थाना फुगाना, गांव लाख। सात सितंबर की शाम को जाट पंचायत खत्म होने के बाद वे अपने घरों को लौट आये थे। उनके लौटने के साथ ही गांव में शोर शराबा और हलचल बढ़ गई थी। गांव के मंदिर से ऐलान किया गया कि सभी हिन्दू मंदिर में इकट्ठा हो जाएं। इस ऐलान के बाद जो जहां था, उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी। हथियारबंदी के साथ साथ मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी बुलंद होने लगी। मोहम्मद मुकीम इसी लाख गांव के निवासी थे। नारेबाजी सुनकर वे गांव के प्रधान बिल्लू जाट के पास पहुंचे। उन्होंने बिल्लू जाट से अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई। बिल्लू जाट ने उनसे कहा कि सारे मुसलमान गांव छोड़ दें। महिलाएं और बच्चों को रहने दें, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।
लेकिन बिल्लू जाट का यह आश्वासन बहुत आश्वस्त करनेवाला नहीं था। बिल्लू जाट के घर पर ही तैयारियां हो रही थीं। शीशियों में केरोसिन और तेजाब भरे जा रहे थे। 7 सितंबर की सारी रात शायद तैयारियों में ही बीत गई और आखिरकार 8 सितंबर की सुबह कहर टूट पड़ा। सुबह नौ बजे से मुसलमानों को खोजकर खत्म करने की जो मुहिम शुरू हुई तो मुकीम चार दिनों तक गन्ने के खेत में छिपे रहे। बीवी और बच्चे पीछे छूट गये थे। उन्हें नहीं मालूम कि इन चार दिनों में उनके साथ क्या हुआ। जब मालूम चला तो वे जीते जी मर गये। इन्हीं चार दिनों के दरम्यान उनकी 12 साल की बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उसे तेजाब से जलाकर मार दिया गया। अब एक राहत शिविर में पत्नी के साथ पनाह लिए मुकीम बताते हैं आखिरी बार उन्होंने अपनी बेटी को आठ गुण्डों से घिरा देखा था। चार दिन बाद जब वे बाहर निकले तो उन्हें फुगाना क्षेत्र से एक लाश की शिनाख्त के लिए बुलाया गया। उन्होंने तीन टुकड़ों में काट दी गई अपनी बेटी की अधजली लाश को पहचान तो लिया लेकिन उस दिन से अपनी पहचान भूल चुके हैं। शिनाख्त के बाद पुलिस ने कागजी कार्रवाई पूरी करके उस सड़ती हुई लाश को तत्काल दफन करवा दिया। मुकीम और उनकी पत्नी वसीला दूसरे हजारों पीड़ितों की तरह ही अब शरणार्थी शिविर में रह रहे हैं और उन्हें नहीं पता है कि अब यहां से वे कहां जाएंगे।
मुकीम की बेटी के साथ जो हुआ वह अकेली ऐसी जघन्य घटना नहीं है जो कि मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान घटित हुई। लाख गांव के पीडि़तों से तफ्तीश के दौरान वहां पहुंचे रिहाई मंच के एक जांच दल ने पाया है कि इस गांव में इस तरह की और भी कई घटनाएं हुई हैं जहां महिलाओं खासकर कम उम्र की बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार व हत्याएं हुई हैं, जिसे प्रशासन दबा रहा हैं। रिहाई मंच जांच दल में शामिल अवामी कांउसिल फॉर डेमोक्रेसी एंड पीस के असद हयात, राजीव यादव, शरद जायसवाल, गुंजन सिंह, लक्ष्मण प्रसाद और शाहनवाज आलम शामिल हैं। जांच दल से बातचीत में ग्राम फुगाना निवासी आस मोहम्मद की पत्नी के साथ गांव के ही सुधीर जाट, विनोद, सतिंदर ने उन पर हमला किया जिसमें उनके तीन बच्चे गुलजार(10), सादिक(8) और ऐरान(6) बिछड़ गए जिनका पता आज तक नहीं चला। उन्होंने बताया कि उन लोगों ने मेरे कपड़े फाड़ दिये और बुरी तरीके से दांत काटे तभी बगल से एक और लड़की भागी जिसकी तरफ वे लोग लपके और मैं वहां से किसी तरह बच कर भाग पायी। अब वे लोग भी मुकीम की ही तरह कैराना कैम्प में रह रहे हैं।
कैराना कैम्प में रहने वाली फुगाना गांव की ही शबनम का कहना है कि 8 सितम्बर को सुबह 9-10 बजे के करीब नारों का शोर सुनकर हम सब वहां से भागे और पास के लोई गांव में एक घर में छुप गए लेकिन मेरे दादा बूढ़े होने के चलते पीछे छूट गए। जिन्हें हमने अपने गांव के ही विनोद, चसमबीर, अरविंद, हरपाल और अन्य द्वारा गड़ासे से तीन टुकड़े काट कर मारे जाते हुए देखा। फुगना थाने के गांव लिसाढ़ (जहां दो दर्जन से ज्यादा मुसलमान मारे गए) की एक महिला ने बताया कि अख्तरी (65) को जब जिंदा जलाया गया तब उनकी गोद में उनकी पोती भी थी, और वो भी गोद में चिपके-चिपके ही जल गयी, जिन्हें दफनाते वक्त बच्ची को गोद से अलग नहीं किया गया। उस्मानपुर की इमराना की 12 वर्षीय बेटी रजिया जो गांव के मदरसे में पढ़ रही थी। इमराना बताती है कि मदरसे पर बहुत सारे जाटों ने गड़ासे और तलवारों के साथ हमला किया। किसी तरह से रजिया अपने दो भाईयों जावेद(10) और परवेज(8) के साथ भागी और गन्ने के खेतों में पूरा दिन और पूरी रात छुपे रहे। रिहाई मंच जांच दल को पीडि़तों ने बताया कि कई गांवों में मदरसों पर हमला किया गया। जिसमें पढ़ने वाले कई बच्चे-बच्चियां आज तक गायब हैं।
जो लोग अब शरणार्णी शिविरों में उनकी जान तो बच गई है लेकिन शरणार्थी शिविरों में भी हालात अच्छे नहीं है। मलकपुर राहत कैम्प में ही 9 हजार सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त मुसलमान खुले आसमान के नीचे बांस की खपच्चियों पर प्लास्टिक बांधकर बारिश के बीच रहने को मजबूर हैं। इस शरमार्थी शिविर में ही अब तक 50 बच्चे जन्म ले चुके हैं और अभी भी 250 महिलाएं गर्भवती हैं। उस कैंप में रह रहे लोगों के लिए दो हफ्ते से अधिक समय में भी यूपी सरकार कोई बुनियादी सुविधा की व्यवस्था नहीं कर पायी है लेकिन वन विभाग ने वन विभाग की जमीन पर बने शरणार्थी शिविर में रह रहे लोगों पर जमीन कब्जा करने का मुकदमा दर्ज करवा दिया है। कैराना रेन्ज के वन अधिकारी नरेन्द्र कुमार पाल ने कैराना थाने में शरणार्थियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाकर उन्हें जमीन खाली करने के लिए कहा है।
रिहाई मंच की ओर से गये इस जांच दल का आरोप है कि समाजवादी पार्टी की सरकार भले ही मुसलमानों के रहनुमाई का बात कर रही हो लेकिन हकीकत में मुसलमानों के कत्लेआम में वह भी बराबर की हिस्सेदार रही है। 5 सितम्बर को लिसाढ़ गांव में आयोजित जाट बिरादरी के गठवारा खाप पंचायत जिसे 52 गांवों के मुखिया और क्षेत्र के दबंग हरिकिशन बाबा ने बुलायी थी उसमें कांग्रेस के पूर्व राज्य सभा सांसद व स्थानीय कांग्रेस विधायक पंकज मलिक के पिता हरिंदर मलिक भी मौजूद थे। इसी पंचायत जिसमें मुसलमानों के जनसंहार की रणनीति बनी उसका संचालन शामली जिला के समाजवादी पार्टी सचिव डॉक्टर विनोद मलिक ने किया जिसमें हुकूम सिंह और तरूण अग्रवाल समेत कई भाजपा नेता भी शामिल थे। हरिकिशन समेत सभी नेताओं पर धारा 120 बी के तहत आपराधिक षडयंत्र रचने का मुकदमा दर्ज है लेकिन आज तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया।
(शामली के कांधला, कैराना, मलकपुर, खुरगान सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त कैंप से रिहाई मंच जांच दल की रिपोर्ट का संपादित हिस्सा)
ओह ! बहुत ही दिल दहला देने वाली घटना है.
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