कल मैंने एक ब्लॉग लिखा था जिसमें मैंने आशंका जताई थी इख़लाक़ की हत्या में पाकिस्तान का हाथ हो सकता है। (इख़लाक की हत्या में पाकिस्तान का हाथ!)। मुझे बेहद निराशा हुई यह देखकर कि अधिकांश पाठक मेरी बात से सहमत नहीं हुए। जो देशभक्त दिनरात पाकिस्तान की बर्बादी की माला जपते रहते हैं, उन्होंने भी यही कहा कि यह बात कुछ हज़म नहीं हुई। यहां तक कि शिवसेना से भी कोई बधाई संदेश नहीं आया जबकि मुझे पूरी उम्मीद थी कि उनकी कोई होलीसेना सफ़ेद रंग का डिब्बा लेकर मेरे घर या दफ़्तर आएगी और मेरे ब्लॉग का समर्थन करते हुए मेरे चेहरे पर सफ़ेदी पोतेगी। मैंने सोचा था, उसी को मैं अपने फ़ेसबुक का डीपी बना लूंगा। लेकिन न उद्धव का कोई कॉल आया न संजय राउत का। इससे यही साबित हुआ कि शिवसेना की देशभक्ति केवल नाममात्र की है।
ख़ैर मैं ऐसा नहीं जो पाठकों का समर्थन न मिलने से बैठ जाऊं। मैंने कल पूरी रात सोचा कि कैसे पाठकों को कन्विंस करूं कि इख़लाक़ की हत्या में संघ परिवार का कोई हाथ नहीं है। और मेरा रतजगा काम आया। अब तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इख़लाक़ की हत्या में पाकिस्तान का नहीं सही, लेकिन ख़ुद इख़लाक़ का पूरा-पूरा हाथ है। कैसे, यह मैं आगे बताता हूं।
पॉइंट नंबर 1- जब इख़लाक़ की हत्या हुई तो हत्या में किसी न किसी का हाथ तो होगा ही। विपक्ष ने आरोप लगाया कि इसमें बीजेपी और संघ परिवार का हाथ है। पहले तो मुझे भी डाउट हुआ कि ऐसा ही होगा क्योंकि जिस लड़के पर हत्या का आरोप है, उसके पिता संजय राणा बीजेपी से जुड़े हैं और उनके केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा के साथ फ़ोटो छपे थे। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल कह दिया कि इसमें बीजेपी का हाथ नहीं है तो मानना ही पड़ेगा कि बीजेपी का हाथ नहीं है। ख़ुद संजय राणा ने भी पहले कहा था कि कत्ल की रात उनका बेटा दिल्ली में था, दादरी में नहीं। बाक़ी जो आरोपी हैं, उनके माता-पिता भी कह चुके हैं कि हंगामे के समय उनके बेटे टीवी पर ‘बजरंगी भाईजान’ देख रहे थे।
पॉइंट नंबर 2 - स्यूडोसेक्युलर कह सकते हैं कि ये सभी लोग झूठ बोल रहे हैं लेकिन मेरे भाइयो और बहनो, आपके पास कोई सबूत है? कोई विडियो है आपके पास जिसमें इन लोगों को हत्या करते हुए देखा गया हो? आजकल तो लोग कुत्ते-बिल्ली का भी विडियो बना लेते हैं, ऐसे में एक इंसान की लाइव हत्या हो रही हो तो क्या कोई विडियो नहीं बनाता? बनाता कि नहीं?….. बनाता कि नहीं?….. बनाता कि नहीं?… लेकिन भाइयो और बहनो, क्या किसी ने इस हत्या का विडियो बनाया? …नहीं बनाया। किसी ने इस हत्या का विडियो… नहीं बनाया। इसका क्या मतलब है?… कि हत्या….. हुई ही नहीं, और अगर हुई भी है तो किसी के ख़िलाफ़ कोई सबूत… नहीं है। फिर आप कैसे इन मासूम बेगुनाहों पर बिना किसी सबूत के आरोप लगा रहे हो? और वैसे भी सारे के सारे बीजेपी वाले बजरंग बली हनुमान के भक्त होते हैं और अगर आपने सलमान ख़ान की हिट फ़िल्म 'बजरंगी भाईजान' देखी होगी तो आप जानते होंगे कि हनुमान के भक्त कभी झूठ नहीं बोलते। चाहे जितनी मार पड़े, ये झूठ नहीं बोलते। और कुछ करते भी हैं तो परमिशन लेकर करते हैं। यदि राणा और उनके लोगों ने यह हत्या की होती तो पहले तो उन्होंने इख़लाक़ और उनकी फ़ैमिली से परमिशन ली होती कि हम इन्हें मार रहे हैं, क्या आपकी परमिशन है। दूसरे, यदि उन्होंने हत्या की होती तो पहली बार में ही मान लिया होता कि हमने हत्या की जैसे कि बहादुर शिवसैनिक ने मुंबई में दहाड़कर कहा कि हमने सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोती। जब वे कह रहे हैं कि हमने कुछ नहीं किया तो सबको मान लेना चाहिए कि इन्होंने कुछ नहीं किया। आख़िर फ़िल्म में पाकिस्तानियों ने भी माना कि नहीं कि हनुमान भक्त पवन कुमार चतुर्वेदी एक अच्छा और नेक इंसान है। तो जब पाकिस्तानियों ने मान लिया (चाहे फ़िल्म में ही क्यों न माना हो?) तो हम क्या इन पाकिस्तानियों से भी गए गुजरे हैं कि हम अपने ही लोगों की बात नहीं मानें कि संजय राणा के पुत्र और उनके साथी नेक और अच्छे इंसान हैं और वे ऐसा काम नहीं कर सकते।
तो यह तो साबित हो गया कि संजय राणा और उनके लोगों ने इख़लाक़ की हत्या नहीं की। पुलिस के पास उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है — न विडियो है न ही बजरंगियों की सत्योक्ति।
पॉइंट नंबर 3 - तो सवाल वहीं पर फिर से जा अटकता है कि इख़लाक़ की हत्या किसने की? पता लगाने का क़ानूनी तरीक़ा यही है कि सबसे पहले यह पता लगाया जाए कि हत्या के समय घटनास्थल पर कौन-कौन था। राणा के लोग या गांव के हिंदू नहीं थे, यह ऊपर के पैरे में साबित हो गया। हो सकता है, मुसलमानों ने की हो या इख़लाक़ के परिवार ने की हो 45 लाख के मुआवज़े के लालच में लेकिन उसका भी कोई विडियो नहीं है इसलिए उन पर भी आरोप नहीं लगाया जा सकता। (भई, हमको फ़ेयर होना चाहिए। जब हम हिंदुओं को बेनिफ़िट ऑफ़ डाउट दे रहे हैं तो मुसलमानों को भी बेनिफ़िट ऑफ़ डाउट मिलना ही चाहिए।) अब बचा कौन जो घटनास्थल पर था और जिसके बारे में किसी को डाउट नहीं है? बस एक इख़लाक़। बाक़ियों के बारे में कुछ पता नहीं कि कौन वहां था और कौन नहीं, जितने मुंह उतनी बातें लेकिन एक बात तो प्रूव्ड है कि जब हत्या हुई तो उस स्थान पर एक शख़्स मौजूद था और वह शख्स था ख़ुद इख़लाक़। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता — न बीजेपी, न समाजवादी पार्टी, न पुलिस, न मीडिया, न मोदी, न राहुल, न भारत, न पाकिस्तान।
यानी सभी इस बात पर सहमत होंगे कि जब इख़लाक़ की हत्या हुई तो उस समय घटनास्थल पर इख़लाक़ मौजूद था और वहां वह आला-ए-क़त्ल यानी वह पत्थर भी था जिससे पीट-पीटकर उसे मारा गया। तो स्पष्ट है कि इख़लाक़ ने ही इख़लाक़ की हत्या की। सीन की कल्पना करें तो वह कुछ इस तरह होगा - इख़लाक़ ने पत्थर अपने ‘हाथ’ से उठाया और अपने सर पर मारा। तो हो गया न साबित कि इस हत्या में इख़लाक़ का ‘हाथ’ था।
मैं जानता हूं कुछ ‘पाकिस्तानपरस्त देशद्रोही सेक्युलर’ अब भी नहीं मानेंगे कि इख़लाक़ की हत्या में इख़लाक़ का ही हाथ था। वे अब भी यही रटते रहेंगे कि हिंदुओं ने उसे मारा। एक बार मान लेते हैं कि ‘हां मारा’ लेकिन मेरा सवाल है और आपका भी यही सवाल होगा कि जब किसी व्यक्ति ने इख़लाक़ को मारने के लिए पत्थर उठाया तो इख़लाक़ उस समय क्या कर रहा था? उसने उस पत्थर को अपने सर पर क्यों पड़ने दिया? अपने ‘हाथ’ से क्यों नहीं रोका? वह ‘हाथ’ बांधे क्यों खड़ा रहा? दोष उसके ‘हाथ’ का है कि नहीं जिसने वक्त रहते अपना फ़र्ज़ नहीं निभाया?
तो आप चाहे देशभक्त हों या देशद्रोही, आपको मानना ही पड़ेगा कि इख़लाक़ की हत्या किसी और ने नहीं की, ख़ुद इख़लाक़ ने की।
नीरेंद्र नागर
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