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ से आया था। दिल्ली बम ब्लास्ट के आरोप
में दो मुस्लिम छात्रों को गिरफ्तार किया गया। ई मेल की वास्तविकता को जाँचे वगैर
पुलिस और मीडिया द्वारा इस ब्लास्ट का संबंध हूजी से जोड़ दिया गया। लेकिन कई
सवालों को दबा दिया गया। मसलन यह कि विस्फोट हूजी ने अंजाम दिया तो उसने अपना नाम
ग़लत क्यों लिखा। क्या इसके सदस्य इतने कायर हैं कि अपने संगठन का नाम नहीं लिख
सकते। इससे पहले कई और धमाकों को लेकर भी हूजी पर आरोप लगते रहे हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट मामले में दूसरा ईमेल गुजरात
के अहमदाबाद से आया बताया गया। इसमें मनु नाम के एक हिन्दू युवक का नाम सामने आया।
ख़बरों के अनुसार अमरीकी जाँच एजेंसी एफ.बी.आई ने इस मामले में सईद-अल-हवरी का नाम
चुना। इसमें बताया गया कि गुजरात के कई शहर आतंकवादियों के निशाने पर हैं। इस युवक
के बारे में न तो किसी मीडियाकर्मी ने मामले को उठाया और न ही प्रशासन ने।
कल्पना कीजिए कि मनु या शनि शुक्ला के अलावा
अगर कोई मुसलमान होता तो मीडिया का रवैया कैसा होता, इस ख़़बर को कई नज़रों से देखा जाता। किश्तवाड़ में पकड़े गए
दो नौजवान जो मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जिनकी उम्र 18 साल से कम है उन
पर आरोप लगाए गए कि इंटरनेट के माध्यम से धमकी भरा ईमेल भेजा। लेकिन ख़बरों में
उनके नाबालिग होने का जिक्र नहीं किया गया। अंग्रेजी के एक बड़े अखबार ने 15
सितम्बर के प्रकाशन में कश्मीर और पश्चिम से इंडियन मुजाहिदीन और हूजी ईमेल के
हवाले से गिरफ़्तारी की ख़बर प्रकाशित की। दोनों ख़बरों में शनि शुक्ला वाली खबर
इस तरह है कि मजाक में ईमेल भेजने के सिलसिले में युवक को गिरफ्तार किए जाने की
खबर दी गई थी।
तीसरा ईमेल जिसके बारे में कहा जाता है कि
इंडियन मुजाहिदीन ने भेजा है जो छोटू मिनानी (chotoominani5@gmail.com) के नाम से भेजा गया है। इसके बारे में
जाँच इस नतीजे पर पहुँची है कि इसे पश्चिमी बंगाल और झारखंड की सीमा पर स्थित
पाकोड़ नामक स्थान से भेजा गया था। कोलकाता पुलिस ने शनि शुक्ला को इस मामले में
गिरफ्तार किया जिसकी उम्र 14 साल है। अखबारों में उसके नाबालिग होने की खबर को
महत्व दिया गया।
उल्लेखनीय है कि इंडियन मुजाहिदीन के नाम से
भेजे गए उक्त ईमेल का सन्देश पिछले सभी ईमेल संदेशों से भिन्न था। इस मेल में कहा
गया था कि दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट हमने किया था न कि हूजी और न ही अन्य किसी ने।
इस ईमेल में साफ लिखा गया था कि हमने जानबूझकर बुधवार का दिन चुना क्योंकि इसी दिन
कोर्ट में जनहित याचिकाओं की सुनवाई होती है, जिसकी वजह से कोर्ट में अधिक भीड़ होती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट के जाँच के मामले में
नया मोड़ उस समय आया जब चश्मदीद गवाह ने यह खुलासा किया कि बम एक कोरियर पैकेट में
सफेद कपड़े में लपेट कर रखा गया था। फिलहाल सरकारी अधिकारी इस मामले में चुप्पी
साधे हुए हैं। पुलिस और मीडिया ने मुसलमानों की छवि को खराब निश्चित रूप से किया
है जिसकी वजह से एक टोपी और दाढ़ी वाले आदमी को शक भरी नजरों से देखा जाता है।
हालाँकि आतंकवादी हमले को हम किसी भी रूप में
स्वीकार नहीं कर सकते। आतंकवाद का न कोई चेहरा, न कोई मजहब होता है। इसे रोकने के लिए जायज कदम उठाने चाहिए।
आतंकवाद की आड़ में किसी विशेष वर्ग को टारगेट बनाने के बजाए लोगों को आपस में
जोड़ने की बात करनी चाहिए। जिससे कि लोगों में भाई-चारा व प्रेम बना रहे और मुल्क
में शांति कायम रहे।
मो.09540147251
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