राजस्थान
में सर्वाधिक ईसाइयों की संख्या दक्षिण राजस्थान में बांसवाड़ा जिले में है, जो कि आदिवासी और निहायती
पिछड़ा इलाका है. इसी तरह बारां जिले मे
बारां और शहाबाद तहसील की सहरिया जनजाति के हालात हैं. यहां के दलितों और
आदिवासियों ने अपना मूल धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया है. क्या कारण हो सकता
है कि ‘हर हर महादेव’ करने वाले ये आदिवासी चर्च के अनुयायी हो गये ?
कारण
सिर्फ एक था ‘ रोटी ‘ … ईसाई मिशनरीज ने इन इलाकों में डबल रोटी, बिस्किट, दवाईयां, कपड़े और मूलभूत आवश्यकताओं के सामान बांटे
(चाहे इनका उद्देश्य परोपकार ना होकर धर्मान्तरण रहा हो). जब सरकार ने (वन विभाग)
ने आदिवासियों के रोजी-रोटी (जंगल) छीन लिये तो इनकी भूखों मरने की नौबत आ गई थी.
यही हाल पूरे भारत में है, जहां मिजोरम सर्वाधिक ईसाई
प्रतिशत, केरल धर्मान्तरित ईसाई जनसख्यां. छत्तीसगढ, उड़ीसा,
झारखण्ड जहां भी दलित, आदिवासी या पिछड़े
हिन्दु हैं, अधिकतर ईसाई धर्म अपनाते जा रहे हैं.
पहला
कारण : लोकतांत्रिक राज्य ने दलितों को
बराबर माना. संविधान में समानता का अधिकार दिया. लेकिन हिन्दुत्व के ठेकेदारी करने
वालों ने दलितों को कभी इंसान ही नहीं समझा. उन्हें शूद्र समझकर केवल सेवक का
दर्जा दिया. सदियों से शोषित दलितों ने मुग़ल-काल में मुस्लिम धर्म अपना लिया तो
आधुनिक काल में ईसाई धर्म… कुछ जैन बन गये तो कुछ बौद्ध… बाबा साहेब के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद तो
दलितों ने हिन्दु धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार लिया.
दूसरा
कारण : क्योंकि धर्म की ठेकेदारी करने
वाले हिन्दुवादी नेताओं ने रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा स्वास्थ्य, विकास आदि मूलभूत आवश्यकतायें छोड़कर सत्ता पाने के लिये, आदिवासी, किसानो, मजदूरों और
दलितों को राम के नाम का मन्दिर का झुनझुना पकड़ाया जिससे कभी भूख नहीं मिटती.
जिस
सनातन हिन्दुत्व-वादी धर्म जिसकी संघी और मोदी समर्थक बात करते हैं वो धर्म के
ठेकेदार लोग जयपुर, नागपुर, दिल्ली, मुम्बई,
अहमदाबाद जैसे विकसित शहरों में बैठकर अपने शक्ति-प्रदर्शन (पंथ
संचलन) की तैयारी में लगे रहते हैं या फिर संस्कृति के ठेकेदार बजरंग दल वाले
‘वेलेन्टाइन डे’ पर युवा जोड़ों को खदेड़ने में या किसी सिनेमाघर पर तोड़-फोड़
करने में अपना शक्ति प्रदर्शन करते नज़र आते हैं या फिर सोशल मीडिया में धार्मिक वैमनस्य
का माहौल बना रहे हैं. जिसका परिणाम समाज में धार्मिक वैमनस्य और भय का माहौल बनने
में होती है.
आज
हिन्दु धर्म के ठेकेदारों ने क्या हालात बना रखे हैं देखिये – हिन्दु धर्म के
आधुनिक ठेकेदारो ने कभी पाखण्डी बाबाओं, धार्मिक अन्धविश्वास और गैर-ज़रुरी रुढिवादी
परम्पराओं का विरोध नहीं किया.
आज
हिन्दु धर्म में अनेक ऐसी परम्परायें हैं जो अप्रांसगिक हैं. जिनका वर्तमान में
कोई महत्व नहीं रह गया है. जो सिर्फ आर्थिक शोषण और व्यर्थ के कर्मकाण्डों से
जुड़ी हैं. आम जन-जीवन में उनका कोई उपयोग नहीं है. बस आस्था के नाम पर चल रही है
ताकि धर्म के ठेकेदारो के आर्थिक हितों पर चोट ना पहुंचे. शायद इसलिये ही इन्हें
खत्म करने के प्रयास नहीं किये जाते.
ये ही
धर्म के ठेकेदार सी-ग्रेड की फिल्म की नायिका लगने वाली ‘ मेक अप की दुकान ‘ भक्त
की गोद में बैठकर कृपा बरसाने वाली वाली ‘ राधे मां ‘ को महामण्डलेश्वर की उपाधि
दे देते हैं, विरोध
के बाद ही होश आता है. निर्मल सिंह नरुला जैसा ठग जो कभी झारखण्ड में ईंट भट्टा
चलाता था. दिल्ली मे आ कर समोसे की हरी चटनी और काले पर्स की ‘ किरपा ‘ वाला बाबा
बन के करोड़ों की सम्पत्ति बना लेता है. दिल्ली, हरियाणा में
जनता के पैसे से ज़मीने खरीद के भू-माफिया बन बैठता है. लेकिन धर्म के ठेकेदार
उसके खिलाफ़ चूं तक नहीं करते.
धार्मिक
वेश्यावृत्ति : भारत के कुछ क्षेत्रों
में महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है.
सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को
मजबूर हैं. देवदासी प्रथा के अंतर्गत ऊंची जाति की महिलाएं मंदिर में खुद को
समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं. देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती
थीं. इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक
संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है.
1982 में
कर्नाटक सरकार ने और 1988 में आंध्र प्रदेश सरकार ने देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध
लगा दिया था. लेकिन कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 15 जिलों में अब भी यह प्रथा
कायम है.
नित्यानंद
और भीमानन्द जैसे काम पिपासु पाखण्डी बाबा जो सेक्स रैकेट चलाते थे. महिला भक्तो
से कहते थे ” मैं कृष्ण तू राधा आओ शरीर से आध्यात्मिक आनन्द ले” कैमरे के सामने
पकड़े गये तब मामला खुला लेकिन इससे पहले किसी धर्म के ठेकेदार ने बवाल नही मचाया.
गंगा
बचाओ आन्दोलन की वजह से उत्तराखण्ड की 84 पन बिजली परियोजनायें बन्द हो चुकी
हैं. जिनमें से 25 तो 80% काम पूरा होने
के बाद बन्द हुई. कारण यही था हिन्दु धर्म के ठेकेदार साधु सन्यासी मैदानी इलाकों
में धरने और अनशन पर बैठे थे. उत्तराखण्ड में जाकर देखते तो पता चलता कि
पन-विद्युत परियोजना से भी कोई गंगा अपवित्र होती है क्या ?
गंगा
अपवित्र होती है मैदानों में. अकेला कानपुर शहर गंगा को 25% तक प्रदुषित कर देता
है. लेकिन ये ही लोग उन औद्योगिक उपक्रमों के दरवाज़ों पर जाकर धरने पर नहीं बैठते
जो गंगा को प्रदुषित करते हैं, क्यो ?
इससे भी
राजनीति जुड़ी है… पैसा जुड़ा है… आस्था के नाम पर बवाल मचाते हैं सिर्फ. धर्म को
राजनीति का अखाड़ा बना दिया है. आस्था के नाम पर गणेश विसर्जन हो या दुर्गा पूजा.
केमिकल से बनी मूर्तिया, गंगा के घाटों पर पॉलीथिन, कचरा, धार्मिक पू्जा पाठ सामग्री, मुर्दो की राख बहाकर खुद
कितना जल प्रदुषित करते हैं. उस पर कभी सवाल नहीं उठाते.
तिरुपति
मंदिर (1लाख करोड़ का स्वर्ण भंडार), राजा मार्तण्ड वर्मा का ख़जाना पद्मानाभ मन्दिर
(10लाख करोड़ स्वर्ण सम्पदा) महालक्ष्मी मंदिर, सिद्दी विनायक
मुबंई (50हजार करोड़ का ट्रस्ट) साई बाबा शिरड़ी (गुरु पुर्णिमा पर 401 करोड़ नक़द
चढावा एक दिन में कुल अनुमानित सपंदा 75 हजार करोड़), ये तो
सिर्फ चर्चित धन और धर्म के अड्डे हैं. हरिद्वार, मथुरा,
वाराणसी, वृंदावन सहित तमाम देश के धर्म के
अड्डो पर पड़ी अकूत सम्पदा मिला ले तो इतनी होती है कि बाबा रामदेव की आकंड़ों की
प्रयोगशाला से निकला 400 लाख करोड़ का कालाधन का आंकड़ा भी इसके सामने पानी मागें.
लेकिन
सदियों से आम आदमी से होती आई इस धार्मिक लूट पर कोई बात नहीं करेगा. आस्था से
जुड़ा मामला है. सवाल उठा दिये तो धर्म विरोधी हो जाओगे.
ये ऐसा
मसला है आस्था के नाम पर सारे गुनाह माफ हैं. तर्क भी ऐसा कि लोग अपनी इच्छा से
देते हैं कोई मांगने तो नहीं जाते. लेकिन सवाल ये है कि ऐसी परम्परायें बनाई ही
क्यों गई जो जनता से पैसा खींचकर धर्म के अड्डो पर जमा करने को प्रोत्साहित करती
रही है. आखिर आम आदमी के लिये इस सम्पदा का उपयोग क्या हो रहा है ?
हिन्दु
धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मो में देख लिजिये आम जन की सुविधाओं और जन-कल्याण पर
कितना पैसा खर्च किया जाता है. लेकिन हर बार अव्यवस्थाओं के चलते आये दिन किसी ना
किसी धर्म स्थल पर भीड़ में दबकर श्रद्धालुओं की विभत्स मौत होती है. अमरनाथ
यात्रा में 97 श्रद्दालु चिकित्सा सुविधा के अभाव मे मारे गये. चामुण्डा माता
(जोधपुर ) नन्दा देवी हिमाचल, मथुरा, देवधर, कानपुर, वाराणसी में हाल में हुई भगदड़, धार्मिक आयोजनों, कुंभ के मेले में अव्यवस्थाओं
चलते भगदड़ में लोगो की मौत होती है.
हिन्दु
धर्म के अड्डों के ठेकेदार खुद विश्लेषण करके देखे कि जितना पैसा जनता देती है
उतनी सुविधायें क्या आम जनता को मिल पाती है?
हकीक़त
ये है कि ये धन सिर्फ ट्रस्टों को अरबपति बनाने के काम आता है और इससे की जाती है
राजनीति… धर्म के नाम पर गन्दी राजनीति जिसका आम आदमी के लिये कोई उपयोग नहीं है.
हिन्दु
धर्म के ठेकेदार करते रहे हैं अपने घर में बैठकर धर्म के नाम पर राजनीति… कोसते
रहे हैं पानी पी पी कर धर्म निरपेक्षता को. अन्य धर्म के लोगो और उनके प्रचारको
को. आग उगलते रहे विधर्मियों पर उनके धर्म ग्रन्थो और प्रचारकों की हर एक बात पर.
लेकिन कभी खुद ने आइना नहीं देखा.
ज़मीनी
हकीक़त और कडवी सच्चाई ये है कि जब भी दंगे होते हैं मरता आम आदमी है. ना कोई नेता
मरता है ना उसका चमचा. इज्जत भी आम आदमी की लुटती है. घर भी उसी का जलता है.
आज हिन्दु
धर्म में इतनी कुरीतिया घुस गई हैं कि एक और धार्मिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है.
लेकिन धर्म में जब राजनीति घुस जाती है तो सुधार की सारी संभावनायें शून्य हो जाती
हैं. आज हिन्दू धर्म को आम जनजीवन और उपयोगिता से जोड़ना आवश्यक है. केवल आस्था के
नाम पर ज्यादा समय तक धर्म का अस्तित्व बचाया नहीं जा सकता.
मानव के
लिये धर्म उपयोगी क्यों है उसके रोजमर्रा के जीवन में. मूलभूत आवश्यकता में धर्म
किस उपयोग में आता है. कितनी सहायता देता है ये सब बातें, सोचनी चाहिये. कहा गया है
” भूखे पेट ना भजन हुई गोपाला”
आज
हिन्दु सनातन धर्म का मूल अर्थ खो गया लगता है. ‘ वसुधैव कुटुम्बकम ‘ और ‘सर्वे
भवन्तु सुखिन’ जैसे सिद्धान्त, जिसमें सार्वभौम भ्रातृत्व के साथ सार्वभौम कल्याण की कामना की गयी है.
सर्वकल्याण की भावना अब राजनीति की भेंट चढ़ती जा रही है.
आज सिर्फ
हिन्दु धर्म उपयोग हो रहा है. राजनीति में सत्ता पाने के लिये. युवाओं को अतिवादि
मतांध बना दिया गया है. खिला दी गई है धर्म की अफीम. कारण भी खोजने प्रयास नहीं
किये जा रहे कि क्यों अपने ही धर्म से हिन्दुओं को विरक्ती होती जा रही है.
भगत सिंह
ने आज से दशकों पहले ही कह दिया था – जो धर्म इन्सान को इन्सान से जुदा करे, मुहब्बत की जगह एक दूसरे
से घृणा करना सिखलाये, अन्धविश्वासों को प्रोत्साहन देकर
लोगों के बौद्धिक विकास बाधक हो, दिमागों को कुन्द करे,
वह कभी भी मेरा धर्म नहीं हो सकता ( भगत सिंह के लेख मैं नास्तिक
क्यो हूं का एक अंश)
हिन्दु
धर्म से अब पाखण्ड और अन्धविश्वास और धार्मिक लूट को बस में कर लेना चाहिये और
धर्म को आम जनजीवन और मूलभूत आवश्यकओं से जोड़ना चाहिये. नहीं तो हिन्दु धर्म
सिर्फ सोशल मीडिया, फेसबुक पर ही बचा रहेगा
रक्षा करने को … जैसे आजकल गौमाता फेसबुक पर बचाई जा रही है.
योगेश गर्ग
स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.
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