जब अमरीकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट से
पूछा गया कि वो निकारागुआ के तानाशाह अनास्तासियो समोज़ा की इतनी खुलकर हिमायत
क्यों करते हैं तो उन्होंने कहा, "हाँ, वे हरामज़ादे हैं पर वो हमारे हरामज़ादे
हैं."
अब अगर साध्वी निरंजन ज्योति रूज़वेल्ट नहीं
हैं तो इसमें उनका क्या कसूर. रूज़वेल्ट ने तो माफ़ी भी नहीं माँगी थी.
साध्वी जी ने तो यह कहने पर माफ़ी भी माँग ली
कि "अब आपको यह तय करना है कि रामज़ादों को चुनेंगे कि......को."
मगर क्षमा चाहने के बाद भी पढ़े-लिखे लोग
बेचारी साध्वी के पीछे लठ लिए घूम रहे हैं, ये
कैसा अन्याय है?
अगर फूड प्रोसेसिंग का मंत्री भी फूड फॉर थॉट
नहीं उगल सकता तो फिर कद्दू का मंत्री.
बयान का इनाम:
वैसे सलाम है आप सबकी बुद्धि को. अगर गुजरात का
कोई शहरवासी 2002 के दंगों पर अफ़सोस करते हुए ये कहे
कि अगर कार के पहिए के नीचे कोई पिल्ला भी आ जाए तो दुख तो होता है तो आप उसे
प्रधानमंत्री चुन लेते हो.
अगर मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के संदर्भ में अमित
शाह जैसा पढ़ा-लिखा शहरी बाबू ये कहे कि ये सम्मान और बदले की भावना का मामला है
तो नफ़रत फैलाने के जुर्म में चुनाव आयोग की तरफ़ से चुनावी भाषणों पर पाबंदी के
बाद भी सत्ता चलाने वाली पार्टी अमित जी को अपना प्रधान बना लेती है.
अगर कोई आदरणीय गिरिराज सिंह ये कहे कि जो मोदी
का विरोधी है वो गद्दार है उसे भारत छोड़ के पाकिस्तान में बस जाना चाहिए तो इनाम
में उसे कोई केंद्रीय मंत्रालय थमा दिया जाता है.
साध्वी पर ग़ुस्सा:
आप शहरवासियों का ग़ुस्सा बस गाँव की एक बेचारी
साध्वी निरंजन ज्योति पर ही क्यों निकलता है?
जिन लोगों में वो दिन-रात उठती-बैठती हैं, उन्हें जो कुछ जितना भी सिखाया-पढ़ाया गया है
और जो नज़रिया बताया गया है उसी का तो वो पालन कर रही हैं.
अगर आप लोगों का कुम्हार पर वश नहीं चल रहा है
तो गदहे के कान क्यों मरोड़ते हैं?
पाकिस्तानियों का दिल
आपसे ज़्यादा खुले दिल के लोग तो पाकिस्तान
में हैं.
इमरान ख़ान भरे जलसे में नवाज़ शरीफ़ को चोर और
जरदारी को लुटेरा कहते हैं. मौलाना फ़जलुर्रहमान इमरान ख़ान को यहूदी एजेंट और
जरदारी इमरान ख़ान को एजेंसियों का आदमी कहते हैं.
यहाँ कोई भी खुलकर किसी को गद्दार और देशद्रोही
कह सकता है, उसे मुसलमान मानने से इनकार कर सकता
है. पर मजाल है किसी के माथे पर शिकन आ जाए.
और आप हैं कि ख़ुद को विश्व की सबसे बड़ी
डेमोक्रेसी कहते हैं लेकिन लोकतंत्र के इस बुनियादी नियम को भी नहीं समझते कि जो
आदमी के मन में है वही ज़बान पर भी होना चाहिए. अगर इतनी भी आज़ादी न हो तो कैसा
लोकतंत्र.
प्रार्थना:
भाइयों मेरी इतनी सी प्रार्थना है कि निरंजन
ज्योति के मामले में ऐसे उतावले न बनिए.
अगले चुनाव तक वो भी शहरी नियमों से परिचित हो
जाएंगी और जब वो ये कहेंगी कि आपको बिना ह के रामज़ादों और ह वाले रामज़ादों में
से किसी एक का चुनाव करना है तो फिर आप समेत हर कोई ताली बजाकर कहेगा कि वाह! क्या
लाख रुपए की बात कही है साध्वी जी ने...
-वुसतुल्लाह ख़ान
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