Saturday, October 20, 2012

एक ‘आतंकवादी’ का दावत-ए-वलीमा…



जिस उम्र में नौजवान जिंदगी की रंगीनियों से रू-ब-रू हो रहे होते हैं, उस उम्र में वो सलाखों के पीछे कैद अपने ख्वाबों को फ़ना होते देख रहा था. अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन उसने जेल की सलाखों के पीछे काट दिए. मैं आमिर की बात कर रहा हूं, वो आमिर नहीं जो आपके ज़ेहन में सितारा बनके बसता है, जो आपको हंसाता-गुदगुदाता है, बल्कि वो आमिर जिसकी दास्तान आपकी आंखों को नम कर देगी और जिसकी हकीक़त कई सख्त सवाल आपके ज़ेहन में छोड़ जाएगी.
आमिर 18 साल की उम्र में एक दिन मां के लिए दवा लाने घर से निकला और लौट कर नहीं आया. लौटकर आई तो उसके आतंकवादी होने की ख़बर…. भारत में जन्मा, पला-बढ़ा, खेला-कूदा आमिर चंद दिनों में ही पाकिस्तानी हो गया. आमिर पर बम धमाके करने, आतंकी साजिश रचने और देश के खिलाफ़ युद्ध करने जैसे संगीन आरोप लगे. 18 साल की उम्र में आमिर 19 मामले में उलझा हुआ था.
उसकी जिंदगी शुरू होने से पहले ही एक लंबी कानूनी जंग शुरू हो गई थी. 1998 में शुरु हुई यह जंग 2012 तक चली और अंततः फरवरी 2012 में कानून की देवी ने उसे बेगुनाह क़रार दिया. जेल में सिर्फ 14 साल ही नहीं बीते बल्कि आमिर के ख्वाब भी बीत गए. वो जब जेल से निकला तो उसके अब्बू का इंतकाल हो चुका था. मां ममता के बोझ में ही दब सी गई थी. सब कुछ फना होने के बाद भी अगर कुछ बाकी बचा था तो वो था देश की कानून व्यवस्था में भरोसा…
जेल में कटे 14 साल आमिर की जिंदगी का स्याह पहलू हैं. आज मैं उसकी जिंदगी के खूबसूरत पहलू की झलक आपको दिखाना चाहता हूं. आमिर ने बीते सप्ताह ही शादी की. मैं उसकी दावत-ए-वलीमा में शामिल हुआ. आमिर ने गुजारिश की थी कि मैं दावत में ज़रूर पहुंचूं और मैं वक्त से पहले ही अपने खास दोस्त व बड़े भाई अख़लाक़ अहमद के साथ पुरानी दिल्ली के आज़ाद मार्केट के हसीन महल पहुंच गया.
हम पहुंचे ही थे कि पुलिस की गाड़ी वहां आकर रूकी. जैसे ही पुलिसवालें बाहर निकले इंसानी हुकूक की लड़ाई लड़ने वाले एक सिपाही ने हंसते-हंसते पूछ लिया कि आप क्यों आए हो? पुलिस वाले ने भी हंसते हुए कहा कि बस ऐसे ही आमिर मियां की खैरियत जानने आए थे, पूछने आए थे कि उन्हें हमारी कोई ज़रूरत तो नहीं है.
धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी कई बड़े चेहरे नज़र आने लगे. ये तमाम बड़े लोग सिर्फ आमिर को ढूंढ रहे थे. कुछ देर बाद आमिर सेलीब्रेटी की तरह हसीन महल में दाखिल हुआ, मीडिया के कैमरों की फ्लैशें चमकने लगी. लोग आमिर को गले लगाने के लिए बेताब लोगों ने उसे घेर लिया.
भारत के इतिहास में किसी ‘आतंकवादी’ की दावत-ए-वलीमा का शायद ये पहला मौका था जब इतनी बड़ी तादाद में खास-व-आम लोग पहुंचे हों. बहुतों के नाम तो मैं भी नहीं जानता, हां बड़े-बड़े समारोहों में उन्हें देखा-सुना ज़रूर है.  जिनके नाम मुझे याद हैं उनमें प्रख्यात लेखिका अरूधंती राय, पूर्व कैबिनेट मंत्री रामविलास पासवान, राज्यसभा सांसद मो. अदीब, लोजपा के राष्ट्रीय सचिव अब्दुल खालिक, पत्रकार अज़ीज़ बरनी, सईद नक़वी (और भी कई पत्रकार), सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी, लेनिन रघूवंशी, मनीषा सेठी, इलाके के विधायक मिस्टर जैन  व ओखला के विधायक आसिफ मुहम्मद खान शामिल थे.
बड़े-बड़े लोग इस दावत की शान बड़ा हो रहे थे और आमिर इसके महताब थे. मसरूफियत के बीच आमिर ने हमारी मुलाकात पत्रकार इंद्रानी सेन गुप्ता से कराई. दावत में शामिल होकर इंद्रानी ने आमिर की खुशी बढ़ा दी थी. अपनी खुशी को चेहरे पर नुमाया करते हुए आमिर ने कहा, इन्होंने हमारी बहुत सी खबरें लिखी हैं. इन्हें पुलिस ने धमकिया भी दी लेकिन ये बेखौफ होकर सच लिखती रही. आमिर के मुंह से इंद्रानी की तारीफ सुनकर मुझे खुशी हुई क्योंकि आमतौर पर पुलिसिया जुल्म के सताए मुसलमान मेनस्ट्रीम मीडिया के पत्रकारों को ज्यादातर कोसते ही हैं.
आमिर की बेगुनाही की सबसे पहली ख़बर समाचार वेबसाईट twocircles.net पर आई थी जिसे रिपोर्टर मो. अली ने लिखा था. मो. अली अब ‘द हिंदू’ में काम कर रहे हैं. अली भी मेहमानों में शामिल थे. उनके चेहरे पर भी एक चमक थी. अली ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि उनकी रिपोर्ट के बाद उनके अन्य पत्रकारों को भी आमिर के बारे में पता चला और उसकी बेगुनाही पर खबरें मीडिया में आने लगीं.
आमिर जेल में था और अपनी सफाई में कुछ नहीं लिख सकता था. मीडिया ने बिना आमिर की बात सुने उसकी पहचान पाकिस्तानी के तौर पर पुख्ता कर दी थी. उसे आतंकी, देश का दुश्मन, बेगुनाहों का हत्यारा और न जाने क्या-क्या कहा गया.
हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि मीडिया द्वारा ही उसकी बेगुनाही के बारे में खुलकर लिखने के कारण उसका केस मज़बूत हुआ और आज वो जेल से बाहर है और अपने वलीमे की दावत दे रहा है.
दावत में हिन्दुस्तान एक्सप्रेस के सहाफी ए.एन शिबली भी थे. उन्होंने भी आमिर की बेगुनाही पर अपने अख़बार में खूब लिखा था और मुसलमानों की मिल्ली तंजीमों पर भी आमिर की मदद न करने पर सवाल खड़े किए थे. मीडिया में खिंचाई होने के बाद एक-दो मिल्ली तंजीमों ने आमिर की मदद भी की. अपनी लाज बचाने के लिए ही सही लेकिन मिल्ली तन्जीमों ने कम से कम आमिर की मदद तो की. लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी था कि जिन मिल्ली तंज़ीमों के लोगों ने कोई मदद नहीं की, अब उन्हीं मिल्ली तन्जीमों से जुड़े लोग आमिर की दावत-ए-वलीमा में शामिल होकर उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए उतावले थे.
लेनिन रघुवंशी भी इस दावत का हिस्सा थे. यह वही शख्स हैं जिन्होंने आमिर को ‘जन मित्र पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया था. उनकी संस्था ने आमिर को न सिर्फ पुरस्कार दिया बल्कि आर्थिक तौर पर भी उसकी मदद की. वो कहते हैं कि आमिर ने दोबारा मज़बूती से अपनी जिंदगी को शुरू किया है. तमाम मुश्किलों के बावजूद वो जिंदगी को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है और 14 साल जेल में काटने के बाद अब वो बेगुनाहों के हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए ज़हनी तौर पर पूरी तरह तैयार है. एपीसीआर के अखलाक़ साहब भी काफी खुश थे. इनकी संस्था ने भी आमिर की अच्छी-खासी आर्थिक मदद की थी.
दावत-ए-वलीमा में आमिर इंसानी हुकूक की लड़ाई लड़ने वाले बड़े नामों से घिरा था. वो अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करते हुए खुश था. उसे इस बात की भी खुशी थी कि इस मौके पर उसके मुहल्ले के वो लोग और वो रिश्तेदार भी साथ खड़े थे जिन्होंने कभी उनसे आंखे फेर ली थी. ये वही लोग थे जो कभी उसके परिजनों से बात तक नहीं करते थे. आमिर ने अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर दी है. उसकी ख्वाहिश देश व समाजहित में काम करने की है. देश की कानून व्यवस्था में उसे मज़बूत भरोसा है.
अपनी जिंदगी के 14 साल जेल में काटने के बाद, बेुनाही से जंग लड़ते हुए अपने पिता को खो देने के बाद, अपनी मां के मानसिक रूप से कमजोर हो जाने के बाद भी आमिर का इरादा मज़बूत है. वो दोबारा जिंदगी को जीना चाहता है. अंधेरी सुरंग से गुज़र कर आमिर की जिंदगी की गाड़ी दोबारा पटरी पर आ चुकी है. वो वक्त की रफ्तार के साथ आगे बढ़ने की ख्वाहिश रखता है.
लेकिन आमिर की जिंदगी का ये खूबसूरत पहलू उन स्याह सवालों का जवाब अब भी तलाश रहा है जिन्हें हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने पैदा किया है. आतंकवाद के नाम पर न जाने कितने बेगुनाह आमिर अपनी जिंदगी के बेशकीमती लम्हों को जेलों में जाया कर देते हैं. सालों तक जुल्म व सितम सहने के बाद जब वो जेलों से रिहा होते हैं तो हमारा समाज उन्हें स्वीकार नहीं पाता.
जब किसी नौजवान को आतंकी बनाकर पेश किया जाता है तो अख़बार अपनी काली स्याही से उसकी किस्मत लिख देते हैं. बड़े-बड़े लफ्जों में लिखा जाता है कि आतंकी गिरफ्तार हुआ. लेकिन जब वही नौजवान बेगुनाह साबित होकर जेल से बाहर आता है तो सिंगल कालम ख़बर भी उसके लिए नहीं लिखी जाती. यह हमारे देश की बिडंबना ही है कि जब राहुल गांधी पर झूठा मामला दर्ज होता है तो देश का मीडिया चिल्ला-चिल्लाकर झूठ की पोल खोलता है. जब कोर्ट उन्हें बेगुनाह करार देता है तो पूरा दिन ख़बर छाई रहती है. विशेष लेख लिखे जाते हैं. लेकिन जब एक बेगुनाह 14 साल जेल में काटने के बाद दोबारा जिंदगी शुरु करने की कोशिश करता है तब कानून में दोबारा उसका विश्वास पैदा करने के लिए दो शब्द भी नहीं लिखे जाते.
वैसे क्या आप उन गुजरात, हैदराबाद, जयपुर और औरंगाबाद में रिहा हुए बेगुनाहों के नाम जानते हैं? क्या आपने कभी सोचा कि उन पर क्या बीती और क्यों बीती? अगर आपने नहीं सोचा तो अब सोचिए. बेगुनाहों के लिए अपनी आवाज़ मज़बूत कीजिए. अगर आप अब खामोश रहे तो कोई और आमिर कल के अख़बार में पाकिस्तानी आतंकवादी बन जाएगा.

2 comments:

  1. Afsos ke sath kushi bhi hai amir ki nai zindagi ki shruaat ki. Tahe Dil se mubaraqbad.Khushi is baat ki bhi hai kuchh log hain jo is muamle ko alag nazariye se dekhta hain aur is mutalliq koshoshson me masroof hain Subhaan Allah....Zarurat hai ham sab ko ek saath ek platefornm par aa kar is mutaallic kuchh karne ki lekin iske liye ek rehber ki zarurat hai, insha allah karwan badhta jayega...

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