Monday, September 03, 2012

सात साल की सुप्रिया को महज 25 रूपये में बेच डाला एक मां ने…


संसद में लाखों करोड़ के कोयला घोटाले का शोर है. ट्विटर पर करीब 50 लाख करोड़ के थोरियम की चोरी के चर्चे हैं. और पश्चिम बंगाल में एक मां ने अपनी तीन बेटियों को मात्र 155 रुपये में बेच दिया. ये भारत का सच है. वो सच जिससे लाख चाहकर भी हम नज़र नहीं फेर सकते.
30 साल की पूर्णिमा हल्दर का पति शराबी है. शराबी पति ने 15 दिन पहले पूर्णिमा और तीन बेटियों को घर से निकाल दिया था, जिसके बाद से वो दर दर भटक रही थी. कई दिन की भूख जब तड़प बन गई तो इस मां की ममता मर गई और उसने बेटियां बेचकर भूख शांत की. बेटियां बेचने की बात पूर्णिमा ने कोलकाता के डायमंड हार्बर रेलवे स्टेशन पर खोमचे वालों को बताईं. खोमचे वालों ने यह जानकारी पुलिस को दी. फिलहाल पुलिस ने तीनों लड़कियों को बरामद और पूर्णिमा के पति को गिरफ्तार कर लिया है.

जिस देश में कोयला लाखों करोड़ का बिक रहा हो, वहां बेटियों की कीमत कितनी सस्ती है इसका अंदाजा आपको पूर्णिमा की बेटियों की कीमत सुनकर लग जायेगा. इस भूखी मां ने साढ़े तीन साल की अपनी छोटी बेटी रमा को 33 रूपये में, सात साल की सुप्रिया को महज 25 रूपये में सबसे बड़ी बेटी 9 साल की प्रिया को 100 रूपये में बेच दिया. यानि 3 बेटियों के बदले पूर्णिमा को 155 रूपये मिले.
हालांकि सरकारी महकमा ने महिला के तंगहाली के दावे को खारिज किया है. दक्षिणी 24 परगना के ज़िलाधिकारी ने कहा कि ‘हम यह जांचने की कोशिश कर रहे हैं कि इस घटना के लिए कौन से कारण ज़िम्मेदार हैं.’ बहरहाल, कोलकाता की ये घटना कोई नहीं है. इससे पूर्व भी इस तरह के कई घटना इस देश में घटित हो चुके हैं.
आज से ठीक एक महीना पूर्व झारखंड के मनोहरपुर में गरीबी से तंग आकर एक मां द्वारा अपने जुड़वा बच्चों को बेचने का मामाला प्रकाश में आया था. अगस्त महीने में ही राजस्थान के श्रीगंगानगर में आठ दिन के एक मासूम बच्चे को उसके मां-बाप ने इसलिए बेच दिया क्योंकि उनके पास अपने दूसरे बेटे के इलाज के लिए पैसे नहीं थे. जुलाई के महीने में बिहार के अररिया जिले के फारबिसगंज में सुशासन और विकास के दावे करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज में गरीबी से मजबूर एक मां ने अपने दूधमुंहे बच्चे को महज़ 62 रुपये में बेच दिया था. वहीं पिछले महीने बेंगलुरू में एक मां अपने अजन्में बच्चे को बेचने के लिए मजबूर थी. मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक शोभा नामक महिला बच्चे के लिए खरीददार खोज रही थी. क्योंकि शोभा के पास अपने बच्चे के पालन पोषण के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह ऐसे खरीददार की तलाश कर रही थी, जो उसके अजन्में बच्चे को सही पालन-पोषण दे सके.
ऐसे न जाने कितने मामले हर महीने मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आते हैं. और न जाने उससे कई गुना अधिक दब जाते हैं, जिन पर मीडिया या किसी की भी नज़र नहीं पड़ती.
आज़ादी के 65 वर्ष पूरे होने के बाद भी देश में एक लाख से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है. आज भी लगभग 30 प्रतिशत भारतीय निर्धनता की रेखा तले जीते हैं. लाखों को दो जून की रोटी भी नहीं मिल पा रही है. करोड़ों लोग रोज़गार की तलाश में भटक रहे हैं. आज भी स्कूल, चिकित्सा, मकान और अन्य बुनियादी सुविधाओं से करोड़ों लोग वंचित हैं.
आखि़र यह कैसी विडंबना है. लोकतंत्र का आधार मानव जीवन का मूल्य और व्यक्तियों के बीच समानता को माना जाता है, किन्तु हमारा सामाजिक जीवन और चिंतन आज भी सामंतवादी हैं. आज भी मनुष्य के जीवन की अलग-अलग कीमतें लगती हैं. कहीं एक बच्चे का प्रतिदिन का खर्च 500 रूपये है तो कहीं मात्र 25 रूपये में गरीब माएं अपने बच्चे को बेच डालती हैं.
यह जीवन के अलग रंग हो सकते हैं लेकिन सबसे बुनियादी सवाल यही है कि जब संसद में पौने दो लाख करोड़ रुपये के घोटाले की गूंज होती है. ट्विटर पर 50 लाख करोड़ के थोरियम घोटाले का शोर होता है तब देश का भविष्य चंद सिक्कों में बिक जाता है? आखिर ऐसा क्यों हैं? क्यों भारत में जीवन इतना सस्ता और घोटाले इतने महंगे हैं? सबसे बड़ा सवाल यह  है कि भूख और गरीबी की भट्टी में तप रहे लोगों के हिस्से का कोयला कहां हैं? आपके पास कोई जवाब हो तो जरूर दीजियेगा… मुझे तो यह संसद के शोर में दिख रहा है.

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