Saturday, July 28, 2012

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का पहला बयान (28-07-12)



दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ जंग चौथी आलमी जंग है। प्रणब दा एक दूर अंदेश, सियासी ज़हन रखने वाले सदरे जम्हूरिया हिंद हैं। ओबामा ने भी अमेरीका के सदर बनने के बाद यही कहा था। अपने वज़ीरे आज़म के साथ बहुत से ग़ैर मुल्की दौरों पर गया और यही सुनता रहा, ये दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ जंग किस के ख़िलाफ़ है और इसकी बुनियादी वजह क्या हैक्यों 9/11 के बाद से इसकी शुरूआत हुई? क्यों आलमी सतह पर मुसलमान और मुस्लिम देश इसके निशाने बने? क्यों सद्दाम हुसैन, कर्नल कज़्ज़ाफ़ी को हमने खो दिया। हुस्नी मुबारक का तख़्ता पलट हुआ, म्यांमार (बर्मा) और आसाम में मुसलमानों का क़त्ले आम जारी है? क्यों गुजरात हुआ और इसके बाद हमें दहशतगर्द बता कर जेलों में ठूंसा जाने लगा, हम मुत्तहिद नहीं हो सकते, हो सकते तो इतने फ़िरक़े ना होते, क़ौमों का उरूज या ज़वाल एक दिन में नहीं होता, सैंकड़ों बरस लगते हैं, आज हम आलमी सतह पर इसी तबाही के अमल में हैं, मगर कुछ सोचने या करने की फ़ुर्सत नहीं है, आप जिन मुस्लिम सियासतदानों की तरफ़ देख रहे हो वो ख़तरे में नहीं हैं, इनका मुत्तहिद होने में नुक़्सान है, सब अलग अलग पार्टी में होंगे तो जब जिस की हुकूमत होगी उसे मौक़ा मिल जाएगा, एक साथ होंगे तो ये मुम्किन नहीं होगा, और आपको हर रोज़ की मुसीबतें चैन नहीं लेने देतीं, सीने में दर्द बहुत है पर कुछ करने का रास्ता नहीं, इस्लामी फ़लसफ़े ने दिन में पाँच बार मस्जिद में जमा होने और हालाते हाज़रा पर गुफ़्तगु की आदत डाली, मगर हमने इससे फ़ायदा उठाने का तरीक़ा नहीं सीखा, जिस दिन एक शहर के तमाम मस्जिदों के नमाज़ी एक साथ एक जगह इकट्ठा हो कर हालाते हाज़रा पर बात करने लगे एक इन्क़लाब आ जाएगा, आप समझते क्यों नहीं, मैं लगातार कुछ कहने की कोशिश कर रहा हूँ, जानता हूँ एक दिन ख़ामोश कर दिया जाऊंगा, काश! इसके पहले मेरी आवाज़ आपके दिलो दिमाग़ तक पहुंच जाय, साल में दो बार ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए सारे शहर के नमाज़ी ईदगाह में आते ही हैं, दरमियान में ज़रूरत के वक़्त जमा होकर बात करने में क्या परेशानी है, आप दुनिया में वाहिद क़ौम हो जिसे प्लेटफार्म दे कर भेजा गया है..............माफ़ कीजिए लिख नहीं पा रहा हूँ, शायद कल इससे आगे लिख सकूं................ 

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