आज दुनिया जिस तेज़ी से विकास के पैमाने तय कर रही है, उसी तेज़ी से इंसान का चरित्र गिरता जा रहा
है। आज के युग में जहां पैसा ही भगवान नज़र आ रहा है, उसे
देखकर दुनिया का भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है। आधुनिकता के इस युग में यूँ तो हर
एक धन बटोरने की होड़ के चलते दूसरों का शोषण करने में प्रयासरत हैं, लेकिन आज के युग में भी सबसे अधिक शोषण का शिकार हमेशा से शोषित होती आयी
नारी ही है। कहीं उन्हें सरेआम फैशन की दौड़ में लूटा जाता है तो कहीं देह व्यापार
की अंधी गली में धकेल दिया जाता है। हद तो तब होती है, जब
उनके अपने माता-पिता, चाचा-मामा, भाई
जैसे सगे-संबंधी ही रिश्तों की मर्यादा को तार-तार करते हुए महिलाओं को इस दलदल
में फंसने पर मजबूर कर देते हैं। पूरे-पूरे खानदान और गांव के गांव देह व्यापार के
धंधे में शामिल हो जाते हैं।
मानवाधिकार संगठन तो हमेंशा से ही आवाज़ उठाते आए हैं कि
भारत के कई जातिसमूह देह व्यापार को खानदानी पेशा बना कर परिवार की महिलाओं का
शोषण करते है, लेकिन धृतराष्ट्र रूपी
सरकारें ऐसे सुनियोजित और घृणित व्यापार के सामने आंखे बंद करके बैठी रहती है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ो के मुताबिक देश में देह व्यापार से जुडी
महिलाओं की संख्या 30 लाख के आस-पास है, अकेले मुंबई में एक
लाख से अधिक महिलाएँ इससे जुडी हुई हैं। वहीँ ह्युमन राइट्स वाच के मुताबिक देश
में देह व्यापार से जुडी महिलाओं की संख्या 2 करोड़ के आस-पास है. यहाँ ध्यान देने
वाली बात यह है कि इस संख्या का 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा पारिवारिक देह व्यापार की
देन है। आज बेडिया, नट, सांसी और
बांछड़ा समाज जैसी कई जनजातियों के उदहारण सबके सामने हैं। इन जाती समूहों में
पैदा हुई लड़कियों को पारिवारिक देह व्यापार की अंधी गली में उम्र भर के लिए धकेल
दिया जाता है जहाँ वह बिना विवाह किए परिवार का भरण-पोषण का ज़िम्मा संभालती हैं।
हालाँकि सरकार की ओर से वर्ष 2003 में बांछड़ा, बेडिया व सांसी समाज के उत्थान के लिए
स्वैच्छिक संस्थाओं के माध्यम से बाल आश्रम एवं महिलाओं के लिए आर्थिक एवं
स्वास्थ्य सम्बन्धी गतिविधिओं के लिए जबाली योजना प्रारंभ की गई थी। लेकिन इस तरह
की योजनाओं के यथार्थ से दूर केवल कागज़ों पर ही चलाए जाने के कारण ना तो महिलाओं
को देह व्यापार से मुक्ति मिली और ना ही सरकार को एड्स जैसी खतरनाक बीमारियों से
जूझती इन जातियों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही कोई सफलता हाथ लगी। जबकि इस
योजना के अंतर्गत जनशिक्षण संस्थान को लाखो रूपये मुहय्या कराए गए।
देह शोषण के इस धंधे का एक खतरनाक पहलु यह भी है कि अक्सर
महिलाओं को जल्द से जल्द इस धंधे में झौंकने के चक्कर में अक्सर कम उम्र की
लडकियों को "आक्सीटासिन" जैसी दवाइयों के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। जिससे
उनके शरीर के हार्मोन बिगड़ जाते हैं और वह 11-12 साल की उम्र में ही देह व्यापार
में उतार दी जाती हैं। "आक्सीटासिन" वह इंजेक्शन है जो भैंसो को अधिक
तथा जल्दी दूध देने के लिए और सब्जियों एवं मूर्गियों को जल्दी खाने लायक बड़ा बनाने
के लिए लगाए जाते हैं। शरीर के हार्मोन बिगड़ जाने के कारण यह इंजेक्शन अक्सर कैंसर
जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं। आक्सीटासिन के प्रयोग से होरमोंस में
गड़बड़ी करके लड़कियों की भावनाओं के साथ खतरनाक तरीके से खिलवाड़ किया जाता है, इसके कारण लड़कियों में कई प्रकार के
हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जैसे महावारी का जल्दी आना, इसके
अलावा इसमें मुख्यत: प्यार, विश्वास तथा कामोत्तेजना के स्तर
का बढ़ना जैसे भावनात्मक परिवर्तन शामिल हैं।
राजस्थान के अलवर जिले जैसी कई जगहों पर आक्सीटासिन
इंजेक्शन को कोड नेम "गोली नंबर 10" के नाम से चुपचाप बेचा जाता है। जो
कि शहर की सभी दवाइयों की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध है, जबकि उस क्षेत्र में पशुओं की संख्या बहुत
कम है और सब्जियों की खेती भी ना के बराबर होती है। सबसे अधिक हैरत की बात तो यह
है कि खुले आम ऐसे घृणित काम होते हैं और प्रशासन को इसकी खबर भी नहीं लगती है। या
फिर खबर ना लगने का नाटक किया जाता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि
भ्रष्टाचार में डूबा हुआ प्रशासन पैसे के लालच में सोया रहता है! हम सब के सामने
ऐसी घटनाएँ अंजाम दी जाती है लेकिन कहीं कोई आहट नहीं होती। अगर कोई विरोध का स्वर
उठता भी है तो नक्कार खाने में तूती की तरह उसकी आवाज़ दबा दी जाती है।
अक्सर कम उम्र की लड़कियों को अगवा करके ऐसी जगहों पर ले
जाया जाता है, जहाँ वह भरे-पूरे परिवार
के साथ रहती हैं। छोटी उम्र की बच्चियों के बड़े होने का इंतज़ार किया जाता है
जिससे कि उन्हें देह व्यापार में धकेला जा सके। कम उम्र से ही परिवार में पलने के
कारण किसी लड़की को यह पता ही नहीं होता कि वह कहीं से अगवा करके लाई गई थीं और वह
स्वयं को परिवार का ही हिस्सा समझती है। साथ ही साथ बचपन से ही उनके यह दिमाग में
डाला जाता है कि यह बुरा कर्म नहीं बल्कि उनका पारिवारिक कार्य है।
कुछ वर्षों पहले जब दिल्ली से अगवा 3 से 5 वर्ष की उम्र की
बच्चियों के सुराग तलाशते हुए पुलिस की एक टीम राजस्थान के अलवर ज़िले के दो गांवों
में पहुंची थी तो इन गांवो की गुमनाम अँधेरी गलियों का सच देखकर उनके होश उड़ गए
थे। लड़कियों की बरामदगी के साथ ही एक ऐसा हैवानगी का ऐसा घिनौना चेहरा भी सामने
आया था जिसे सुन कर हैवानियत भी कांप उठे। दोनों गांवों के अधिकतर लोग अपनी स्वयं
की बेटीयों के साथ-साथ अगवा करके दूर-दराज़ से लाई गई लड़कियों के द्वारा देह
व्यापार का अंतर्राज्जीय और अंतर्राष्ट्रीय कारोबार चला रहे थे। यह दो गाँव तो
पुरे व्यापार का एक छोटा सा मुखौटा भर है, अगर पूरी इमानदारी से छानबीन की जाए तो लाखों मासूम जिंगियों को बचाया जा
सकता है।
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