आजादी के 67 वर्ष बाद आज भी देश में बड़ी संख्या में लोग अंधविश्वासों के शिकार होकर
भूत-प्रेत तथा जादू-टोने के चक्कर में उलझे हुए हैं। इसी कारण बहुत से लोग रात को
कब्रिस्तानों अथवा श्मशानघाट में जाना या उनके निकट से गुजरना अच्छा नहीं समझते।
एक अंधविश्वास यह
भी है कि नदियों में बहाए जाने वाले दीपक आत्माओं को श्मशान तक आने का रास्ता
दिखाते हैं। जादू-टोना करने वाले वहां तरह-तरह के अनुष्ठान करते रहते हैं।
अंधविश्वासी लोग बुरी शक्तियों से बचाव के नाम पर या गड़ा धन आदि प्राप्त करने के
लिए भी तरह-तरह के अनुष्ठान ऐसे लोगों से श्मशानघाटों आदि में करवाते रहते हैं।
आम लोग तो
अंधविश्वासों के कारण दिन के समय भी श्मशानघाट पर जाने से संकोच करते हैं लेकिन ये
लोग रात के समय भी वहां चैन की बांसुरी बजाते हैं। इन तथाकथित जादू-टोना करने
वालों की ‘साधनाओं’ में काले मुर्गे की बलि चढ़ाकर मांस-मदिरा का प्रसाद चढ़ाना और
निर्वस्त्र होकर ‘शव साधना’ करना आदि शामिल होता है।
लोगों के मन से
इसी अंधविश्वास के विरुद्ध जागरूकता पैदा करने के लिए कर्नाटक के राजस्व मंत्री
सतीश जर्कीहोली ने 6 दिसम्बर की रात अपने
सैंकड़ों साथियों के साथ बेलगावी के श्मशान ‘वैकुंठ धाम’ में बिताई। यहां 24 शवदाह स्थल हैं। यहां उन सब लोगों ने रात का खाना भी खाया।
कर्नाटक
विधानसभा में अंधविश्वास निरोधक विधेयक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले
सतीश जर्कीहोली ने कहा ‘‘यहां रात बिता कर पहले तो मैं इस गलतफहमी को तोडऩा चाहता
था कि श्मशान जैसी जगहों पर भूत रहते हैं और दूसरी बात यह कि मैं इससे जुड़ा भय
समाप्त करना चाहता हूं क्योंकि वास्तव में श्मशानघाट पवित्र स्थान होता है। सत्ता
में न रहने के बाद भी मैं अंधविश्वासों के विरुद्ध अपना मिशन जारी रखूंगा।’’
सतीश जर्कीहोली
ने यह भी कहा ‘‘यदि लोग अंधविश्वासों का मुकाबला नहीं करेंगे तो तथाकथित पिछड़े
वर्गों तथा अनपढ़ लोगों को कभी भी न्याय नहीं मिल पाएगा। बिल गेट्स विश्व के
सर्वाधिक अमीर व्यक्तियों में से एक हैं
परंतु वह पूजा नहीं करते और मैं भी नहीं करता, हालांकि मेरा 600 करोड़ रुपए वार्षिक का व्यवसाय
है।’’
जादू-टोने के
संबंध में विडम्बना यह है कि सिर्फ अनपढ़ और आम लोग ही नहीं बल्कि स्वयं को
पढ़े-लिखे और बुुद्धिजीवी कहने वाले तथा राजनीतिज्ञ और फिल्म जगत से जुड़े लोग भी
अंधविश्वासों को मानने वालों में शामिल हैं।
अंधविश्वासी
राजनीतिज्ञों में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा का नाम
उल्लेखनीय है जो अपनी ‘शत्रु दुष्टआत्माओं के नाश’ के लिए फर्श पर कई-कई रात
निर्वस्त्र सोने के अलावा गधे आदि की बलि भी देते रहे हैं।
बड़ी संख्या में
लोगों की भावनाएं इतनी मजबूत है कि अंधविश्वासों के विरुद्ध अभियान चलाने वाले
महाराष्ट्र के समाजसेवी नरेंद्र दाभोलकर की अगस्त 2013 में उनके विरोधियों ने पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी थी जिसके बाद
महाराष्ट्र सरकार अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली परम्पराओं पर रोक लगाने संबंधी
विधेयक पारित करने के लिए मजबूर हुई है जो नरेंद्र दाभोलकर के 25 वर्षों के अनथक प्रयासों का ही परिणाम है।
सतीश जर्कीहोली
का यह प्रयास भूत-प्रेतों के अस्तित्व के संबंध में व्याप्त जनभ्रांतियां दूर करने
की दिशा में एक अच्छा पग है। जिस तरह महाराष्ट्र सरकार ने ‘अंधविश्वास निरोधक
विधेयक’ पारित किया है उसी प्रकार कर्नाटक व अन्य राज्यों की सरकारों को भी ऐसे
विधेयक पारित करने चाहिएं ताकि भोले-भाले लोगों को ऐसे ढोंगी लोगों के छल-प्रपंच
में फंसने और अपना शोषण कराने से बचाया जा सके।
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