देशभक्ति बड़ी ही कुत्ती चीज होती है- ऐसा यक़ीन तो कई सालों से था।
लेकिन बीते कुछ वक़्त में यह यक़ीन और पुख़्ता हो चला है। देशभक्ति की पैकेजिंग
बदलने लगी है। अब यह क़रीब-क़रीब हर फ़्लेवर में, हर जगह आसानी से उपलब्ध है। यह कुछ-कुछ कोल्ड ड्रिंक
के उस विज्ञापन की तरह हर मौसम 'आम' हो
गई है।
महंगाई दर कितनी भी कुलाचें लगाए, प्याज़ कितना भी रुलाए, दाल भले
न गले लेकिन देशभक्ति के गोदाम से कुतर्क कुतरने वाले सारे चूहों को भगा दिया गया
है और यहां माल भरपूर है। यूं देखा जाए तो इन दिनों इसके दाम भी काफ़ी कम चुकाने
पड़ रहे हैं। पहले तो फिर भी देशभक्ति साबित करने के लिए आपको चंद रुपये ख़र्च
करके अपनी गाड़ी पर, साड़ी पर या दाढ़ी साफ़ करके गाल पर
तिरंगा ज़ाहिर करना होता था। लेकिन, अब तो इसकी भी ज़रूरत
नहीं रही।
मोदी के मित्र मार्क ने सभी भारतीयों को डिजिटल तिरंगा मुहैया करा ही
दिया है। शान से अपनी प्रोफाइल तस्वीर पर लगाइए और सौ फ़ीसदी, ख़ालिस, बिना
मिलावट का देशभक्त होने का तमगा पाइए। कुछ तो बेहद दिलचस्प घट रहा है इस डिजिटल
देशभक्ति के दौर में। कुछ दोस्तों की ज़हर बुझी बहसों में मैं भी शामिल हुआ। बहस
गरम थीं, इतनी कि हाथ जलने लगा, बदन
उबलने लगा और ज़ुबान से तेज़ाब सा निकलने को हुआ। इन बहसों का सबसे दिलचस्प पहलू
ये नज़र आया कि जिनकी बातों में दम था, तर्क था, विवेक था वे सब बेचारे मार्क की डिजिटल देशभक्ति के ठप्पे के बिना ही
नुमाया थे। इसके उलट जो अधकचरी जानकारी भरकर 'गदर' मचाने को उतारू थे, उनमें से ज़्यादातर का चेहरा तिरंगे में लिपटा था। यह देशभक्ति का सनी
देओल अवतार है जो इन दिनों कुछ ज़्यादा ही नज़र आने लगा है। और बार-बार, यही ब्रैंडेड देशभक्ति गांवों में, मोहल्लों में,
सड़कों पर उतरकर उधम मचाती दिखाई दे रही है।
अब देखिए न....शिव सेना ने देश के प्रधानमंत्री को संदेश दे दिया कि
आप विदेशों में लाख डिजिटल इंडिया-डिजिटल इंडिया चीख़ते रहिए, हम तो यहां अपनी प्यारी, पुरातन 'स्याही' का दामन न
छोड़ने वाले। सरहद पर सैनिक जी-जान से देश की रक्षा में लगे हैं तो देश के भीतर
सारी रक्षा का ज़िम्मा ‘शिव के सैनिकों’ ने ख़ुद संभाल लिया है। ऐसे कैसे कोई गायक
अमन के सुर छेड़ने की कोशिश कर देगा, ऐसे कैसे किसी
पाकिस्तानी सियासतदां की किताब मुंबई में रिलीज़ हो जाएगी। अगर ऐसा हो गया तो कैसे
नज़रें मिला पाएंगे ‘शिव के सैनिक’ ख़ुद से।
हां, यह अलग बात है कि कभी-कभी शिवसेना के आला नेता देशभक्ति का इंजेक्शन मिस
कर देते हैं तो छोटी-मोटी ग़लतियां हो जाती हैं जो सोशल मीडिया के दौर में जीने
नहीं देतीं।
साल 2004 में हुई थी ऐसी ही एक छोटी सी ग़लती। पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर और दाऊद
के समधी जावेद मियांदाद को लंच का न्योता दे डाला था देशभक्ति के सबसे बड़े
ब्रैंड- बाला साहेब ठाकरे ने। छुटंके आदित्य ने मियांदाद का ऑटोग्राफ़ भी लिया और
बाल ठाकरे ने मियांदाद के साथ ख़ूब हंसी-ठिठोली की जिसका विडियो यूट्यूब पर मौजूद
है।
यह शिवसेना का वह चेहरा है जिससे वह आज नज़रें चुराना चाहेगी। यह
बेवजह नहीं है कि कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोतने वाले 6 कार्यकर्ताओं को मातोश्री में
सम्मानित किया गया। यह देशभक्ति के एक ख़ास ब्रैंड को इनाम-इकराम से नवाज़ कर उसे
बढ़ावा देने की क़वायद है।
यह स्साली देशभक्ति है क्या- मुझे तो अन्ना आंदोलन की वे तस्वीरें भी
याद हैं जब एक बाइक पर तीन-तीन, चार-चार युवा बिना हेलमेट के देश की राजधानी की सड़कों पर तिरंगा लहराते
हुए चलते थे। क्रिकेट हो और उस पर भी भारत-पाक मुक़ाबला तो देश के करोड़ों कामकाजी
घंटे क़ुर्बान हो जाएंगे। सड़क पर निकलिए तो कार के डैशबोर्ड पर शान से तिरंगा
लगाने वाले भी ख़ाली बोतल और चिप्स का रैपर, शीशा खोलकर बाहर
फेंकने से न तो अपने बच्चों को रोकेंगे न ख़ुद को।
तो क्या ‘देशभक्त’ होने का असली ताम्रपत्र क्या सिर्फ़ उसी के हिस्से
में आएगा जो चार गाली चीन को और चालीस गाली पाकिस्तान को बकने का हौसला रख सके, जो मौजूदा सरकार के मुखिया और
उसकी नीतियों को मानव इतिहास में महानतम साबित कर सके, जो
सोशल मीडिया और उसके बाहर देश की संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में आड़े आने वाली सभी
रुकावटों को नेस्तोनाबूद कर दे, जो तिरंगा लगाने के बाद सारे
क़ानून तोड़ने को आज़ाद हो....
…और वह जिसे तिरंगे में भी सिर्फ़ एक रंग नज़र आता हो!
प्रबुद्ध जैन
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